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स्पैनिश फ्लू के वक्त इसी क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

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Published : Jun 19, 2021, 2:28 PM IST

एमपी-यूपी की सीमा पर स्थित 100 साल से ज्यादा पुराना ब्रिटिश कालीन क्वारंटाइन सेंटर स्थापित है. यहां स्पैनिश फ्लू के दौरान संक्रमितों को क्वारंटाइन किया था.

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क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

सागर। देश ही नहीं अगर दुनिया की बात की जाए, तो कोरोना महामारी के कारण कुछ ऐसे शब्द हमारे जीवन से जुड़े हैं, जिन्हें हमने पहले न के बराबर सुना था. इनमें सबसे ज्यादा चर्चित 'क्वारंटाइन' शब्द है. जब 2019 में कोरोना महामारी फैली, तो 'क्वारंटाइन' शब्द काफी तेजी से प्रचलित हुआ. पहली बार इस शब्द से रूबरू हुए लोग शब्द को जानने और समझने के लिए इंटरनेट पर तलाश करते नजर आए, लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित सागर जिले के मालथौन कस्बे में करीब डेढ़ सौ साल से लोग इस शब्द से भलीभांति परिचित हैं. इसकी वजह यह है कि बस स्टैंड के पास ही खंडहर के कुछ अवशेष हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका निर्माण अंग्रेजों ने कराया था. खास बात यह है कि मालथौन के लोग इस जगह को शुरू से 'क्वारंटाइन' बोलते हैं. मतलब साफ है कि भले ही 'क्वारंटाइन' शब्द से हमारा परिचय पिछले दो सालों में हुआ हों, लेकिन एक छोटे से कस्बे के लोग इस शब्द को पिछले डेढ़ सौ साल से जानते हैं. इसका महत्व समझते हैं.

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क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

स्थानीय लोगों और इतिहासकारों की मानें, तो इसका उपयोग 1918-19 में फैले स्पैनिश फ्लू यानी लाल बुखार से पीड़ित लोगों को क्वारंटाइन करने के लिए किया गया था. इसके अलावा मालथौन देश के बीचों बीच ऐसी जगह पर स्थित था, जहां से कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक परिवहन होता था. ब्रिटिश जमाने में बाजार और मेले के लिए पशु व्यापारी इधर से ही गुजरते थे. इसलिए मालथौन में प्रवेश करते ही सभी पशुओं को क्वारंटाइन किया जाता था. देखा जाता था कि उन्हें कोई संक्रामक बीमारी तो नहीं है. सात दिन की क्वारंटाइन अवधि के बाद बीमार पशुओं को वहीं रोक लिया जाता था. बाकी पशुओं का टीकाकरण करके आगे के सफर के लिए अनुमति दी जाती थी.

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क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

खास बात यह है कि इस क्वारंटाइन सेंटर का उपयोग 80 के दशक तक मध्य प्रदेश का पशु पालन और पशु चिकित्सा विभाग करता आ रहा हैं, लेकिन अब यह धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है.

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क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज



मालथौन में है 'क्वारंटाइन' नाम की जगह

जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर मालथौन कस्बे में बस स्टैंड और आरटीओ दफ्तर के नजदीक करीब चार पांच एकड़ में फैला हुआ एक खंडहर नुमा इलाका है. इसे स्थानीय लोग 'क्वारंटाइन' बोलते हैं. इस इलाके में जो खंडहर बने हुए हैं, उसके बारे में कहा जाता है कि डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेजों ने इसका निर्माण कराया था. यहां पर शुरुआती दौर में पशुओं के संक्रामक रोगों के इलाज और टीकाकरण के लिए पशुओं को क्वारंटाइन किया जाता था. इसके बाद 1918-20 में फैले स्पैनिश फ्लू (लाल बुखार) के समय यहां पर संक्रमित लोगों को भी क्वारंटाइन किया गया था.

स्पैनिश फ्लू के वक्त क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

दरअसल, यह इलाका उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है, जो सागर और ललितपुर जिले को जोड़ता हैं. बुजुर्ग द्वारका प्रसाद तिवारी बताते हैं कि आम लोगों के लिए क्वारंटाइन शब्द अभी एक साल पहले ही आया है, लेकिन मालथौन में बच्चा-बच्चा और बुजुर्ग इस शब्द को कई सालों से जानते हैं. यह क्वारंटाइन सेंटर अंग्रेजों ने बनाया था. संक्रामक रोग होने पर यहां जानवरों को रखा जाता था. उनका इलाज किया जाता था. इसी दौरान स्पैनिश फ्लू यानी लाल बुखार आया था. उस समय हमारे देश में केवल आयुर्वेदिक इलाज की पद्धति थी. ब्रिटिश फौज के डॉक्टर इलाज का काम करते थे. जो स्थानीय लोग उनकी सेवा में लगे हुए थे, उनका भी इलाज करते थे.

द्वारका प्रसाद ने कहा कि जब स्पैनिश फ्लू फैला, तो इस क्वारंटाइन सेंटर में लोगों को भी रखा गया था. फौज के डॉक्टरों ने उनसे कहा था कि आपको गांव नहीं जाना है. कुछ लोग इस बात से डर कर गांव छोड़कर भाग गए थे, लेकिन जो समझदार थे, वह डॉक्टर के पास गए, क्वारंटाइन हुए. आज भी हम लोग इसको क्वारंटाइन ही बोलते हैं.

1980 के दशक तक मध्य प्रदेश सरकार के पशु चिकित्सा विभाग ने किया उपयोग

मालथौन कस्बे की इस जगह को जिस तर्क के आधार पर लोग 'क्वारंटाइन' कहते हैं, उसकी पुष्टि मध्य प्रदेश सरकार के पशु चिकित्सा विभाग के अफसर भी करते हैं. पशु चिकित्सा विभाग के उपसंचालक डॉ. आरपी यादव का कहना है कि कस्बे में ब्रिटिश कालीन क्वारंटाइन एरिया था. इसकी करीब 4 से 5 एकड़ जमीन थी. इसके खंडहर अभी आरटीओ ऑफिस के पास में ही हैं. वहां की इमारतें खंडहरों में तब्दील हो रही हैं. उस जमाने में दूसरे प्रदेशों से आने वाले पशु मालथौन से होकर गुजरते थे, तो इस क्वारंटाइन एरिया में उन्हें सात दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाता था. यह देखा जाता था कि पशुओं में कोई संक्रामक रोग तो नहीं है. अगर कोई रोग होता भी था, तो उनको वहीं रोककर इलाज दिया जाता था. बाकी पशुओं का टीकाकरण किया जाता था. उस समय परिवहन की सुविधाएं काफी कम थी. इसलिए किसान और पशु व्यापारी पशुओं का पैदल परिवहन करते थे.


क्या कहते हैं इतिहास के जानकार ?

बुंदेलखंड के इतिहास पर शोध करने वाले प्रोफेसर भरत शुक्ला का कहना है कि सन् 1918 में विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद स्पेन में स्पैनिश फ्लू फैला था. भारत में इसे लाल बुखार के नाम से जाना जाता है.

मालथौन में बने क्वारंटाइन सेंटर की बात जाए, तो ब्रिटिश काल में इसे इसलिए बनाया गया था, क्योंकि यहां पर लाल बुखार से पीड़ित लोगों और संक्रामक रोगों से पीड़ित जानवरों को रखा जाता था. 'क्वारंटाइन' शब्द इतिहास में 100 साल से ज्यादा पुराना हैं. स्पैनिश फ्लू से पूरे विश्व में 50 करोड़ की आबादी प्रभावित हुई थी, जो विश्व का एक तिहाई हिस्सा था. लगभग पांच करोड़ लोगों की मृत्यु हो गई थी. भारत में भी दो करोड़ लोगों की मौत हुई थी. इसी से बचने के लिए ब्रिटिश सरकार ने क्वारंटाइन सेंटर बनाया था.

सागर। देश ही नहीं अगर दुनिया की बात की जाए, तो कोरोना महामारी के कारण कुछ ऐसे शब्द हमारे जीवन से जुड़े हैं, जिन्हें हमने पहले न के बराबर सुना था. इनमें सबसे ज्यादा चर्चित 'क्वारंटाइन' शब्द है. जब 2019 में कोरोना महामारी फैली, तो 'क्वारंटाइन' शब्द काफी तेजी से प्रचलित हुआ. पहली बार इस शब्द से रूबरू हुए लोग शब्द को जानने और समझने के लिए इंटरनेट पर तलाश करते नजर आए, लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित सागर जिले के मालथौन कस्बे में करीब डेढ़ सौ साल से लोग इस शब्द से भलीभांति परिचित हैं. इसकी वजह यह है कि बस स्टैंड के पास ही खंडहर के कुछ अवशेष हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका निर्माण अंग्रेजों ने कराया था. खास बात यह है कि मालथौन के लोग इस जगह को शुरू से 'क्वारंटाइन' बोलते हैं. मतलब साफ है कि भले ही 'क्वारंटाइन' शब्द से हमारा परिचय पिछले दो सालों में हुआ हों, लेकिन एक छोटे से कस्बे के लोग इस शब्द को पिछले डेढ़ सौ साल से जानते हैं. इसका महत्व समझते हैं.

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क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

स्थानीय लोगों और इतिहासकारों की मानें, तो इसका उपयोग 1918-19 में फैले स्पैनिश फ्लू यानी लाल बुखार से पीड़ित लोगों को क्वारंटाइन करने के लिए किया गया था. इसके अलावा मालथौन देश के बीचों बीच ऐसी जगह पर स्थित था, जहां से कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक परिवहन होता था. ब्रिटिश जमाने में बाजार और मेले के लिए पशु व्यापारी इधर से ही गुजरते थे. इसलिए मालथौन में प्रवेश करते ही सभी पशुओं को क्वारंटाइन किया जाता था. देखा जाता था कि उन्हें कोई संक्रामक बीमारी तो नहीं है. सात दिन की क्वारंटाइन अवधि के बाद बीमार पशुओं को वहीं रोक लिया जाता था. बाकी पशुओं का टीकाकरण करके आगे के सफर के लिए अनुमति दी जाती थी.

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क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

खास बात यह है कि इस क्वारंटाइन सेंटर का उपयोग 80 के दशक तक मध्य प्रदेश का पशु पालन और पशु चिकित्सा विभाग करता आ रहा हैं, लेकिन अब यह धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है.

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क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज



मालथौन में है 'क्वारंटाइन' नाम की जगह

जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर मालथौन कस्बे में बस स्टैंड और आरटीओ दफ्तर के नजदीक करीब चार पांच एकड़ में फैला हुआ एक खंडहर नुमा इलाका है. इसे स्थानीय लोग 'क्वारंटाइन' बोलते हैं. इस इलाके में जो खंडहर बने हुए हैं, उसके बारे में कहा जाता है कि डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेजों ने इसका निर्माण कराया था. यहां पर शुरुआती दौर में पशुओं के संक्रामक रोगों के इलाज और टीकाकरण के लिए पशुओं को क्वारंटाइन किया जाता था. इसके बाद 1918-20 में फैले स्पैनिश फ्लू (लाल बुखार) के समय यहां पर संक्रमित लोगों को भी क्वारंटाइन किया गया था.

स्पैनिश फ्लू के वक्त क्वारंटाइन सेंटर में किया जाता था संक्रमितों का इलाज

दरअसल, यह इलाका उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है, जो सागर और ललितपुर जिले को जोड़ता हैं. बुजुर्ग द्वारका प्रसाद तिवारी बताते हैं कि आम लोगों के लिए क्वारंटाइन शब्द अभी एक साल पहले ही आया है, लेकिन मालथौन में बच्चा-बच्चा और बुजुर्ग इस शब्द को कई सालों से जानते हैं. यह क्वारंटाइन सेंटर अंग्रेजों ने बनाया था. संक्रामक रोग होने पर यहां जानवरों को रखा जाता था. उनका इलाज किया जाता था. इसी दौरान स्पैनिश फ्लू यानी लाल बुखार आया था. उस समय हमारे देश में केवल आयुर्वेदिक इलाज की पद्धति थी. ब्रिटिश फौज के डॉक्टर इलाज का काम करते थे. जो स्थानीय लोग उनकी सेवा में लगे हुए थे, उनका भी इलाज करते थे.

द्वारका प्रसाद ने कहा कि जब स्पैनिश फ्लू फैला, तो इस क्वारंटाइन सेंटर में लोगों को भी रखा गया था. फौज के डॉक्टरों ने उनसे कहा था कि आपको गांव नहीं जाना है. कुछ लोग इस बात से डर कर गांव छोड़कर भाग गए थे, लेकिन जो समझदार थे, वह डॉक्टर के पास गए, क्वारंटाइन हुए. आज भी हम लोग इसको क्वारंटाइन ही बोलते हैं.

1980 के दशक तक मध्य प्रदेश सरकार के पशु चिकित्सा विभाग ने किया उपयोग

मालथौन कस्बे की इस जगह को जिस तर्क के आधार पर लोग 'क्वारंटाइन' कहते हैं, उसकी पुष्टि मध्य प्रदेश सरकार के पशु चिकित्सा विभाग के अफसर भी करते हैं. पशु चिकित्सा विभाग के उपसंचालक डॉ. आरपी यादव का कहना है कि कस्बे में ब्रिटिश कालीन क्वारंटाइन एरिया था. इसकी करीब 4 से 5 एकड़ जमीन थी. इसके खंडहर अभी आरटीओ ऑफिस के पास में ही हैं. वहां की इमारतें खंडहरों में तब्दील हो रही हैं. उस जमाने में दूसरे प्रदेशों से आने वाले पशु मालथौन से होकर गुजरते थे, तो इस क्वारंटाइन एरिया में उन्हें सात दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाता था. यह देखा जाता था कि पशुओं में कोई संक्रामक रोग तो नहीं है. अगर कोई रोग होता भी था, तो उनको वहीं रोककर इलाज दिया जाता था. बाकी पशुओं का टीकाकरण किया जाता था. उस समय परिवहन की सुविधाएं काफी कम थी. इसलिए किसान और पशु व्यापारी पशुओं का पैदल परिवहन करते थे.


क्या कहते हैं इतिहास के जानकार ?

बुंदेलखंड के इतिहास पर शोध करने वाले प्रोफेसर भरत शुक्ला का कहना है कि सन् 1918 में विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद स्पेन में स्पैनिश फ्लू फैला था. भारत में इसे लाल बुखार के नाम से जाना जाता है.

मालथौन में बने क्वारंटाइन सेंटर की बात जाए, तो ब्रिटिश काल में इसे इसलिए बनाया गया था, क्योंकि यहां पर लाल बुखार से पीड़ित लोगों और संक्रामक रोगों से पीड़ित जानवरों को रखा जाता था. 'क्वारंटाइन' शब्द इतिहास में 100 साल से ज्यादा पुराना हैं. स्पैनिश फ्लू से पूरे विश्व में 50 करोड़ की आबादी प्रभावित हुई थी, जो विश्व का एक तिहाई हिस्सा था. लगभग पांच करोड़ लोगों की मृत्यु हो गई थी. भारत में भी दो करोड़ लोगों की मौत हुई थी. इसी से बचने के लिए ब्रिटिश सरकार ने क्वारंटाइन सेंटर बनाया था.

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