सागर। नदी जोड़ो परियोजना को लेकर शुरुआत से ही सवाल खड़े होते रहे हैं. खासकर इस परियोजना से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर पर्यावरणविद लगातार सचेत करते आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश चुनाव को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने केन-बेतवा लिंक परियोजना को मंजूरी तो दे दी लेकिन 44605 करोड़ की इस परियोजना को लेकर पर्यावरणविद लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं. दूसरी तरफ राज्य और केंद्र सरकार इस परियोजना को बुंदेलखंड के लिए वरदान बता रही हैं. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का दावा है कि इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर सूखाग्रस्त बुंदेलखंड की तस्वीर पंजाब हरियाणा जैसी होगी. इस मामले में ईटीवी भारत ने परियोजना का विरोध कर रहे वन एवं पर्यावरण विशेषज्ञों से बात की. विशेषज्ञों के मुताबिक इस परियोजना से पर्यावरण और खासकर जैव विविधता को भारी नुकसान होगा जिसके गंभीर परिणाम हमें भविष्य में भुगतने होंगे. आगे बढ़ने से पहले आइए जान लेते हैं आखिर केन बेतवा नदी जोड़ो परियजोना आखिर क्या है?
मध्यप्रदेश को केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से फायदा
मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि परियोजना के पूरे होने पर काफी फायदे होंगे.
1.बुंदेलखंड क्षेत्र में 8 लाख 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा
2.सिंचाई होने से कृषि उत्पादन बढ़ेगा
3.प्रदेश की 41 लाख आबादी को पेयजल की सुविधा
4.भूजल की स्थिति में सुधार आएगा
5. बुंदेलखंड के पन्ना जिले में 70 हजार हेक्टेयर, छतरपुर जिले में 3 लाख 11 हजार 151 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई
6.दमोह में 20 हजार 101 हेक्टेयर,टीकमगढ़ एवं निवाड़ी में 50हजार 112 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई
7.सागर में 90 हजार हेक्टेयर, रायसेन में 6 हजार हेक्टेयर,विदिशा में 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई
8.शिवपुरी में 76 हजार हेक्टेयर ,दतिया जिले में 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई
9.103 मेगावॉट हाइड्रो पावर और 27 मेगावॉट सोलर पावर का उत्पादन
10.10.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पूरे साल सिंचाई
सवाल है कि अगर केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना से इतने फायदे हैं तो इसका विरोध क्यों हो रहा है. दरअसल वन एवं पर्यावरण के लिए केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को काफी नुकसानदायक बताया जा रहा है. वन एवं पर्यावरण के लिए संघर्षरत प्रयत्न संस्था के संयोजक अजय दुबे का कहना है कि केन बेतवा लिंक परियोजना से वन एवं पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए वह 2016-17 से लगातार विरोधा करते आ रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार इस परियोजना में जितना बजट खर्च कर रही है उससे कम बजट में इस इलाके में सिंचाई सुविधाएं बढ़ाई जा सकती थीं लेकिन सरकार ने हमारी बात पर ध्यान नहीं दिया.
केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से नुकसान
प्रोजेक्ट को पूरा होने में 8 साल लगेंगे. इसमें छतरपुर ज़िले में पन्ना टाइगर रिज़र्व के अंदर दौधन बांध का निर्माण किया जाएगा जिसका प्रभाव इस बेहद संवेदनशील टाइगर रिज़र्व पर पड़ेगा. पर्यावरणविदों का कहना है कि-
1. इस परियोजना से पन्ना नेशनल टाइगर रिजर्व का 200 वर्ग किमी क्षेत्र पानी में डूब जाएगा
2.पन्ना नेशनल पार्क का करीब 40% हिस्सा डूब में आ रहा है
3.इस क्षेत्र के 7 लाख पेड़ पानी में समा जाएंगे
पर्यावरण एक्टिविस्ट अजय दुबे बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व बायोस्फेयर रिजर्व (Biosphere reserve) है, बाकायदा सरकार ने इसे अधिसूचित किया है. इस इलाके में जैव विविधता (Bio diversity) की प्रचुरता है. अमरकंटक और सतपुड़ा भी बायोस्फीयर रिजर्व हैं. करीब एक साल पहले ही यूनेस्को ने जैव विविधता को लेकर पन्ना टाइगर रिजर्व को विश्व धरोहर में शामिल किया था. लेकिन केन बेतवा प्रोजेक्ट से इस धरोहर पर खतरा मंडरा रहा है.
आसपास की जलवायु और तापमान पर पड़ेगा असर
पर्यावरणविद सुभाष चंद्र पांडे बताते हैं कि बारहमासी नदी अपने प्रवाह वाले इलाके के तापमान को नियंत्रित रखती है. अगर उसे किसी ऐसी नदी से जोड़ा जाता है,जो उससे छोटी है तो बारहमासी नदी की प्रवाह क्षमता पर असर पड़ेगा और ज्यादा पानी छोटी नदी की तरफ जाएगा, जिससे तापमान नियंत्रित करने की क्षमता पर असर पड़ेगा. इसका सारा असर आसपास की जलवायु पर पड़ेगा.
जैव विविधता प्रभावित होने से आसपास की जंगल और जमीन होगी प्रभावित
नदी जोड़ो परियोजना के अंतर्गत जब दो अलग प्रकृति की नदियों को जोड़ा जाएगा,तो इससे क्षेत्र की जैव विविधता पर काफी असर पड़ेगा. नदी में रहने वाले जलीय जंतुओं और वनस्पति खत्म हो सकती है. इसका असर आसपास के जंगलों और खेती की जमीन और भूजल पर भी पड़ेगा जो काफी नुकसानदायक हो सकता है.
खेती की जमीन की उर्वरा क्षमता प्रभावित होने का खतरा
पर्यावरणविद बताते हैं कि नदी अपने उद्गम से जिन जिन इलाकों से गुजरती है, उन इलाकों की चट्टान और मिट्टी के स्वभाव को अपने आप में समाहित कर लेती है जिसका असर खेती की जमीन पर पड़ता है. नदी जोड़ो परियोजना से किसी भी इलाके की खेती की उर्वरक क्षमता में काफी बदलाव आ सकता है,जो किसानों के लिए चिंता का विषय होगा.
नदी से छेड़छाड़ से बढ़ सकता है बाढ़ और सूखे का खतरा
पर्यावरणविदों के मुताबिक नदी एक प्राकृतिक संसाधन है, जो अपने आप बने रास्तों के जरिए बहती है. इस परियोजना के अंदर जब उसकी प्रकृति और स्वभाव से छेड़छाड़ की जाएगी, तो आसपास के इलाकों में बाढ़ के साथ-साथ सूखे का भी खतरा बढ़ सकता है.
केन बेतवा प्रोजेक्ट में कानूनी पेंच (Legality issues)
पर्यावरणविदों की दलील है कि अभी तक केन बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को वन, पर्यावरण और वन्यजीव से जुड़ा क्लियरेन्स नहीं मिला है इसलिए सरकार को इसे मंज़ूरी देने का अधिकार नहीं है. इस प्रोजेक्ट को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) में चुनौती दी गई है. पर्यावरणविद हिमांशु ठक्कर का दावा है कि फॉरेस्ट एडवायज़री कमेटी की कई गाइडलाइन्स के पालन को संज्ञान में नहीं लिया गया है. उनका ये भी दावा है कि इस प्रोजेक्ट को वन या संरक्षित क्षेत्र के अंदर नहीं शुरू किया जा सकता. 2016 में ज़रूर नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ से जुड़ी स्टैन्डिंग कमेटी ने वन्यजीवन से जुड़ा क्लियरेन्स दिया था लेकिन 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल एमपावर्ड कमेटी ने इस क्लियरेन्स को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने और बेहतर विकल्प पर ग़ौर न करने के लिए फटकार लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने नदियों को जोड़ने को वन्यजीवन के लिए बड़ा खतरा बताया, खासतौर पर पन्ना के बाघ और घड़ियालों के लिए. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. पिछले साल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े एक्सपर्ट पैनल ने केन बेतवा प्रोजेक्ट से ही जुड़े लोवर ओर्र प्रोजेक्ट (Lower Orr project) को क्लियरेन्स देना टाल दिया था.
केन बेतवा प्रोजेक्ट या होना चाहिए दूसरा विकल्प?
पर्यावरणविद अजय दुबे कहते हैं कि सरकार को इसका विकल्प ढूंढना चाहिए, क्योंकि जैव विविधता को भारी नुकसान होने वाला है, खासकर पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूद बाघों के लिए ये प्रोजेक्ट खतरनाक होगा. फिलाहल पन्ना में बाघों की संख्या 40 से 50 है. यहां का माहौल उनके लिए पूरी तरह से मुफीद है. 2008 में जब पन्ना में सभी बाघ खत्म हो गए थे तो 2009 में फिर बाघों को बचाने की मुहिम चली थी. 10 साल की मेहनत के बाद पन्ना में फिर से बाघ बस पाए हैं. इस परियोजना के कारण बाघों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाएगा. पन्ना में पाए जाने वाले गिद्ध दुर्लभ प्रजाति के हैं. इस तरह के पर्यावरण में होने से बदलाव से इनकी प्रजाति के भी नष्ट होने का खतरा है.