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पेट भरने का संकट: मध्याह्न भोजन के लिए तरसे सरकारी स्कूलों के बच्चे - कोरोना संक्रमण काल

कोरोना संक्रमण काल के दौरान मध्याह्न भोजन के लिए सरकार स्कूलों के गरीब बच्चे तरस रहे हैं. इन बच्चों के अभिभावक कर्फ्यू के कारण रोजगार न मिलने से परेशान हैं. उन्हें खुद रोजी-रोटी की दिक्कत से रूबरू होना पड़ रहा हैं.

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मध्याह्न भोजन के लिए तरसे सरकारी स्कूलों के बच्चे
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Published : Jun 11, 2021, 11:32 AM IST

सागर। केंद्र सरकार ने गरीब बच्चों को पढ़ाई के प्रति आकर्षित करने के लिए स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना लागू की थी. इस योजना के तहत प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चों को स्कूल में ही मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराया जाता हैं, लेकिन पिछले एक साल से कोरोना के कारण स्कूल बंद है. इन परिस्थितियों में गरीब बच्चे जो भोजन के आकर्षण में स्कूलों में पढ़ने आते थे, उन बच्चों को मध्याह्न भोजन हासिल नहीं हो पा रहा हैं.

कोरोना के कारण आठवीं कक्षा तक के स्कूल बंद कर दिए गए थे. पिछले सत्र में राशन बच्चों के घर भिजवाने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन मौजूदा सत्र में अभी तक बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन की जगह कोई और व्यवस्था नहीं की गई हैं. इन बच्चों के अभिभावक कर्फ्यू के कारण रोजगार न मिलने से परेशान हैं और उन्हें खुद रोजी-रोटी की दिक्कत से रूबरू होना पड़ रहा हैं.

क्या है मध्याह्न भोजन योजना ?

मुफ्त शिक्षा व्यवस्था के बाद भी गरीब बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिए आकर्षित नहीं हो रहे थे. ऐसे में केंद्र सरकार ने 1995 में गरीब तबके के बच्चों को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए मध्याह्न भोजन योजना लागू की थी. इस योजना के तहत बच्चों को स्कूल लंच ब्रेक के दौरान भोजन कराया जाता था. इसका असर यह हुआ कि गरीब परिवारों के बच्चे एक वक्त के भोजन के आकर्षण में स्कूल में प्रवेश लेने लगे. आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने लगे. उनकी भी पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ी.

मध्याह्न भोजन के लिए तरसे सरकारी स्कूलों के बच्चे


स्कूल बंद होने से गरीब बच्चों से छिना एक वक्त का खाना

कोरोना महामारी के कारण स्कूलों को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था. खासकर प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चों के स्कूल पूरी तरह बंद रहें. इस स्थिति में गरीब परिवार के बच्चों से एक वक्त के खाने का हक छिन लिया गया था. ऐसे में सरकार ने वैकल्पिक रूप से बच्चों के घर पर राशन पहुंचाने की व्यवस्था की थी. इस व्यवस्था के तहत बच्चों के अभिभावकों के खाते में खाना पकाने के लिए भी राशि डाली जाती थी.

मध्य प्रदेश में की गई थी यह व्यवस्था

  • प्राइमरी के एक बच्चे को दो किलो दाल और 525 ग्राम तेल दिया जा रहा हैं.
  • मिडिल स्कूल के एक बच्चे को तीन किलो दाल और 783 ग्राम तेल दिया जा रहा है.

    पिछले साल कोरोना की लहर में यह व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित थी, लेकिन मौजूदा सत्र अप्रैल माह में शुरू हो चुका है. बच्चों को अभी तक सिर्फ एक माह का ही राशन मिल पाया है. एक मई से गर्मी की छुट्टी होने के कारण उन्हें अब तक दूसरे माह का राशन नहीं मिल पाया हैं.



रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे अभिभावक


गरीब तबके के लिए सरकार ने मुफ्त राशन की व्यवस्था की हैं. वहीं उनके बच्चों को मध्याह्न भोजन के विकल्प के तौर पर सूखी राशन की व्यवस्था की गई थी. एक तरफ गरीब अभिभावक रोजगार के संकट से जूझ रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर राशन न मिल पाने के कारण बच्चों का पेट भी ढंग से नहीं भर पा रहा हैं. बच्चे स्कूल खुलने का इंतजार कर रहे हैं. उनके अभिभावक चाह रहे हैं कि कम से कम स्कूल खुल जाए, ताकि बच्चों का एक टाइम पेट भर सकें.

सागर। केंद्र सरकार ने गरीब बच्चों को पढ़ाई के प्रति आकर्षित करने के लिए स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना लागू की थी. इस योजना के तहत प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चों को स्कूल में ही मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराया जाता हैं, लेकिन पिछले एक साल से कोरोना के कारण स्कूल बंद है. इन परिस्थितियों में गरीब बच्चे जो भोजन के आकर्षण में स्कूलों में पढ़ने आते थे, उन बच्चों को मध्याह्न भोजन हासिल नहीं हो पा रहा हैं.

कोरोना के कारण आठवीं कक्षा तक के स्कूल बंद कर दिए गए थे. पिछले सत्र में राशन बच्चों के घर भिजवाने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन मौजूदा सत्र में अभी तक बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन की जगह कोई और व्यवस्था नहीं की गई हैं. इन बच्चों के अभिभावक कर्फ्यू के कारण रोजगार न मिलने से परेशान हैं और उन्हें खुद रोजी-रोटी की दिक्कत से रूबरू होना पड़ रहा हैं.

क्या है मध्याह्न भोजन योजना ?

मुफ्त शिक्षा व्यवस्था के बाद भी गरीब बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिए आकर्षित नहीं हो रहे थे. ऐसे में केंद्र सरकार ने 1995 में गरीब तबके के बच्चों को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए मध्याह्न भोजन योजना लागू की थी. इस योजना के तहत बच्चों को स्कूल लंच ब्रेक के दौरान भोजन कराया जाता था. इसका असर यह हुआ कि गरीब परिवारों के बच्चे एक वक्त के भोजन के आकर्षण में स्कूल में प्रवेश लेने लगे. आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने लगे. उनकी भी पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ी.

मध्याह्न भोजन के लिए तरसे सरकारी स्कूलों के बच्चे


स्कूल बंद होने से गरीब बच्चों से छिना एक वक्त का खाना

कोरोना महामारी के कारण स्कूलों को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था. खासकर प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चों के स्कूल पूरी तरह बंद रहें. इस स्थिति में गरीब परिवार के बच्चों से एक वक्त के खाने का हक छिन लिया गया था. ऐसे में सरकार ने वैकल्पिक रूप से बच्चों के घर पर राशन पहुंचाने की व्यवस्था की थी. इस व्यवस्था के तहत बच्चों के अभिभावकों के खाते में खाना पकाने के लिए भी राशि डाली जाती थी.

मध्य प्रदेश में की गई थी यह व्यवस्था

  • प्राइमरी के एक बच्चे को दो किलो दाल और 525 ग्राम तेल दिया जा रहा हैं.
  • मिडिल स्कूल के एक बच्चे को तीन किलो दाल और 783 ग्राम तेल दिया जा रहा है.

    पिछले साल कोरोना की लहर में यह व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित थी, लेकिन मौजूदा सत्र अप्रैल माह में शुरू हो चुका है. बच्चों को अभी तक सिर्फ एक माह का ही राशन मिल पाया है. एक मई से गर्मी की छुट्टी होने के कारण उन्हें अब तक दूसरे माह का राशन नहीं मिल पाया हैं.



रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे अभिभावक


गरीब तबके के लिए सरकार ने मुफ्त राशन की व्यवस्था की हैं. वहीं उनके बच्चों को मध्याह्न भोजन के विकल्प के तौर पर सूखी राशन की व्यवस्था की गई थी. एक तरफ गरीब अभिभावक रोजगार के संकट से जूझ रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर राशन न मिल पाने के कारण बच्चों का पेट भी ढंग से नहीं भर पा रहा हैं. बच्चे स्कूल खुलने का इंतजार कर रहे हैं. उनके अभिभावक चाह रहे हैं कि कम से कम स्कूल खुल जाए, ताकि बच्चों का एक टाइम पेट भर सकें.

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