सागर। रहली ने मध्यप्रदेश को एक ऐसा नेता चुनकर दिया है, जिसकी पहचान मध्यप्रदेश में अपराजेय योद्धा के तौर पर की जाती है. रहली विधानसभा के विधायक 1985 से लगातार गोपाल भार्गव हैं. जो अब तक 8 चुनाव जीत चुके हैं और 2023 में 9वां चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हैं. सागर जिले की रहली विधानसभा क्षेत्र की पहचान एक धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी के तौर पर है. चंदेल काल से लेकर अब तक के इतिहास को अपने आंचल में समेटे सुनार नदी के किनारे स्थित रहली विधानसभा के इतिहास में जाएं तो जानकारी मिलती है कि 900 से 915 ई में चंदेल नरेश राहिल का राज इस इलाके में था और इसी दौरान यहां पर ऐतिहासिक सूर्य मंदिर बना होगा, जो अब भी स्थित है और पुरातत्व विभाग द्वारा सहेजा गया है.
रहली की खासियत: ये सूर्य मंदिर करीब 11 सौ साल पुराना है. बताया जाता है कि 14वीं शताब्दी में यहां अहीरों का राज था और यह इलाका राजा छत्रसाल बुंदेला के अधिकार क्षेत्र में आता था. जिन्होंने 1731 में पेशवा बाजीराव को दे दिया. पेशवा बाजीराव के राज में यहां के राजा और खासकर रानी लक्ष्मीबाई खैर ने यहां महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित विट्ठल भगवान का हुबहू मंदिर बनवाया, तो रहली में टिकीटोरिया मंदिर और हरसिद्धि माता के प्रसिद्ध रानिगर मंदिर का निर्माण कराया. फिर रहली पर अंग्रेजों का शासन रहा और 1827 से 1833 तक रहली एक जिले के रूप में स्थापित रही है. जिसे नए जिले का सदर मुकाम बना दिया गया था. सागर संभाग में रहली प्रमुख जिला था. इसमें तेजगढ़, हटा, दमोह, गढ़ाकोटा, देवरी, गौरझामर, नाहरमउ आदि परगने शामिल थे. रहली प्रमुख रूप से कृषि प्रधान इलाका है, यहां खाद्य प्रसंस्करण और बीड़ी उद्योग लोगों के रोजगार का साधन है. रहली में नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य की सीमा भी लगी हुई है.
रहली विधानसभा के पिछले तीन चुनावों के परिणाम:
विधानसभा चुनाव 2008: साल 2008 में गोपाल भार्गव का मुकाबला कांग्रेस के प्रत्याशी जीवन पटेल से था. गोपाल भार्गव ने 2008 में कुल 71 हजार 143 वोट हासिल की, जो कुल मतदान का 55% था. वहीं कांग्रेस के जीवन पटेल को 45 हजार 535 वोट हासिल हुई. जो कुल मतदान का 35 प्रतिशत था. इस तरह गोपाल भार्गव 25 हजार 608 मतों से चुनाव जीत गए.
विधानसभा चुनाव 2013: 2013 में गोपाल भार्गव के सामने कांग्रेस के बृजबिहारी पटैरिया प्रत्याशी के तौर पर सामने थे. जिन्हें गोपाल भार्गव के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा. गोपाल भार्गव को इस चुनाव में 64 फीसदी वोट हासिल हुए और उन्हें 1 लाख 1 हजार 899 मत हासिल हुए. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी बृजबिहारी पटैरिया को महज 50 हजार 134 मत हासिल हुए, जो कुल मतदान का 31 फीसदी था. इस तरह गोपाल भार्गव 51 हजार 765 मतों से विजयी हुए.
विधानसभा चुनाव 2018: 2018 विधानसभा चुनाव में गोपाल भार्गव 8 बार चुनाव मैदान में थे. 2018 में गोपाल भार्गव ने 93 हजार 690 मत हासिल किए, जो कुल मतदान का 56 फीसदी था. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश साहू को 66 हजार 802 मत हासिल हुए, जो कुल मतदान का 40 फीसदी था. इस तरह गोपाल भार्गव 26 हजार 888 मतों से गोपाल भार्गव विजयी हुए.
क्या कहते हैं रहली के चुनाव समीकरण: 1985 के पहले रहली विधानसभा सीट की पहचान कांग्रेस के गढ़ के रूप में होती थी, लेकिन अब यह सीट भाजपा की के अजेय गढ़ के तौर पर पहचानी जाती है. हालांकि इसका श्रेय व्यक्तिगत रूप से गोपाल भार्गव को जाता है, क्योंकि उन्होंने रहली की जनता से सतत संपर्क जारी रखकर ऐसा नाता जोड़ा है कि रहली की जनता हर बार उन्हें जिताकर विधानसभा भेजती है. जातीय तौर पर देखें तो रहली विधानसभा सीट कुर्मी और ब्राह्मण बाहुल्य सीट है. कुर्मी मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने पर कांग्रेस गोपाल भार्गव को हराने कभी ब्राह्मण तो कभी कुर्मी नेताओं को पर दांव लगाती रही है, लेकिन सियासत के मंझे हुए खिलाडी गोपाल भार्गव ने कांग्रेस की हर सियासी चाल को नाकाम किया है. हालांकि 2018 में कांग्रेस ने जातीगत समीकरण ताक पर रखकर ओबीसी राजनीति के लिहाज से कमलेश साहू को प्रत्याशी बनाया. फिर भी गोपाल भार्गव को पराजित नहीं कर पाए. 2023 में एक बार फिर उम्मीद है कि गोपाल भार्गव और कमलेश साहू के बीच मुकाबला हो सकता है.
रोजगार है अब भी सबसे बड़ा मुद्दा: 1985 से लगातार विधायक रहने के बाद जब गोपाल भार्गव 2003 में कैबिनेट मंत्री बने तो उन्होंने अपने विभागों के जरिए रहली के सर्वांगीण विकास की शुरूआत की. कृषि मंत्री रहते हुए किसानों की सुविधाएं के लिए सिंचाई के साधन, सामुदायिक भवन और कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई, तो पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए गांव-गांव में विकास कार्य कराए. उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र के गांव-गांव को प्रधानमंत्री सड़क के द्वारा जोड़ा. इसके अलावा पंचायतों में मूलभूत सुविधाओं का विकास कराया. पीडब्ल्यूडी मंत्री रहते हुए विधानसभा क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछाया और कई पुलों का निर्माण कराया. गोपाल भार्गव ने अपने विधानसभा क्षेत्र में शुष्क उद्यानिकी शोध केंद्र के अलावा हार्टीकल्चर काॅलेज की सौगात दी. सर्वांगीण विकास की तमाम कोशिशों के बाद रहली विधानसभा रोजगार के मामले में पिछड़ा हुआ है. गोपाल भार्गव काफी कोशिशों के बाद ऐसा कोई उद्योग या सौगात अपने विधानसभा को नहीं दे पाए. हालांकि रहली विधानसभा में स्थित नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलने वाला है और माना जा रहा है कि इसके बाद पर्यटन रहली विधानसभा क्षेत्र के लोगों के रोजगार के अवसर प्रदान करेगा.
कौन कौन है दावेदार: वैसे तो देखा जाए तो गोपाल भार्गव 9 बार चुनाव लड़ने के लिए तैयार और अंगद की तरह डटे हुए हैं, लेकिन 71 साल उम्र के कारण अगर बीजेपी 70 प्लस का फार्मूला तय करती है, तो हो सकता है कि गोपाल भार्गव चुनाव ना लडे़ं. हालांकि कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी मध्यप्रदेश में किसी सीट पर जोखिम लेना नहीं चाहेगी. इसलिए माना जा रहा है कि गोपाल भार्गव 9वीं बार चुनाव मैदान में होंगे. अगर टिकट बदल भी जाता है, तो भाजपा से रहली सीट के सबसे बडे़ दावेदार गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव दीपू होंगे. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ कमलेश साहू का उम्मीदवार होना तय माना जा रहा है, लेकिन कमलेश साहू के अलावा सौरभ हजारी, बीडी पटेल और कई दावेदार चुनाव मैदान में नजर आ सकते हैं.