सागर। यूं तो भगवान गणेश की पूजा किए बिना कोई भी शुभ काम शुरू नहीं किया जाता है. कहा जाता है कि भगवान गणेश का ध्यान मात्र कर लेने से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं, जिस वजह से उन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है. प्रथम पूज्य श्री गणेश, गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चौदस तक घर-घर विराजते हैं, जहां 10 दिनों तक इनकी विशेष पूजा की जाती है. स्वयंभू भगवान गणेश की ये मूर्ति सदियों पुरानी बताई जाती है.
घने जंगलों के बीच प्रसिद्ध मंदिर
सागर जिले के नरयावली विधानसभा क्षेत्र में जरुआ खेड़ा से करीब 10 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बाद ज्वाला देवी का एक प्रसिद्ध मंदिर है. जो न सिर्फ ज्वाला मां के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां स्थित गणेश प्रतिमा के लिए भी श्रद्धालुओं का वहां तांता लगा रहता है. यहां स्थित गणेश प्रतिमा सदियों पुरानी बताई जाती है. जिनके दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं.
अद्वितीय है बप्पा का ये रूप
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान गणेश का ये स्वरूप अद्वितीय है, यहां भगवान गणेश की जंघा पर उनकी पत्नी रिद्धि-सिद्धि विराजमान हैं. वहीं गणेश जी यज्ञोपवीत के रूप में जनेऊ के स्थान पर सर्प को धारण किए हुए हैं, जबकि उनकी नाभि से निकले कमल में भगवान ब्रह्मा और उनके पीछे भगवान विष्णु की प्रतिमा है.
पेड़ में धागा बांध मांगते हैं मुराद
कहा जाता है यहां आने वाले श्रद्धालु धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं, मंदिर के बाहर एक वृक्ष है, जहां धागा बांधकर लोग भगवान गणेश से अपनी मुरादें मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर यहां आकर भगवान गणेश का धन्यवाद करते हैं.
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दूर-दूर से आते हैं लोग
भगवान गणेश के दर्शन के लिए लोग दूर-दराज से यहां आते हैं. कहा जाता है कि सच्चे मन से भगवान गणेश से जो भी यहां मन्नत मांगता है, उसकी हर मुराद जरूर पूरी होती है. वैसे तो साल भर यहां भगवान गणेश और देवी जी के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है, फिलहाल कोरोना वायरस की वजह से मंदिर में भक्तों के आगमन पर रोक लगी हुई है.