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दरिंदों पर पॉक्सो का हथौड़ा: सागर में 2020 में 79 फीसदी मामलों में सजा - Supreme Court

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 (POCSO) एक ऐतिहासिक कानून है. ये कानून 18 साल से कम उम्र वालों के साथ होने वाले यौन अपराध के लिए बनाया गया है.

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Published : Mar 30, 2021, 1:16 PM IST

सागर। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 (POCSO) एक ऐतिहासिक कानून है. ये कानून 18 साल से कम उम्र वालों के साथ होने वाले यौन अपराध के लिए बनाया गया है. इस एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए विशेष प्रावधान किए हैं. सागर के पूरे जिले में अभी 469 मामलों पर सुनवाई जारी है. 2020 में पास्को एक्ट से संबंधित 79 फीसदी मामलों में सजा सुनाई गई है

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पॉक्सो एक्ट की सुनवाई के लिए दिशा निर्देश

18 साल साल से कम उम्र के नाबालिगों के साथ होने वाले दुष्कर्म की घटनाओं को लेकर 2012 में विशेष रुप से पास्को एक्ट बनाया गया था. इस एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए विशेष प्रावधान किए हैं.

  • पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज होने के दो माह के अंदर पुलिस को चालान पेश करना होता है
  • विशेष कोर्ट के संज्ञान में मामला आते ही एक माह के भीतर सुनवाई शुरू करनी होती है.
  • पॉक्सो एक्ट के लिए गठित विशेष अदालतों को एक साल के अंदर सुनवाई पूरी कर निर्णय देना होता है.
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत पॉक्सो एक्ट के लिए विशेष अदालतें गठित की गई हैं.
  • पॉक्सो एक्ट की सुनवाई सत्र न्यायाधीश के नीचे के न्यायाधीश नहीं कर सकते हैं.
  • मामले में पीड़िता की तरफ से पैरवी करने वाला विशेष अभियोजक होता है. इस विशेष अभियोजक के पास कम से कम सात साल का अनुभव होना चाहिए.
  • ज्यादातर महिला जज ही मामले की सुनवाई करती हैं. विशेष परिस्थिति या एडीजी स्तर के महिला जज न होने की स्थिति में पुरुष जनसुनवाई करता है.
    Protection of Children from Sexual Offenses Act-2012
    यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012

पॉक्सो एक्ट की सुनवाई में पीड़ित पक्ष के लिए विशेष सुविधा
2012 के तहत मामलों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था करनी होती है. इस तरह के मामलों में पीड़ित की उम्र 18 साल से कम होती है. इसलिए इनके लिए विशेष साक्षी कक्ष बनाया जाता है.

  • आरोपी से पीड़िता या पीड़ित का सामना ना हो, पीड़ित डरे नहीं इसलिए साक्षी कक्ष में न्यायधीश विशेष अभियोजक, आरोपी पक्ष के वकील और पीड़िता के अलावा सिर्फ न्यायाधीश के टाइपिस्ट की मौजूदगी होती है
  • बयान दर्ज कराने के पहले पीड़िता के लिए साक्षी कक्ष के बाहर एक विशेष कक्ष भी बनाया जाता है, जहां किसी और को जाने की अनुमति नहीं होती है.

ये भी पढ़ें: नाबालिग छात्रा के साथ दुष्कर्म का प्रयास, दोषी सलाखों के पीछे

सागर जिले में पॉक्सो एक्ट के प्रकरणों की सुनवाई की स्थिति

  • सागर में 469 पॉक्सो एक्ट के प्रकरणों की सुनवाई जारी है.
  • सागर में जिला न्यायालय के अलावा रहली, बंडा, खुरई, देवरी और बीना में भी सत्र न्यायालय स्थापित हैं, इसलिए यहां भी पॉक्सो एक्ट की सुनवाई होती है.
  • 2020 में पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों में 79 फीसदी मामलों में सजा हुई है.
  • 2021 में अभी तक 10 मामलों में आरोपी दोष मुक्त हुए हैं और तीन मामलों में सजा सुनाई गई है.

सागर। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 (POCSO) एक ऐतिहासिक कानून है. ये कानून 18 साल से कम उम्र वालों के साथ होने वाले यौन अपराध के लिए बनाया गया है. इस एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए विशेष प्रावधान किए हैं. सागर के पूरे जिले में अभी 469 मामलों पर सुनवाई जारी है. 2020 में पास्को एक्ट से संबंधित 79 फीसदी मामलों में सजा सुनाई गई है

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पॉक्सो एक्ट की सुनवाई के लिए दिशा निर्देश

18 साल साल से कम उम्र के नाबालिगों के साथ होने वाले दुष्कर्म की घटनाओं को लेकर 2012 में विशेष रुप से पास्को एक्ट बनाया गया था. इस एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए विशेष प्रावधान किए हैं.

  • पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज होने के दो माह के अंदर पुलिस को चालान पेश करना होता है
  • विशेष कोर्ट के संज्ञान में मामला आते ही एक माह के भीतर सुनवाई शुरू करनी होती है.
  • पॉक्सो एक्ट के लिए गठित विशेष अदालतों को एक साल के अंदर सुनवाई पूरी कर निर्णय देना होता है.
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत पॉक्सो एक्ट के लिए विशेष अदालतें गठित की गई हैं.
  • पॉक्सो एक्ट की सुनवाई सत्र न्यायाधीश के नीचे के न्यायाधीश नहीं कर सकते हैं.
  • मामले में पीड़िता की तरफ से पैरवी करने वाला विशेष अभियोजक होता है. इस विशेष अभियोजक के पास कम से कम सात साल का अनुभव होना चाहिए.
  • ज्यादातर महिला जज ही मामले की सुनवाई करती हैं. विशेष परिस्थिति या एडीजी स्तर के महिला जज न होने की स्थिति में पुरुष जनसुनवाई करता है.
    Protection of Children from Sexual Offenses Act-2012
    यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012

पॉक्सो एक्ट की सुनवाई में पीड़ित पक्ष के लिए विशेष सुविधा
2012 के तहत मामलों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था करनी होती है. इस तरह के मामलों में पीड़ित की उम्र 18 साल से कम होती है. इसलिए इनके लिए विशेष साक्षी कक्ष बनाया जाता है.

  • आरोपी से पीड़िता या पीड़ित का सामना ना हो, पीड़ित डरे नहीं इसलिए साक्षी कक्ष में न्यायधीश विशेष अभियोजक, आरोपी पक्ष के वकील और पीड़िता के अलावा सिर्फ न्यायाधीश के टाइपिस्ट की मौजूदगी होती है
  • बयान दर्ज कराने के पहले पीड़िता के लिए साक्षी कक्ष के बाहर एक विशेष कक्ष भी बनाया जाता है, जहां किसी और को जाने की अनुमति नहीं होती है.

ये भी पढ़ें: नाबालिग छात्रा के साथ दुष्कर्म का प्रयास, दोषी सलाखों के पीछे

सागर जिले में पॉक्सो एक्ट के प्रकरणों की सुनवाई की स्थिति

  • सागर में 469 पॉक्सो एक्ट के प्रकरणों की सुनवाई जारी है.
  • सागर में जिला न्यायालय के अलावा रहली, बंडा, खुरई, देवरी और बीना में भी सत्र न्यायालय स्थापित हैं, इसलिए यहां भी पॉक्सो एक्ट की सुनवाई होती है.
  • 2020 में पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों में 79 फीसदी मामलों में सजा हुई है.
  • 2021 में अभी तक 10 मामलों में आरोपी दोष मुक्त हुए हैं और तीन मामलों में सजा सुनाई गई है.
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