सागर। अब वो सीजन आ चुका है, जिस सीजन में सर्पदंश के मामले सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं. एक सरकारी आकंडे के मुताबिक देश में सर्पदंश से सालाना 60 हजार मौतें होती है. ये मौते सबसे ज्यादा उत्तरप्रदेश और फिर मध्यप्रदेश में होती है. इन आंकडों को आधा करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम शुरू किया है. राष्ट्रीय सर्पदंश रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम के तहत 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों को आधा करने का लक्ष्य रखा गया है. दरअसल इन मौतों पर काबू पाने में सरकार को इसलिए दिक्कत हो रही है,क्योंकि सरकारी अस्पतालों में सर्पदंश के इलाज की पर्याप्त व्यवस्था के बाद भी लोग झाडफूंक और अन्य तरीकों से अब भी इलाज करते हैं. फिलहाल राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत वार्षिक कार्ययोजना तैयार करके सर्पदंश की मौतों पर नियंत्रण की कोशिश की जाएगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की चिंता: दरअसल पिछले दिनों WHO ( विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने दक्षिण एशियाई देशों और खासकर भारत में सर्पदंश से मौतों पर चिंता जताते हुए सरकार को इन मौतों पर नियंत्रण के लिए विस्तृत कार्यक्रम चलाने का परामर्श दिया था. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सालाना करीब 60 हजार मौतें सर्पदंश से होती है. WHO ने सर्पदंश से मौत और विकलांगता के आंक़डो पर नियंत्रण के लिए प्रभावित देशों को 2030 को लक्ष्य मानकर एक विस्तृत कार्यक्रम भी पेश किया है. जिसके तहत इन देशों में कार्यक्रम संचालित किया जाएगा. दरअसल WHO का मानना है कि सर्पदंश की मौतों से सबसे ज्यादा गरीब तबका प्रभावित होता है. खासकर किसान,मजदूर और ऐसा वर्ग जो जोखिम भरे स्थानों पर काम करता है.
मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने तैयार की कार्ययोजना: WHO के निर्देश पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए राष्ट्रीय सर्पदंश रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने लक्ष्य निर्धारित कर कार्य शुरू कर दिया है. इस कार्यक्रम के तहत प्रत्येक जिले में सर्पदंश नियंत्रण के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है. नोडल अधिकारी स्वास्थ्य विभाग, वनविभाग और अन्य विभागों से समन्वय कर सर्पदंश नियंत्रण के लिए कार्य करेगा. नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी होगी कि ग्रामीण स्तर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला चिकित्सालय तक एंटी स्नैक वीनम की उपलब्धता सुनिश्चित करे. स्वास्थ्य विभाग के अमले को सर्पदंश के इलाज के प्रशिक्षण के अलावा जनजागरूकता को लेकर अभियान चलाने होंगे.
इलाज की जगह झाडफूंक पर भरोसा: सर्पदंश से मौत के मामलों की बात करें तो ज्यादा ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश के मौत होती है. ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश से मौत की बडी वजह इलाज की जगह झांडफूंक पर भरोसा करना है. सर्पदंश की स्थिति में लोग पीडित को अस्पताल ले जाने की जगह तांत्रिक या ओझा के पास ले जाते हैं. ऐसी स्थिति में ज्यादातर मौतें समय पर इलाज ना मिल पाने के कारण होती है जबकि सर्पदंश में पीडित को तत्काल अस्पताल ले जाकर जान बचाई जा सकती है. अस्पताल में एंटी स्नैक वीनम इंजेक्शन से मरीज की जान बचाई जा सकती है.
क्या करें क्या ना करें: सर्पदंश के अधिकांश मामलों में कई बार लोग समझ ही नहीं पाते हैं कि सांप ने उन्हें काटा है. सर्पदंश के लक्षण नींद का आना और सांस में तकलीफ होती है. सर्पदंश के पीडित की जान बचाने के लिए घाव के आसपास ना रस्सी बांधे और ना ब्लेड से कांटे. पीडित व्यक्ति को हौसला देते हुए गीले कपडे़ से दंश की जगह साफ करें और पीडित व्यक्ति को करवट लेकर सुलाएं. क्योकिं कई बार पीडित व्यक्ति को उलटी होने लगती है और सीधा लिटाने पर श्वांस नली में फंस सकती है.