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हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के शिष्य बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर, सरकार से नहीं कोई उम्मीद

हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद के शिष्य टेकचंद यादव आज बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं. टेकचंद यादव ने ध्यानचंद से हॉकी की कई बारिकियां सीखी थी. वे भोपाल की विश्व प्रसिद्ध टीम का भी हिस्सा बने और न्यूजीलैंड, नीदरलैंड जैसी विश्व स्तरीय टीमों के खिलाफ उन्होंने भोपाल टीम से मैच खेले. इसके बाद भी उनका ध्यान रखने वाला कोई नहीं है और उन्हें भी सरकार से कोई उम्मीद नहीं है.

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ध्यानचंद के शिष्य बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर
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Published : Nov 21, 2022, 10:24 PM IST

Updated : Nov 21, 2022, 11:06 PM IST

सागर। शहर के कैंट इलाके में एक टूटे-फूटे घर में अकेले जीवन बिता रहे 82 साल के टेकचंद यादव (dhyan chand student tek chand) को देखकर कोई नहीं कह सकता कि कभी ये हॉकी के जादूगर ध्यानचंद (hockey legend major dhyan chand) के प्रिय शिष्य हुआ करते थे. उनसे हॉकी की बारीकियां सीख कर उन्होंने ना सिर्फ सागर का नाम रोशन किया, बल्कि जब मध्य प्रदेश का गठन नहीं हुआ था, तब भोपाल की विश्व प्रसिद्ध टीम का भी हिस्सा बने और न्यूजीलैंड, नीदरलैंड जैसी विश्व स्तरीय टीमों के खिलाफ उन्होंने भोपाल टीम से मैच खेले. पिता की मौत के चलते महज 26 साल की उम्र में उन्होंने हॉकी खेलना छोड़ दिया. इस बात को लेकर ध्यानचंद भी नाराज हुए, लेकिन मजबूरी में उन्हें अपने परिवार का व्यवसाय संभालना पड़ा. उनके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं बचा और आज वह एक टूटे-फूटे घर में अकेले जीवन बिता रहे हैं. खास बात ये है कि उन्हें सरकार से कोई उम्मीद नहीं है. क्योंकि उन्हें इस बात का दुख है कि जब ध्यानचंद अपने अंतिम वक्त में बीमार हुए तो उन्हें दिल्ली में अस्पताल में बिस्तर तक हासिल नहीं हुआ और उन्होंने जमीन पर अंतिम सांसे ली थी.

बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर टेकचंद

महार रेजिमेंट के कोच थे ध्यानचंद,तब मिला हॉकी सीखने का मौका: दरअसल टेक चंद यादव सागर के सागर स्पोर्ट्स क्लब से हॉकी खेलते थे. चंद यादव के मामा हॉकी खेलते थे और उस समय खेलकूद में हॉकी का बड़ा नाम हुआ करता था, तो हम लोग स्कूल से आने के बाद मामा के साथ हाकी खेलने जाया करते थे. सेना की महार रेजीमेंट की हॉकी टीम को प्रशिक्षित करने के लिए मेजर ध्यानचंद को कोच बनाया गया था. मेजर ध्यानचंद महार रेजीमेंट के कोच बने तो महार रेजीमेंट की टीम के प्रैक्टिस मैच के लिए उन्होंने सागर स्पोर्ट्स क्लब की टीम को बुलाया. सेना की टीम को अभ्यास कराने के लिए जो लोकल टीम बनाई गई थी, टेक चंद यादव उसका हिस्सा थे.

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ध्यानचंद के शिष्य टेकचंद यादव

भोपाल हॉकी में कमाया बड़ा नाम, कई विदेशी टीमों से खेले मैच: टेकचंद यादव बताते है कि सागर की डिस्ट्रिक्ट हॉकी एसोसिएशन भोपाल हाकी एसोसिएशन से जुड़ी हुई थी. जब भी भोपाल 11 टीम का सिलेक्शन किया जाता था, तो हम लोगों को भी सिलेक्शन के लिए बुलाया जाता था. मेजर ध्यानचंद ने मुझे भोपाल हॉकी टीम में सिलेक्शन के लिए भेजा और मेरा सिलेक्शन हो गया. तब भोपाल की टीम देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की जानी-मानी टीमों से भी मैच खेलती थी. टेक चंद यादव ने मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में होने वाले प्रसिद्ध महाराजा हॉकी कप में सागर को जीत दिलाई. वहीं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के प्रसिद्ध हॉकी टूर्नामेंट में भी उन्होंने अपनी हॉकी का लोहा मनवाया.

सरकार से नहीं टेकचंद को कोई आस

अशोक ध्यानचंद Exclusive: "मेजर ध्यानचंद का नाम इतना बड़ा, उसपर न हो राजनीति"

परिवार में बच्चे अकेले बदहाल जीवन जीने को मजबूर: महज 26 साल की उम्र में टेकचंद यादव का करियर उछाल पर था तो पिता की मौत के कारण उन्हें साल 1963 में हॉकी छोड़ना पड़ी और परिवार का व्यवसाय संभालना पड़ा. धीरे-धीरे टेकचद यादव हॉकी से दूर हो गए और परिवार में भी अकेले बचे. आज वह अपने परिवार के ही एक जर्जर मकान में जीवन बिता रहे हैं. उनके भाई दो वक्त का खाना भेज देते हैं. बाकी समय झोपड़ी नुमा घर में अपना वक्त बिताते रहते हैं (tek chand live bad condition in sagar). उनके मकान की ये हालत है कि हॉकी से जुड़ी यादगार चीजें भी अब उनके पास नहीं बची है.

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झोपड़ी में रहते हैं टेकचंद यादव

सरकार से नहीं मदद की उम्मीद: टेकचंद यादव से जब उनकी बदहाली को लेकर बात की तो पता चला उन्हें सरकार से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. जब सरकार मेजर ध्यानचंद की फिक्र नहीं कर पाई, तो मेरी क्या चिंता करेगी. टेकचद यादव बताते हैं कि मेजर ध्यानचंद को दिल्ली की अस्पताल में अंतिम वक्त पर बेड भी नसीब नहीं हुआ था और उन्होंने अपनी अंतिम सांसें जमीन पर ली थी.

सागर। शहर के कैंट इलाके में एक टूटे-फूटे घर में अकेले जीवन बिता रहे 82 साल के टेकचंद यादव (dhyan chand student tek chand) को देखकर कोई नहीं कह सकता कि कभी ये हॉकी के जादूगर ध्यानचंद (hockey legend major dhyan chand) के प्रिय शिष्य हुआ करते थे. उनसे हॉकी की बारीकियां सीख कर उन्होंने ना सिर्फ सागर का नाम रोशन किया, बल्कि जब मध्य प्रदेश का गठन नहीं हुआ था, तब भोपाल की विश्व प्रसिद्ध टीम का भी हिस्सा बने और न्यूजीलैंड, नीदरलैंड जैसी विश्व स्तरीय टीमों के खिलाफ उन्होंने भोपाल टीम से मैच खेले. पिता की मौत के चलते महज 26 साल की उम्र में उन्होंने हॉकी खेलना छोड़ दिया. इस बात को लेकर ध्यानचंद भी नाराज हुए, लेकिन मजबूरी में उन्हें अपने परिवार का व्यवसाय संभालना पड़ा. उनके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं बचा और आज वह एक टूटे-फूटे घर में अकेले जीवन बिता रहे हैं. खास बात ये है कि उन्हें सरकार से कोई उम्मीद नहीं है. क्योंकि उन्हें इस बात का दुख है कि जब ध्यानचंद अपने अंतिम वक्त में बीमार हुए तो उन्हें दिल्ली में अस्पताल में बिस्तर तक हासिल नहीं हुआ और उन्होंने जमीन पर अंतिम सांसे ली थी.

बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर टेकचंद

महार रेजिमेंट के कोच थे ध्यानचंद,तब मिला हॉकी सीखने का मौका: दरअसल टेक चंद यादव सागर के सागर स्पोर्ट्स क्लब से हॉकी खेलते थे. चंद यादव के मामा हॉकी खेलते थे और उस समय खेलकूद में हॉकी का बड़ा नाम हुआ करता था, तो हम लोग स्कूल से आने के बाद मामा के साथ हाकी खेलने जाया करते थे. सेना की महार रेजीमेंट की हॉकी टीम को प्रशिक्षित करने के लिए मेजर ध्यानचंद को कोच बनाया गया था. मेजर ध्यानचंद महार रेजीमेंट के कोच बने तो महार रेजीमेंट की टीम के प्रैक्टिस मैच के लिए उन्होंने सागर स्पोर्ट्स क्लब की टीम को बुलाया. सेना की टीम को अभ्यास कराने के लिए जो लोकल टीम बनाई गई थी, टेक चंद यादव उसका हिस्सा थे.

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ध्यानचंद के शिष्य टेकचंद यादव

भोपाल हॉकी में कमाया बड़ा नाम, कई विदेशी टीमों से खेले मैच: टेकचंद यादव बताते है कि सागर की डिस्ट्रिक्ट हॉकी एसोसिएशन भोपाल हाकी एसोसिएशन से जुड़ी हुई थी. जब भी भोपाल 11 टीम का सिलेक्शन किया जाता था, तो हम लोगों को भी सिलेक्शन के लिए बुलाया जाता था. मेजर ध्यानचंद ने मुझे भोपाल हॉकी टीम में सिलेक्शन के लिए भेजा और मेरा सिलेक्शन हो गया. तब भोपाल की टीम देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की जानी-मानी टीमों से भी मैच खेलती थी. टेक चंद यादव ने मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में होने वाले प्रसिद्ध महाराजा हॉकी कप में सागर को जीत दिलाई. वहीं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के प्रसिद्ध हॉकी टूर्नामेंट में भी उन्होंने अपनी हॉकी का लोहा मनवाया.

सरकार से नहीं टेकचंद को कोई आस

अशोक ध्यानचंद Exclusive: "मेजर ध्यानचंद का नाम इतना बड़ा, उसपर न हो राजनीति"

परिवार में बच्चे अकेले बदहाल जीवन जीने को मजबूर: महज 26 साल की उम्र में टेकचंद यादव का करियर उछाल पर था तो पिता की मौत के कारण उन्हें साल 1963 में हॉकी छोड़ना पड़ी और परिवार का व्यवसाय संभालना पड़ा. धीरे-धीरे टेकचद यादव हॉकी से दूर हो गए और परिवार में भी अकेले बचे. आज वह अपने परिवार के ही एक जर्जर मकान में जीवन बिता रहे हैं. उनके भाई दो वक्त का खाना भेज देते हैं. बाकी समय झोपड़ी नुमा घर में अपना वक्त बिताते रहते हैं (tek chand live bad condition in sagar). उनके मकान की ये हालत है कि हॉकी से जुड़ी यादगार चीजें भी अब उनके पास नहीं बची है.

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झोपड़ी में रहते हैं टेकचंद यादव

सरकार से नहीं मदद की उम्मीद: टेकचंद यादव से जब उनकी बदहाली को लेकर बात की तो पता चला उन्हें सरकार से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. जब सरकार मेजर ध्यानचंद की फिक्र नहीं कर पाई, तो मेरी क्या चिंता करेगी. टेकचद यादव बताते हैं कि मेजर ध्यानचंद को दिल्ली की अस्पताल में अंतिम वक्त पर बेड भी नसीब नहीं हुआ था और उन्होंने अपनी अंतिम सांसें जमीन पर ली थी.

Last Updated : Nov 21, 2022, 11:06 PM IST
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