सागर। बुंदेलखंड में पिछड़ेपन के चलते कई तरह की सामाजिक कुरीतियां आज भी अपने पैर जमाए हुए हैं, आज बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचल जब लड़की जन्म लेती है तो जन्म के अवसर पर मनाई जाने वाली खुशियां मातम में बदल जाती हैं. बेटी को जन्म देने वाली माता को ताने सहने पड़ते हैं, लेकिन समय के साथ-साथ समाज भी बदल रहा है और बेटी को भी बेटे का दर्जा दिया जा रहा है. जिले के जैसीनगर विकासखंड के सागोनी पुराने पुरैना गांव में ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जहां एक परिवार में जब 23 साल बाद बेटी ने जन्म लिया है तो पूरा गांव और परिवार खुशी से झूम उठा. बेटी जब अपने घर पहुंची तो पूरे गांव और परिवार के लोगों ने नाच-गाकर बेटी का देवी की तरह स्वागत किया.
नाच-गाकर और फूल बरसाकर बेटी का स्वागत: हमारे देश में आज भी बेटा और बेटी में फर्क किया जाता है, कुछ ऐसे ही हाल बुंदेलखंड इलाके मे देखने और सुनने मिलते हैं. बुंदेलखंड में जब किसी परिवार बेटा जन्म लेता है तो जश्न मनाया जाता है, लेकिन अगर बेटी जन्म लेती है तो बेटी को जन्म देने वाली मां को जिंदगी भर ताने सहने पड़ते हैं और परिवार मातम का माहौल हो जाता है. अब बदलते समय के साथ सोच भी बदल रही है, जिले के जैसीनगर विकासखंड के एक छोटे से गांव सागोनी मुरैना के पूर्व सरपंच सेवा रविंद्र सिंह के बेटे डॉ तरुण सिंह और पुत्र बधू वैशाली के यहां नवरात्रि के अवसर पर जब कन्या ने जन्म लिया और शुक्रवार को अस्पताल से बेटी घर पहुंची तो पूरे गांव वालों ने नाश्ता कर जश्न बनाया. बेटी पर फूल वर्षा कर स्वागत किया गया, चारों तरफ खुशियों का माहौल नजर आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि सागर का एक छोटा सा गांव पूरे देश को संदेश दे रहा हो कि बेटी और बेटा बराबर होते हैं और इनमें कोई फर्क नहीं करना चाहिए.
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23 साल बाद परिवार में बेटी ने लिया जन्म: जिस परिवार में बेटी ने जन्म लिया, उस परिवार के मुखिया रविंद्र सिंह गांव के पूर्व सरपंच रहे हैं. बेटी के दादा रविंद्र सिंह कहते हैं कि "आज भी हमारे समाज में कई तरह की विकृतियां फैली हैं, बेटी होने पर लोग दुखी हो जाते हैं और यहां तक कि बेटी को कोख में ही मार देते हैं. हमारे परिवार में 23 साल बाद बेटी ने जन्म लिया, तो हमने सोचा कि परिवार में आई बेटी के जरिए समाज को संदेश देना चाहिए कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं होता है. ऐसी विकृति को बदलने के लिए गांव वाले और परिवार वालों ने तय किया कि जब बेटी अस्पताल से घर आएगी, तो उसका स्वागत ऐसा किया जाएगा कि गांव की तो सोच बदले और दूर-दूर तक संदेश जाए कि बेटियां भी बेटों की तरह आज बड़े-बड़े मुकाम हासिल कर रही हैं और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं."
देवी मां पधारी द्वार: जब अस्पताल से बेटी शुक्रवार के दिन घर पहुंची, तो सागोनी पुरैना गांव जश्न में डूब गया. गाजे-बाजे के साथ बेटी का स्वागत किया गया और जब बेटी ने घर की दहलीज पर कदम रखा तो फूल बरसा कर उसका स्वागत किया गया. परिवार के लोग इस तरह खुश थे, मानो उनके घर में स्वयं देवी मां पधारी हैं.