सागर। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा देश में पहली बार मेडिकल की पढाई हिंदी में कराने की शुरूआत की जा चुकी है. सरकार द्वारा तय किया गया है कि मेडिकल की पढाई हिंदी में करना अनिवार्य नहीं है, बल्कि ये वैकल्पिक व्यवस्था है. शुरूआती वर्ष में ये सिर्फ एमबीबीएस प्रथम वर्ष के लिए लागू की गई है. इस व्यवस्था के तहत कोई छात्र अगर हिंदी में पढाई की मांग करता है, तो उसका सहयोग करना होगा. परीक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी के अलावा हिंदी होगा और कोई छात्र अगर हिंदी में जबाब देगा, तो उसके अंक नहीं काटे जा सकेंगे.
हिंदी को बढ़ावा: मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार देश की पहली राज्य सरकार है, जिसने मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में करवाने की शुरुआत की है.17 अक्टूबर को देश के गृहमंत्री अमित शाह एमबीबीएस प्रथम वर्ष की तीन विषयों की हिंदी किताबों का विमोचन कर चुके हैं. ये पाठ्य पुस्तकें प्रदेश की सभी 13 मेडिकल कॉलेज को उपलब्ध कराई गई हैं. प्रथम वर्ष के छात्र अंग्रेजी में कठिनाई आने पर इन किताबों के जरिए पढ़ाई कर सकते हैं. सरकार द्वारा ये व्यवस्था अनिवार्य रूप से लागू नहीं की गई है. इस व्यवस्था को वैकल्पिक तौर पर लागू किया गया है.हिंदी माध्यम के छात्रों को ये फायदा रहेगा कि परीक्षा में अगर हिंदी में जवाब देते हैं, तो उनके नंबर नहीं काटे जाएंगे.
ऐसे तैयार किया गया पाठ्यक्रम: इस व्यवस्था के तहत मध्यप्रदेश सरकार के चिकित्सा विभाग ने सबसे पहले एक 14 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. जिसमें चिकित्सा शिक्षा संचालक के लिए अध्यक्ष बनाया गया है. इस कमेटी ने सबसे पहले हिंदी में पाठ्यक्रम तैयार करने का काम किया है. जिसमें सबसे पहले एमबीबीएस प्रथम वर्ष की एनाटॅामी,फिजियोलॅाजी और बायोकैमेस्ट्री की किताबें तैयार की गई है. ये किताबें मध्यप्रदेश के सभी सरकारी 13 मेडिकल काॅलेज में मुहैया करायी गई है. छात्रों अगर इन किताबों के जरिए पढाई करना चाह रहा है, तो उसे मेडिकल काॅलेज प्रबंधन को किताबें उपलब्ध कराने में मदद करनी होगी.
सभी मेडिकल काॅलेज में बनाया गई हिंदी से: मेडिकल की पढाई को हिंदी में बढावा देने के लिए सभी मेडिकल काॅलेज में हिंदी सेल बनायी गई है. जिसमें एक प्रोफेसर को उसकी कमान सौंपी गई है. इस सेल का काम मेडिकल पाठ्यक्रम को हिंदी में तैयार करवाना और अगर कोई छात्र हिंदी में पढाए जाने की मांग करता है तो उसकी व्यवस्था करना है. सागर स्थित बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में फोरेंसिक साइंस के प्रोफेसर डाॅ शैलेन्द्र पटेल को हिंदी प्रकोष्ठ की कमान सौंपी गई है. जिसकी जिम्मेदारी मेडिकल में हिंदी की पढाई की व्यवस्था करवाना है.
कैसे तैयार हुआ एमबीबीएस का हिंदी पाठ्यक्रम: बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के हिंदी प्रकोष्ठ के प्रभारी प्रोफेसर डाॅ. शैलेन्द्र पटेल बताते है कि, सबसे पहले हमारे सामने चुनौती हिंदी में मेडिकल की पुस्तके तैयार करने की थी. चिकित्सा शिक्षा विभाग की कमेटी द्वारा सबसे पहले हमें आर्टिफिशीयल इंटेलीजेंस की मदद से अनुवादित की गई किताबें मुहैया कराई गई. इन किताबों की समस्या ये थी कि एक साफ्टवेयर द्वारा अनुवाद किए जाने के कारण अर्थ का अनर्थ हो रहा है. इसलिए हमें निर्देशित किया गया कि तीनों विषयों के प्रोफेसर इन अनुवादित किताबों में सुधार करें. सुधार के बाद हमनें फिर विभागों को ये किताबें भेजी, उसके बाद हमें नए सिरे से किताबें उपलब्ध करायी गई है.
किताबों में ज्यादातर मेडिकल टर्म अंग्रेजी में ही: प्रोफेसर डाॅ शैलेन्द्र पटेल बताते है कि अनुवादित किताबों में सुधार भले हो चुका है, लेकिन अंग्रेजी की मेडिकल टर्म का हिंदी में अनुवाद किए जाने से कई शब्द काफी कठिन और आम बोलचाल की भाषा वाले नहीं होने के कारण अंग्रेजी मेडिकल टर्म को इन किताबों में साथ में रखा गया है. प्रोफेसर शैलेन्द्र पटेल बताते हैं कि आमतौर पर हम अंग्रेजी की मेडिकल टर्म का उपयोग करते आए और प्रचलन में भी वहीं शब्द है. ऐसे में हिंदी के कठिन शब्द बच्चों की पढाई को और भी पेंचीदा बना रहा है. ऐसे में हम प्रोफेसर ने तय किया है कि हम छात्रों को हिंदी और अंग्रेजी मिश्रित करके पढाते हैं. फिर भी एक शुरूआत हुई है और धीरे- धीरे सुधार होगा. फिलहाल अनुवादित किताबें ही हिंदी की पढाई का सहारा है. हो सकता है कि भविष्य में विषय के जानकार हिंदी में मेडिकल की बेहतर किताबें तैयार करें.
अनुवादित किताबें अंग्रेजी से भी कठिन: नाम ना छापने की शर्त पर बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के ऐसे छात्र जो 12वीं तक हिंदी माध्यम से पढे हैं. बताते हैं कि हमें सरकार के इस फैसले पर बहुत खुशी हुई थी और लगा था कि हमें पढाई में सहूलियत होगी, लेकिन हमें जो अनुवादित किताबें मुहैया करायी गयी है, वो कई जगह हमें अंग्रेजी की किताबों से कठिन नजर आती है. क्योकिं उनका हिंदी अनुवाद काफी कठिन है और उच्च स्तर की हिंदी होने के कारण हमें अंग्रेजी की किताबें ज्यादा आसान लगती है. हिंदी माध्यम के छात्र कहते हैं कि इन किताबों को उपयोग हम अंग्रेजी किताबों की मेडिकल टर्म को समझने में ज्यादा उपयोग कर रहे हैं.
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अभी तक एक भी छात्र ने नहीं दिखाई रूचि: बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के डीन डाॅ आर एस वर्मा कहते हैं कि व्यक्तिगत रूप से किसी भी छात्र ने हिंदी सेल या मेरे स्तर पर ये मांग नहीं की है कि उन्हें हिंदी में पढाया जाए, लेकिन मेडिकल काॅलेज में हिंदी की किताबें उपलब्ध करायी गई है और कोई भी छात्र उसकी डिमांड करता है, तो हमारे प्रोफेसर उसे हिंदी में पढाते हैं, लेकिन हिंदी माध्यम के छात्रों अगर चाहें तो हिंदी में अपनी परीक्षा दे सकेंगे. ये व्यवस्था वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं है.