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Dev Uthani Ekadashi 2022: क्यों रहता है देव उठनी एकादशी का इंतजार, शादियों से क्या है कनेक्शन, जानें कहानी पूजा का मुहूर्त

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जानते हैं. इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागृत अवस्था में आते हैं. आइए जानते हैं कब है देवउठनी एकादशी और क्या है पूजा विधि? (dev uthani ekadashi 2022) (dev uthani ekadashi 2022 muhurat) देवउठनी एकादशी की तिथि 3 नवंबर गुरुवार शाम को 7 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 4 नवंबर को शाम 6 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी.

dev prabodhini ekadashi 2022
देव प्रबोधिनी एकादशी 2022
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Published : Oct 27, 2022, 8:10 PM IST

Updated : Oct 27, 2022, 8:58 PM IST

सागर। हिंदू धर्म में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व है. इसे देवउठनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं. ज्योतिष मान्यता के मुताबकि भगवान विष्णु चतुर्मास में योग निद्रा पूरी करने के बाद कार्तिक माह के देवउठनी एकादशी के दिन जागृति अवस्था में आते हैं, इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं. मांगलिक कार्य शुरू करने के लिए और शादी ब्याह के लिए देवउठनी एकादशी का सबको बेसब्री से इंतजार होता है. आइए जानते हैं कब है देवउठनी एकादशी और क्या है इसका महत्व. (dev uthani ekadashi 2022)

कब मनाया जाएगा देवउठनी एकादशी: इस साल 4 नवंबर को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु नींद से जागते हैं. इससे पहले देवशयनी एकादशी पर चातुर्मास में भगवान क्षीर सागर में विश्राम के लिए जाते हैं. चातुर्मास के दौरान मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है. देवउठनी एकादशी से शादी विवाह समेत मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है. देवउठनी का पारण 05 नवंबर की सुबह 06 बजकर 39 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 52 मिनट पर किया जाएगा. (kab hai dev uthani ekadashi)

क्या है देवउठनी एकादशी की कथा: शिव महापुराण के अनुसार राजा दंभ भगवान विष्णु का भक्त थे. संतान न होने पर राजा दंभ ने शुक्राचार्य से श्री कृष्ण मंत्र प्राप्त कर पुष्कर सरोवर में तपस्या की. भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर राजा को संतान प्राप्ति का वर दिया. राजा दंभ के यहां पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया. युवा होने पर शंखचूड़ ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने को कहा, जिसपर शंखचूड़ ने हमेशा अमर रहने और देवता भी ना मार पाए, ऐसा वर मांगा. ब्रह्मा जी ने वरदान देकर कहा कि, बदरीवन में धर्मध्वज की पुत्री तुलसी तपस्या कर रही है, उससे विवाह करें. शंखचूड़ तुलसी के साथ विवाह कर रहने लगे. इसके बाद शंखचूड़ अपने बल और ब्रह्मा जी के वरदान से त्रिलोक पर विजय प्राप्त कर ली. (dev uthani ekadashi 2022 date)

शंखचूड़ के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए. ब्रह्मा जी उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए. भगवान विष्णु ने कहा कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही होगी, इसलिए उनके पास जाएं. भगवान शिव के गण चित्ररथ दूत बनकर शंखचूड़ के पास गए और देवताओं को राज्य लौटाने कहा, लेकिन शंखचूड़ ने मना कर भगवान शिव से युद्ध की इच्छा रखी. भगवान शिव भी युद्ध के लिए निकल पड़े. देवता और राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ, लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के कारण शंखचूड़ को नहीं हरा पाए. भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध करने त्रिशूल उठाया, तो आकाशवाणी हुई कि "जब तक शंखचूड़ के हाथ में श्रीहरि का कवच है और उसकी पत्नी का सतीत्व अखण्डित है तब तक उसका वध असंभव है." आकाशवाणी सुन भगवान विष्णु बुजुर्ग ब्राह्मण का वेष रख शंखचूड़ के पास गए और श्रीहरि कवच दान में मांग लिया. शंखचूड़ का कवच लेकर भगवान विष्णु शंखचूड़ का वेष रखकर तुलसी के पास गए और जीत की सूचना दी. तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पतिरूप में आए भगवान विष्णु को भरपूर स्नेह किया. ऐसा करते ही तुलसी का सतीत्व खंडित हो गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया.

जब तुलसी को पता चला कि पति के वेष में आए भगवान विष्णु हैं, तो क्रोध में तुलसी ने छलपूर्वक पतिव्रता धर्म भ्रष्ट करने और पति को मारने का आरोप लगाते हुए श्राप दिया कि आप पाषण होकर धरती पर रहें. तब भगवान विष्णु ने कहा कि, तुम्हारा शरीर नदी रूप में बदलकर गण्डकी नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा, जहां मेरा वास होगा. तुम तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और हमेशा साथ रहोगी. तुम्हारे श्राप को सत्य करने में शालिग्राम बनकर रहूंगा. गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा. देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कर मांगलिक कार्यों का प्रारंभ किया जाता है. (tulsi vivah 2022)

Devshayani Ekadashi 2022 : इस दिन से नहीं होंगे शुभ कार्य, जानें कब शुरू होंगे मांगलिक आयोजन

देवउठनी एकादशी का मुहूर्त: देवउठनी एकादशी की तिथि 3 नवंबर गुरुवार शाम को 7 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 4 नवंबर को शाम 6 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी. भक्त और श्रृद्धालु 4 नवंबर को एकादशी की पूजा कर उपवास कर सकते हैं. (dev uthani ekadashi 2022 muhurat)

देवउठनी एकादशी पूजा विधि: दशमी के दिन से ही तामसिक भोजन और प्रवृत्ति का त्याग कर एकादशी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. स्नान के बाद आचमन कर व्रत संकल्प लें. सूर्य देव को जल का अर्घ्य देकर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें. दिन भर उपवास रख शाम पूजा अर्चना कर फलाहार करें. दिन में एक बार फल और जल ग्रहण कर सकते हैं. (dev uthani ekadashi puja vidhi)

सागर। हिंदू धर्म में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व है. इसे देवउठनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं. ज्योतिष मान्यता के मुताबकि भगवान विष्णु चतुर्मास में योग निद्रा पूरी करने के बाद कार्तिक माह के देवउठनी एकादशी के दिन जागृति अवस्था में आते हैं, इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं. मांगलिक कार्य शुरू करने के लिए और शादी ब्याह के लिए देवउठनी एकादशी का सबको बेसब्री से इंतजार होता है. आइए जानते हैं कब है देवउठनी एकादशी और क्या है इसका महत्व. (dev uthani ekadashi 2022)

कब मनाया जाएगा देवउठनी एकादशी: इस साल 4 नवंबर को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु नींद से जागते हैं. इससे पहले देवशयनी एकादशी पर चातुर्मास में भगवान क्षीर सागर में विश्राम के लिए जाते हैं. चातुर्मास के दौरान मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है. देवउठनी एकादशी से शादी विवाह समेत मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है. देवउठनी का पारण 05 नवंबर की सुबह 06 बजकर 39 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 52 मिनट पर किया जाएगा. (kab hai dev uthani ekadashi)

क्या है देवउठनी एकादशी की कथा: शिव महापुराण के अनुसार राजा दंभ भगवान विष्णु का भक्त थे. संतान न होने पर राजा दंभ ने शुक्राचार्य से श्री कृष्ण मंत्र प्राप्त कर पुष्कर सरोवर में तपस्या की. भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर राजा को संतान प्राप्ति का वर दिया. राजा दंभ के यहां पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया. युवा होने पर शंखचूड़ ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने को कहा, जिसपर शंखचूड़ ने हमेशा अमर रहने और देवता भी ना मार पाए, ऐसा वर मांगा. ब्रह्मा जी ने वरदान देकर कहा कि, बदरीवन में धर्मध्वज की पुत्री तुलसी तपस्या कर रही है, उससे विवाह करें. शंखचूड़ तुलसी के साथ विवाह कर रहने लगे. इसके बाद शंखचूड़ अपने बल और ब्रह्मा जी के वरदान से त्रिलोक पर विजय प्राप्त कर ली. (dev uthani ekadashi 2022 date)

शंखचूड़ के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए. ब्रह्मा जी उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए. भगवान विष्णु ने कहा कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही होगी, इसलिए उनके पास जाएं. भगवान शिव के गण चित्ररथ दूत बनकर शंखचूड़ के पास गए और देवताओं को राज्य लौटाने कहा, लेकिन शंखचूड़ ने मना कर भगवान शिव से युद्ध की इच्छा रखी. भगवान शिव भी युद्ध के लिए निकल पड़े. देवता और राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ, लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के कारण शंखचूड़ को नहीं हरा पाए. भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध करने त्रिशूल उठाया, तो आकाशवाणी हुई कि "जब तक शंखचूड़ के हाथ में श्रीहरि का कवच है और उसकी पत्नी का सतीत्व अखण्डित है तब तक उसका वध असंभव है." आकाशवाणी सुन भगवान विष्णु बुजुर्ग ब्राह्मण का वेष रख शंखचूड़ के पास गए और श्रीहरि कवच दान में मांग लिया. शंखचूड़ का कवच लेकर भगवान विष्णु शंखचूड़ का वेष रखकर तुलसी के पास गए और जीत की सूचना दी. तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पतिरूप में आए भगवान विष्णु को भरपूर स्नेह किया. ऐसा करते ही तुलसी का सतीत्व खंडित हो गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया.

जब तुलसी को पता चला कि पति के वेष में आए भगवान विष्णु हैं, तो क्रोध में तुलसी ने छलपूर्वक पतिव्रता धर्म भ्रष्ट करने और पति को मारने का आरोप लगाते हुए श्राप दिया कि आप पाषण होकर धरती पर रहें. तब भगवान विष्णु ने कहा कि, तुम्हारा शरीर नदी रूप में बदलकर गण्डकी नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा, जहां मेरा वास होगा. तुम तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और हमेशा साथ रहोगी. तुम्हारे श्राप को सत्य करने में शालिग्राम बनकर रहूंगा. गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा. देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कर मांगलिक कार्यों का प्रारंभ किया जाता है. (tulsi vivah 2022)

Devshayani Ekadashi 2022 : इस दिन से नहीं होंगे शुभ कार्य, जानें कब शुरू होंगे मांगलिक आयोजन

देवउठनी एकादशी का मुहूर्त: देवउठनी एकादशी की तिथि 3 नवंबर गुरुवार शाम को 7 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 4 नवंबर को शाम 6 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी. भक्त और श्रृद्धालु 4 नवंबर को एकादशी की पूजा कर उपवास कर सकते हैं. (dev uthani ekadashi 2022 muhurat)

देवउठनी एकादशी पूजा विधि: दशमी के दिन से ही तामसिक भोजन और प्रवृत्ति का त्याग कर एकादशी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. स्नान के बाद आचमन कर व्रत संकल्प लें. सूर्य देव को जल का अर्घ्य देकर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें. दिन भर उपवास रख शाम पूजा अर्चना कर फलाहार करें. दिन में एक बार फल और जल ग्रहण कर सकते हैं. (dev uthani ekadashi puja vidhi)

Last Updated : Oct 27, 2022, 8:58 PM IST
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