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कोरोना से मरीज और स्टॉफ में बढ़ रहा डिप्रेशन, मनोवैज्ञानिक बना मददगार

कोरोना मरीजों के मन से भय और मेडिकल स्टॉफ को डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे अहम भूमिका निभा रहे हैं.

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Published : May 19, 2021, 10:47 PM IST

Updated : May 20, 2021, 12:59 AM IST

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मनोवैज्ञानिक बन रहे मददगार

सागर। कोरोना काल के दौरान अपनी जान की बाजी लगाकर मरीजों और डॉक्टरों के लिए मददगार बन रहे कई लोग ऐसे हैं, जो सुर्खियों में तो नहीं हैं, लेकिन इनका योगदान गौर करने लायक हैं. हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड चिकित्सालय में पदस्थ मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे की, जो पिछले एक साल से कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं. थकान के कारण डॉक्टरों को डिप्रेशन में जाने से रोकने में मददगार साबित हो रहे हैं.

कोरोना की पहली लहर में जब सागर में पहला कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आया था, तब मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे ने पीपीई किट पहनकर मरीज का मनोबल बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया था, जो आज तक रुका नहीं हैं. बोहरे पिछले एक साल से रोजाना पीपीई किट पहनकर कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रहे हैं. मरीजों का मनोबल बढ़ाने के लिए कई तरह की थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं जो डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टॉफ लंबे समय से कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं, उनको भी डिप्रेशन से बाहर निकालने में मदद कर रहे हैं.

मनोवैज्ञानिक बना मददगार
नहीं देखा पीछे मुड़करपहली लहर के दौरान शहर में प्रथम कोरोना पॉजिटिव मरीज मिला था. संक्रमित होने के चलते मरीज के मन में डर पैदा हो गया था. कोरोना की दहशत के कारण उसकी स्थिति गंभीर होती जा रही थी. इलाज के साथ बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने तय किया कि मरीज के मन से डर खत्म करने और इलाज के प्रति पॉजिटिव रखने के लिए मनोवैज्ञानिक की मदद लेनी होगी. मेडिकल कॉलेज में यह जिम्मेदारी मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे को सौंपी गई. अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए बोहरे ने न सिर्फ सागर के पहले कोरोना पॉजिटिव मरीज का मनोबल बढ़ाने का काम किया, बल्कि जब मरीजों के आने का सिलसिला बढ़ा, तो लगातार उनके अंदर सकारात्मकता बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रयास भी किए.

डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टॉफ को डिप्रेशन से बाहर निकालने में मददगार


कोरोना से लड़ाई के चलते अस्पतालों का स्टॉफ काफी थकान महसूस कर रहा हैं. थकान के कारण डॉक्टर के साथ-साथ पैरामेडिकल स्टॉफ भी डिप्रेशन में जाने लगा था. इन परिस्थितियों को देखते हुए मेडिकल कॉलेज के स्टॉफ को डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए अनुपम बोहरे को जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्होंने मेडिकल टीम और डॉक्टर्स को डिप्रेशन से बाहर निकाल कर उनके मनोबल को मजबूत किया. कोरोना मरीजों का इलाज निर्बाध गति से चलता रहे और मेडिकल स्टॉफ को कोई परेशानी न हों, इसके लिए भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं.


सकारात्मक सोच की जरूरत


मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे का मानना है कि कोरोना को लेकर लोगों के मन में भय और दहशत का आलम हैं. इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सकारात्मक सोच सबसे ज्यादा जरूरी हैं. अगर किसी व्यक्ति को कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी मिलती हैं, तो बीमारी की भयावहता को लेकर वह मानसिक रूप से कमजोर हो जाता हैं. इससे कोरोना से जंग जीतने में परेशानी होती हैं. कई मनोवैज्ञानिक तकनीक अपनाकर मरीजों का मनोबल बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

अनुपम बोहरे कहते हैं कि कोरोना एक ऐसी बीमारी है, जिससे लड़ने के लिए हमारे पास कोई हथियार नहीं है, लेकिन बचाव के कई तरीके हमारे पास हैं. इसलिए जरूरी है कि हम मास्क पहने, लगातार हाथों को सैनिटाइज करें और सबसे पहले वैक्सीनेशन कराएं.

सागर। कोरोना काल के दौरान अपनी जान की बाजी लगाकर मरीजों और डॉक्टरों के लिए मददगार बन रहे कई लोग ऐसे हैं, जो सुर्खियों में तो नहीं हैं, लेकिन इनका योगदान गौर करने लायक हैं. हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड चिकित्सालय में पदस्थ मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे की, जो पिछले एक साल से कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं. थकान के कारण डॉक्टरों को डिप्रेशन में जाने से रोकने में मददगार साबित हो रहे हैं.

कोरोना की पहली लहर में जब सागर में पहला कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आया था, तब मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे ने पीपीई किट पहनकर मरीज का मनोबल बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया था, जो आज तक रुका नहीं हैं. बोहरे पिछले एक साल से रोजाना पीपीई किट पहनकर कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रहे हैं. मरीजों का मनोबल बढ़ाने के लिए कई तरह की थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं जो डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टॉफ लंबे समय से कोरोना मरीजों का इलाज करते-करते डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं, उनको भी डिप्रेशन से बाहर निकालने में मदद कर रहे हैं.

मनोवैज्ञानिक बना मददगार
नहीं देखा पीछे मुड़करपहली लहर के दौरान शहर में प्रथम कोरोना पॉजिटिव मरीज मिला था. संक्रमित होने के चलते मरीज के मन में डर पैदा हो गया था. कोरोना की दहशत के कारण उसकी स्थिति गंभीर होती जा रही थी. इलाज के साथ बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने तय किया कि मरीज के मन से डर खत्म करने और इलाज के प्रति पॉजिटिव रखने के लिए मनोवैज्ञानिक की मदद लेनी होगी. मेडिकल कॉलेज में यह जिम्मेदारी मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे को सौंपी गई. अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए बोहरे ने न सिर्फ सागर के पहले कोरोना पॉजिटिव मरीज का मनोबल बढ़ाने का काम किया, बल्कि जब मरीजों के आने का सिलसिला बढ़ा, तो लगातार उनके अंदर सकारात्मकता बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रयास भी किए.

डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टॉफ को डिप्रेशन से बाहर निकालने में मददगार


कोरोना से लड़ाई के चलते अस्पतालों का स्टॉफ काफी थकान महसूस कर रहा हैं. थकान के कारण डॉक्टर के साथ-साथ पैरामेडिकल स्टॉफ भी डिप्रेशन में जाने लगा था. इन परिस्थितियों को देखते हुए मेडिकल कॉलेज के स्टॉफ को डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए अनुपम बोहरे को जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्होंने मेडिकल टीम और डॉक्टर्स को डिप्रेशन से बाहर निकाल कर उनके मनोबल को मजबूत किया. कोरोना मरीजों का इलाज निर्बाध गति से चलता रहे और मेडिकल स्टॉफ को कोई परेशानी न हों, इसके लिए भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं.


सकारात्मक सोच की जरूरत


मनोवैज्ञानिक अनुपम बोहरे का मानना है कि कोरोना को लेकर लोगों के मन में भय और दहशत का आलम हैं. इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सकारात्मक सोच सबसे ज्यादा जरूरी हैं. अगर किसी व्यक्ति को कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी मिलती हैं, तो बीमारी की भयावहता को लेकर वह मानसिक रूप से कमजोर हो जाता हैं. इससे कोरोना से जंग जीतने में परेशानी होती हैं. कई मनोवैज्ञानिक तकनीक अपनाकर मरीजों का मनोबल बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

अनुपम बोहरे कहते हैं कि कोरोना एक ऐसी बीमारी है, जिससे लड़ने के लिए हमारे पास कोई हथियार नहीं है, लेकिन बचाव के कई तरीके हमारे पास हैं. इसलिए जरूरी है कि हम मास्क पहने, लगातार हाथों को सैनिटाइज करें और सबसे पहले वैक्सीनेशन कराएं.

Last Updated : May 20, 2021, 12:59 AM IST
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