सागर। 26 जुलाई 1999 के उस ऐतिहासिक दिन को पूरा देश करगिल विजय दिवस के रुप में याद करता है. करगिल युद्ध के विजय 20 साल पूरे हो चुके हैं. जहां सारा देश विजय दिवस के रुप में भारतीय सेना के शौर्य़ को विजयदिवस के रुप में याद कर रहा है. कारगिल के युद्ध विजय में सागर के महार रेजिमेंट के रणबांकुरों ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी. जिसकी यादें आज भी सागर की महार रेजिमेंट में देखने को मिलती है.
सागर के महार रेजिमेंट की म्यूज़ियम में करगिल युद्ध से जुड़ी कई यादें मौजूद है. जिनमें युद्ध में हार के दौरान पीठ दिखाकर भागने वाले पाकिस्तानी सैन्य अफ़सरों की ज़ब्त की वर्दी, उनके हथियार, बम के गोले जैसी और भी बहुत सी युद्ध की यादग़ार यादें संजोई हुई हैं.
हिमालय की पहाड़ियों की बर्फिली चोटियों पर पाक सेना जिन आधुनिक बंकरों में छुपी थीं, महार के योद्धाओं ने न सिर्फ उन पाक घुसपैठियों को ख़देड़ा बल्कि उस आधुनिक उष्मरोधी बंकर को भी ज़प्त कर लिया जिसके बाद भारतीय सेना ने महार के जवानों की शौर्य की निशानी के तौर पर इसे महार म्यूज़िम को सौंप दिया. जो आज भी सागर में देखने को मिलते है.
महार के जवानों ने युद्ध के दौरान सियाचिन के ग्लेशियरों पर भी मोर्चा संभाला था, जहां अपनी मातृभूमी की रक्षा के लिए उन्होने अपना खून भी बहाया, युद्ध में महार के कुल 24 यौद्धा शहीद हुए थे, जिनमें से 7 जवान सिर्फ महार रेजिमेंट की 9वीं बटालियन के थे. इन्ही शहीदों में एक मनोज तलवार के नाम पर शियाचिन के ग्लेशियर नंबर तीन पर सैन्य पोस्ट का नाम मेजर शहीद मनोज तलवार के नाम पर रखा गया है. महार रेजिमेंट वीर सैनिकों ने अपने प्राण न्यौछावर कर पाक के नापाक कदमों को भारत की पाक ज़मीन पर टिकने न दिया और उन्हे हिन्दुस्तानी सीमा के बाहर ख़देड़ दिया.