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यहां मौजूद है देव खंडेराव का मंदिर, लगता है 400 साल पुराना मेला, मनोकामना पूरी होने पर दहकते अंगारों पर चलते हैं श्रद्धालु - दहकते अंगारों पर नंगे पांव निकलते हैं श्रृद्धालु

सागर से गुजरने वाले नेशनल हाइवे-44 पर देवरी कस्बे में भव्य व ऐतिहासिक मंदिर है. यहां हर साल अगहन शुक्ल में चम्पा छठ से पूर्णिमा तक दिसंबर माह में मेला लगता है. जिले के अलावा आसपास के जिलों के लोग भी इस मेले में पहुंचते हैं. मनोकामना पूरी होने पर भक्त पीले वस्त्र धारण कर मंत्र उच्चारण के साथ देव श्री खंडेराव महाराज की पूजा अर्चना कर नंगे पैर दहकते अंगारों पर निकलते हैं.

sagar devotees walk on burn coals
दहकते अंगारों पर चलते हैं श्रद्धालु
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Published : Nov 30, 2022, 9:00 PM IST

Updated : Nov 30, 2022, 10:37 PM IST

सागर। जिले के देवरी कस्बे में हर साल आयोजित होने वाला देव श्री खंडेराव मेले का शुभारंभ सोमवार से हो गया है. मेले में दहकते अंगारों पर निकलने की परंपरा 400 साल पुरानी है. अगहन मास की षष्ठी (चंपाछठ) से मेले का शुभारंभ हुआ. जो पूर्णिमा तक चलेगा. जिसमें सागर जिले के अलावा आसपास के जिलों के लोग भी पहुंचते हैं. दरअसल मनोकामना पूरी होने पर भक्त पीले वस्त्र धारण करके मंत्र उच्चारण के साथ देव श्री खंडेराव महाराज की पूजा अर्चना कर नंगे पैर दहकते अंगारों पर निकलते हैं. मेले में कई राज्यों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

इस मंदिर में दहकते अंगारों पर चलते हैं श्रद्धालु

कहां स्थित श्रीदेव खंडेराव जी का मंदिर: सागर से गुजरने वाले नेशनल हाइवे-44 पर देवरी कस्बे में भव्य व ऐतिहासिक मंदिर है. यहां हर साल अगहन शुक्ल में चम्पा छठ से पूर्णिमा तक दिसंबर माह में मेला लगता है. मंदिर की अनोखी विशेषता हैं कि मदिर में बने दक्षिण तरफ के रोशनदान से सूर्य की रोशनी अगहन सुदी षष्टी को ठीक 12 बजे पिण्ड पर पड़ती है. सन 1850 से स्थानीय वैद्य परिवार देव खांडेराव मंदिर का प्रबंधन देखते हैं. मंदिर प्रबंधक नारायण मल्हार वैद्य देव प्रधान के पुजारी हैं. उनके सबसे छोटे भाई विनायक मल्हार वैध मेले व उत्सव का प्रबंध देखते हैं.

dev khanderao temple in sagar
देव खंडेराव भगवान

Sagar Agnikund Mela: यहां आग पर दौड़ती है आस्था! परंपरा या अंधविश्वा [Video]

श्रीदेव खंडेराव की कथा: प्राचीनकाल में मणिचूल पर्वत की प्राकृतिक सौंदर्य से मुग्ध होकर ऋषियों का समूह वहीं रहकर यज्ञ और तप करते थे. इसी बीच मणि व मल्ल नाम के दो राक्षसों द्वारा उत्पात कर यज्ञ देवी पवित्र कर ऋषियों को घोर यातना देना शुरू कर दिया. ऋषियों के गले में रस्सी बांधकर कुएं में डुबोकर यातनायें देकर तपस्या भंग कर देते थे. परेशान ऋषि देवराज इन्द्र के पास पहुंचे और राक्षसों के अत्याचार के बारे में बताया. देवराज इंद्र ने राक्षसों का वध करने में असमर्थता जताई और बताया कि दोनों राक्षस ब्रह्मा से वरदान प्राप्त हैं. इन्हें मारने (वध करने) में असमर्थ हूं, फिर ऋषि मुनि इंद्र के साथ श्रीहरि की शरण में पहुंचे. तब श्री देव ने अवतार धारण किया और राजसी वेष धारणकर घोडे़ पर सवार होकर राक्षसों का वध किया.

sagar devotees walk on burn coals
दहकते अंगारों पर चलते लोग

आग से निकलते है श्रृद्धालु: आग से निकलने की प्रथा मंदिर निर्माण के साथ शुरू हुई. राजा यशवंत राव के इकलौते पुत्र किसी अज्ञात बीमारी से ग्रसित होकर मरणासन्न स्थिति में थे. तब राजा यशवंत राव ने देवखंडेराव से प्रार्थना कर कहा कि आप का दिया हुआ पुत्र है, इसकी रक्षा करें. उसी रात राजा यशवंत राव को श्री देव खंडेराव ने दर्शन देकर कहा कि तुम मेरे दर्शन कर हल्दी के उल्टे हाथ लगाकर प्रार्थना करो. नाव की आकृति के लबें और चौड़े गड्ढे में एक मन लकड़ी डालकर जलाकर विधि विधान से पूजा कर ठीक 12 बजे दिन में नंगे पैर आग पर चलोगे तो बेटा ठीक हो जाएगा. श्री देव ने उनकी प्रार्थना सुनी और राजा का पुत्र ठीक किया. तब से अग्निकुंड में नंगे पैर चलने की प्रथा प्रारंभ है. जो आज भी चलती जा रही है.

सागर। जिले के देवरी कस्बे में हर साल आयोजित होने वाला देव श्री खंडेराव मेले का शुभारंभ सोमवार से हो गया है. मेले में दहकते अंगारों पर निकलने की परंपरा 400 साल पुरानी है. अगहन मास की षष्ठी (चंपाछठ) से मेले का शुभारंभ हुआ. जो पूर्णिमा तक चलेगा. जिसमें सागर जिले के अलावा आसपास के जिलों के लोग भी पहुंचते हैं. दरअसल मनोकामना पूरी होने पर भक्त पीले वस्त्र धारण करके मंत्र उच्चारण के साथ देव श्री खंडेराव महाराज की पूजा अर्चना कर नंगे पैर दहकते अंगारों पर निकलते हैं. मेले में कई राज्यों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

इस मंदिर में दहकते अंगारों पर चलते हैं श्रद्धालु

कहां स्थित श्रीदेव खंडेराव जी का मंदिर: सागर से गुजरने वाले नेशनल हाइवे-44 पर देवरी कस्बे में भव्य व ऐतिहासिक मंदिर है. यहां हर साल अगहन शुक्ल में चम्पा छठ से पूर्णिमा तक दिसंबर माह में मेला लगता है. मंदिर की अनोखी विशेषता हैं कि मदिर में बने दक्षिण तरफ के रोशनदान से सूर्य की रोशनी अगहन सुदी षष्टी को ठीक 12 बजे पिण्ड पर पड़ती है. सन 1850 से स्थानीय वैद्य परिवार देव खांडेराव मंदिर का प्रबंधन देखते हैं. मंदिर प्रबंधक नारायण मल्हार वैद्य देव प्रधान के पुजारी हैं. उनके सबसे छोटे भाई विनायक मल्हार वैध मेले व उत्सव का प्रबंध देखते हैं.

dev khanderao temple in sagar
देव खंडेराव भगवान

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श्रीदेव खंडेराव की कथा: प्राचीनकाल में मणिचूल पर्वत की प्राकृतिक सौंदर्य से मुग्ध होकर ऋषियों का समूह वहीं रहकर यज्ञ और तप करते थे. इसी बीच मणि व मल्ल नाम के दो राक्षसों द्वारा उत्पात कर यज्ञ देवी पवित्र कर ऋषियों को घोर यातना देना शुरू कर दिया. ऋषियों के गले में रस्सी बांधकर कुएं में डुबोकर यातनायें देकर तपस्या भंग कर देते थे. परेशान ऋषि देवराज इन्द्र के पास पहुंचे और राक्षसों के अत्याचार के बारे में बताया. देवराज इंद्र ने राक्षसों का वध करने में असमर्थता जताई और बताया कि दोनों राक्षस ब्रह्मा से वरदान प्राप्त हैं. इन्हें मारने (वध करने) में असमर्थ हूं, फिर ऋषि मुनि इंद्र के साथ श्रीहरि की शरण में पहुंचे. तब श्री देव ने अवतार धारण किया और राजसी वेष धारणकर घोडे़ पर सवार होकर राक्षसों का वध किया.

sagar devotees walk on burn coals
दहकते अंगारों पर चलते लोग

आग से निकलते है श्रृद्धालु: आग से निकलने की प्रथा मंदिर निर्माण के साथ शुरू हुई. राजा यशवंत राव के इकलौते पुत्र किसी अज्ञात बीमारी से ग्रसित होकर मरणासन्न स्थिति में थे. तब राजा यशवंत राव ने देवखंडेराव से प्रार्थना कर कहा कि आप का दिया हुआ पुत्र है, इसकी रक्षा करें. उसी रात राजा यशवंत राव को श्री देव खंडेराव ने दर्शन देकर कहा कि तुम मेरे दर्शन कर हल्दी के उल्टे हाथ लगाकर प्रार्थना करो. नाव की आकृति के लबें और चौड़े गड्ढे में एक मन लकड़ी डालकर जलाकर विधि विधान से पूजा कर ठीक 12 बजे दिन में नंगे पैर आग पर चलोगे तो बेटा ठीक हो जाएगा. श्री देव ने उनकी प्रार्थना सुनी और राजा का पुत्र ठीक किया. तब से अग्निकुंड में नंगे पैर चलने की प्रथा प्रारंभ है. जो आज भी चलती जा रही है.

Last Updated : Nov 30, 2022, 10:37 PM IST
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