सागर। देश का दिल मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश का दिल सागर. इसी सागर में आजकल सभी दल सियासी मोती की तलाश में डुबकी लगा रहे हैं. सूबे के मध्य में बसी डॉक्टर हरी सिंह गौर की नगरी के नाम से मशहूर सागर शहर, जो बुंदेलखंड की राजनीति का केंद्र माना जाता है, सागर लोकसभा सीट प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल होती रही है, जिस पर बीजेपी का दबदबा माना जाता है. बीजेपी ने इस बार यहां राजबहादुर सिंह को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने पूर्व मंत्री प्रभू सिंह ठाकुर को बीजेपी का गढ़ भेदने की जिम्मेदारी सौंपी है.
कभी कांग्रेस के दबदबे वाली इस सीट पर अब बीजेपी की मजबूत पकड़ दिखती है. सागर में अब तक हुए 15 लोकसभा चुनावों में सात बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया है, तो बीजेपी भी जीत का छक्का लगा चुकी है, जबकि एक-एक बार लोकदल और निर्दलीय प्रत्याशी ने अपना पौरुष दिखाया है. 1996 के आम चुनाव से यहां बीजेपी लगातार जीत दर्ज कर रही है. 2009 और 2014 के चुनाव में पार्टी ने यहां प्रत्याशी भी बदला, लेकिन जीत का सिलसिला जारी रहा.
सागर क्षेत्र में इस बार कुल 15 लाख 82 हजार 207 मतदाता मतदान करेंगे, जिनमें 8 लाख 36 हजार 143 पुरूष मतदाता एवं 7 लाख 37 हजार 321 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि 34 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. इस बार यहां कुल 2051 मतदान केंद्र बनाये गये हैं.
सागर संसदीय क्षेत्र में सागर, खुरई, बीना, नरयावली, सुरखी, सिरोंज, शमशाबाद और कुरवाई विधानसभा सीटें शामिल हैं. विधानसभा चुनाव में इन आठ सीटों में से 7 पर बीजेपी का कमल खिला था, जबकि एक सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. जिससे इस बार भी सागर में बीजेपी का दबदबा नजर आ रहा है. 2014 में बीजेपी के लक्ष्मीनारायण यादव ने कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत को हराया था.
खास बात ये है कि सागर लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी और कांग्रेस ने ठाकुर जाति से आने वाले उम्मीदवारों पर ही दांव लगाया है. जहां बीजेपी के प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी पूर्व मंत्री और कद्दावर नेता भूपेंद्र सिंह राजपूत के कंधों पर है तो कांग्रेस प्रत्याशी के प्रचार की कमान खुद परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने संभाल रखी है. सागर संसदीय क्षेत्र में ठाकुर, ब्राह्मण और ओबीसी वर्ग के मतदाता ही हार-जीत का फॉर्मूला तय करते हैं.
सियासी मुद्दों से इतर बात अगर यहां के सामजिक ताने-बाने की करें तो शहरी और ग्रामीण आबादी में बंटा यहां का मतदाता परेशानियों से घिरा नजर आता है. बेरोजगारी यहां की सबसे बड़ी समस्या है, जबकि एक जमाने में सागर की शान माना जाने वाला बीड़ी उद्योग अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे अब भी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रहे हैं. कहने को तो सागर स्मार्ट सिटी में शामिल है, लेकिन यहां स्मार्ट सुविधाएं अब तक नजर नहीं आई हैं. ऐसे में 12 मई को यहां का मतदाता सागर में किस-किस की लुटिया डुबाता है, इसका फैसला 23 मई को चुनावी नतीजे ही तय करेंगे.