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हीरों के लिए हरियाली की बलि! पाषाण कालीन शैलचित्र और ऐतिहासिक अवशेषों को नुकसान, क्या कहते हैं जानकार - Diamond bandar project baxwaha

मध्यप्रदेश के पन्ना के बाद अब छतरपुर के बक्सवाहा में हीरे की संभावना है, लेकिन जिस जगह से हीरे निकलने हैं वहां जंगल है. फिलहाल एनजीटी द्वारा पेड़ काटे जाने से रोकने वाली याचिका खारिज हो गई है, लेकिन अगर हीरों के खनन का काम शुरू होता है तो 4 लाख पेड़ काटे जाएंगे, इससे पर्यावरण प्रेमी दुखी हैं.

chhatarpur diamond mining
छतरपुर के बक्सवाहा में भी हीरे की उम्मीद
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Published : Mar 28, 2023, 9:03 AM IST

Updated : Mar 28, 2023, 2:29 PM IST

छतरपुर के बक्सवाहा में भी हीरे की उम्मीद

सागर। बुंदेलखंड भले ही बदहाली और गरीबी के लिए जाना जाता है, लेकिन बुंदेलखंड की धरती अपने गर्भ में बड़े पैमाने पर हीरे जैसे रत्नों को छुपाए हुए हैं. बुंदेलखंड के पन्ना के बाद अब छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगल में पन्ना से कई गुना ज्यादा हीरा मिलने की संभावना जागी है, इस परियोजना को बंदर प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है और जल्द ही यहां हीरों का खनन शुरू किया जाएगा. आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनी एक्सेल माइनिंग कंपनी इसकी तैयारियों में जुट गई है. दरअसल अभी तक एनजीटी में लगी याचिका के कारण काम रुका हुआ था, लेकिन 28 फरवरी को एनजीटी द्वारा पेड़ काटे जाने के खिलाफ लगाई गई याचिका खारिज होने के बाद तमाम अड़चनें दूर हो गई हैं. खास बात ये है कि जिस इलाके में हीरा खनन किया जाना है, उस इलाके में करीब 4 लाख पेड़ काट दिए जाएंगे और इस इलाके में कई ऐसे पुरातात्विक और ऐतिहासिक अवशेष भी मौजूद हैं, जो बुंदेलखंड के इतिहास के साक्षी हैं उसको भी नुकसान होगा. एनजीटी द्वारा याचिका खारिज होने के बाद पर्यावरण प्रेमी और इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों में निराशा है.

छतरपुर के बक्सवाहा में हीरे की संभावना: पूरे देश में बुंदेलखंड में पन्ना ही एक ऐसा इलाका है, जहां पर हीरे की खदानें पाई जाती हैं. लेकिन पन्ना के पड़ोसी जिले छतरपुर के बक्सवाहा में भी हीरे की उम्मीद जगी है, इन संभावनाओं के मद्देनजर 2002 में आस्ट्रेलियन कंपनी रियो टिंटो को बक्सवाहा में हीरा खनन की जिम्मेदारी औपचारिक रूप से सौंपी गई थी. तमाम तैयारियों के बाद 2010 में ऑस्ट्रेलियन कंपनी ने सर्वे की शुरुआत की और इलाके में लेंप्राइट
स्टोन की मौजूदगी से तय हो गया कि काफी मात्रा में हीरा मिल सकता है. अनुमान के मुताबिक बक्सवाहा के जंगलों में 3.40 करोड़ कैरेट से ज्यादा हीरे का भंडार पाए जाने की संभावना है. कहा जा रहा है कि बक्सवाहा में पन्ना के मुकाबले 4-5 गुना ज्यादा हीरा मिलेगा, लेकिन पर्यावरण को बचाने और जंगल मे मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की मांग को लेकर स्थानीय लोगों ने परियोजना का विरोध शुरू कर दिया. विरोध काफी लंबा चला और आस्ट्रेलियन कंपनी ने 2016 में परियोजना से तौबा कर ली, इसके बाद नए सिरे से 2019 में आदित्य बिरला ग्रुप की एक्सेल माइनिंग कंपनी को हीरा खनन के लिए अधिकृत किया गया है.

4 लाख पेड़ काटे जाने के खिलाफ लगी थी याचिका: बक्सवाहा में हीरा खनन के लिए हरी झंडी मिलते ही तय हो गया था कि इस इलाके में बड़े पैमाने पर जंगल काटे जाएंगे, जिससे पर्यावरण और जैव विविधता के लिए बड़े पैमाने पर नुकसान होगा. एक अनुमान के मुताबिक परियोजना के लिए इलाके के 4 लाख पेड़ काटे जाएंगे, इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों के कटने को लेकर पीजी पांडे ने एनजीटी में याचिका दायर की थी. याचिका को एनजीटी ने अपरिपक्व करार देते हुए 28 फरवरी को खारिज कर दिया, हालांकि याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका लगाई है लेकिन संभावना है कि पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो जाएगी. दूसरी तरफ हीरा खनन के लिए एक्सेल माइनिंग कंपनी ने तैयारियां शुरू कर दी हैं और सरकार द्वारा उसे साढ़े 3 सौ हेक्टेयर से ज्यादा हेक्टेयर का पट्टा भी आवंटित किया जा चुका है, जिसमें सबसे पहले पहला काम पेड़ों को काटने का किया जाएगा.

MUST READ:

क्या कहना है भूगर्भ शास्त्री का: सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय के व्यावहारिक भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. आरके त्रिवेदी इस इलाके में काफी शोध कर चुके हैं, वह बताते हैं कि "विशेषकर छतरपुर से बक्सवाहा का जो बंदर प्रोजेक्ट है, यहां पर हीरे की खदान का अन्वेषण रियो टिंटो ग्रुप द्वारा किया गया था. इसका विस्तार पन्ना के मझगवां की हीरा खदानों से चार-पांच गुना ज्यादा बताया जा रहा है, अगर इस नजरिए से देखें तो ये बड़ी मात्रा में बहुमूल्य राष्ट्रीय संपत्ति है, जिसका दोहन किया जाना चाहिए, जो राष्ट्र हित में होगा. दूसरी तरफ हम पर्यावरण के लिहाज से देखें, तो हमें अनुमान लगाना होगा कि इस प्रोजेक्ट के आने के बाद जब खनन शुरू होगा, तो कितना नुकसान होगा. तुलनात्मक रूप से ये नुकसान अगर मिलने वाले मटेरियल की तुलना में कम मूल्य का है, तो यहां खनन शुरू कर सकते हैं. वैसे भी खनन के लिए जो इलाका चुना गया है, वह जंगल के नजरिए से काफी छोटा है और काफी कम मात्रा में जंगल को नुकसान होगा."

क्या कहते हैं पर्यावरण प्रेमी: वन और वन्यजीव के संरक्षण के लिए कार्यरत प्रयत्न संस्था के संयोजक अजय दुबे बताते हैं कि "मध्यप्रदेश के बक्सवाहा में हीरा खदान के लिए हजारों पेड़ों को काटा जाएगा, यह काफी दुखद है. हमारा मानना है कि केंद्रीय वन मंत्रालय और मध्य प्रदेश सरकार के वन विभाग को इस विषय पर ध्यान देना चाहिए. हीरा खदान के खनन से पेड़ों को होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति में जो वृक्षारोपण होगा, उस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि बक्सवाहा में बड़ी संख्या में वन्य प्राणियों का कारीडोर है. यहां पर बड़ी मूल्यवान प्रजाति के वृक्ष हैं और जैव विविधता है, यदि हम इस संपदा को नष्ट करेंगे तो आने वाली पीढ़ी के साथ अन्याय होगा. इसके विकल्प के तौर पर जो बेहतर पर्यावरण संरक्षण हो सकता है, हमें उस पर ध्यान देना चाहिए. मध्य प्रदेश सरकार इसे गंभीरता से समझे कि यदि प्रकृति और संपदा की रक्षा करेंगे, तो जलवायु परिवर्तन की चुनौती हमारे सामने हैं, हम उससे निपट सकेंगे."

क्या कहते हैं इतिहासकार: जिस इलाके में हीरों का खनन किया जाना है, उस इलाके में पर्यावरण संपदा के अलावा ऐतिहासिक संपदा भी बड़े पैमाने पर बिखरी हुई है. इतिहासकार डॉ भरत शुक्ला बताते हैं कि "बंदर प्रोजेक्ट में बहुत बड़ी मात्रा में भूमि का खनन किया जाना है, क्योंकि यहां पर पन्ना की हीरा खदानों से ज्यादा मात्रा में हीरा मिलने का सर्वे हो चुका है लेकिन सरकार को में यह जानकारी देना चाहूंगा कि वहां पर पाषाणकाल के भित्ति चित्र और शैलचित्र हैं. इसके लिए सरकार को पुरातत्व विभाग से संयोजन करके उनके संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए. इसके अलावा इस इलाके में चंदेल और कलचुरी राजवंश, जो हमारे बुंदेलखंड के महान राजवंश रह चुके हैं, उनके स्मारक मंदिर और शिलालेख भी पाए गए हैं, हमें इनका संरक्षण करने के बाद हीरा का खनन शुरू करना चाहिए.

छतरपुर के बक्सवाहा में भी हीरे की उम्मीद

सागर। बुंदेलखंड भले ही बदहाली और गरीबी के लिए जाना जाता है, लेकिन बुंदेलखंड की धरती अपने गर्भ में बड़े पैमाने पर हीरे जैसे रत्नों को छुपाए हुए हैं. बुंदेलखंड के पन्ना के बाद अब छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगल में पन्ना से कई गुना ज्यादा हीरा मिलने की संभावना जागी है, इस परियोजना को बंदर प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है और जल्द ही यहां हीरों का खनन शुरू किया जाएगा. आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनी एक्सेल माइनिंग कंपनी इसकी तैयारियों में जुट गई है. दरअसल अभी तक एनजीटी में लगी याचिका के कारण काम रुका हुआ था, लेकिन 28 फरवरी को एनजीटी द्वारा पेड़ काटे जाने के खिलाफ लगाई गई याचिका खारिज होने के बाद तमाम अड़चनें दूर हो गई हैं. खास बात ये है कि जिस इलाके में हीरा खनन किया जाना है, उस इलाके में करीब 4 लाख पेड़ काट दिए जाएंगे और इस इलाके में कई ऐसे पुरातात्विक और ऐतिहासिक अवशेष भी मौजूद हैं, जो बुंदेलखंड के इतिहास के साक्षी हैं उसको भी नुकसान होगा. एनजीटी द्वारा याचिका खारिज होने के बाद पर्यावरण प्रेमी और इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों में निराशा है.

छतरपुर के बक्सवाहा में हीरे की संभावना: पूरे देश में बुंदेलखंड में पन्ना ही एक ऐसा इलाका है, जहां पर हीरे की खदानें पाई जाती हैं. लेकिन पन्ना के पड़ोसी जिले छतरपुर के बक्सवाहा में भी हीरे की उम्मीद जगी है, इन संभावनाओं के मद्देनजर 2002 में आस्ट्रेलियन कंपनी रियो टिंटो को बक्सवाहा में हीरा खनन की जिम्मेदारी औपचारिक रूप से सौंपी गई थी. तमाम तैयारियों के बाद 2010 में ऑस्ट्रेलियन कंपनी ने सर्वे की शुरुआत की और इलाके में लेंप्राइट
स्टोन की मौजूदगी से तय हो गया कि काफी मात्रा में हीरा मिल सकता है. अनुमान के मुताबिक बक्सवाहा के जंगलों में 3.40 करोड़ कैरेट से ज्यादा हीरे का भंडार पाए जाने की संभावना है. कहा जा रहा है कि बक्सवाहा में पन्ना के मुकाबले 4-5 गुना ज्यादा हीरा मिलेगा, लेकिन पर्यावरण को बचाने और जंगल मे मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की मांग को लेकर स्थानीय लोगों ने परियोजना का विरोध शुरू कर दिया. विरोध काफी लंबा चला और आस्ट्रेलियन कंपनी ने 2016 में परियोजना से तौबा कर ली, इसके बाद नए सिरे से 2019 में आदित्य बिरला ग्रुप की एक्सेल माइनिंग कंपनी को हीरा खनन के लिए अधिकृत किया गया है.

4 लाख पेड़ काटे जाने के खिलाफ लगी थी याचिका: बक्सवाहा में हीरा खनन के लिए हरी झंडी मिलते ही तय हो गया था कि इस इलाके में बड़े पैमाने पर जंगल काटे जाएंगे, जिससे पर्यावरण और जैव विविधता के लिए बड़े पैमाने पर नुकसान होगा. एक अनुमान के मुताबिक परियोजना के लिए इलाके के 4 लाख पेड़ काटे जाएंगे, इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों के कटने को लेकर पीजी पांडे ने एनजीटी में याचिका दायर की थी. याचिका को एनजीटी ने अपरिपक्व करार देते हुए 28 फरवरी को खारिज कर दिया, हालांकि याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका लगाई है लेकिन संभावना है कि पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो जाएगी. दूसरी तरफ हीरा खनन के लिए एक्सेल माइनिंग कंपनी ने तैयारियां शुरू कर दी हैं और सरकार द्वारा उसे साढ़े 3 सौ हेक्टेयर से ज्यादा हेक्टेयर का पट्टा भी आवंटित किया जा चुका है, जिसमें सबसे पहले पहला काम पेड़ों को काटने का किया जाएगा.

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क्या कहना है भूगर्भ शास्त्री का: सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय के व्यावहारिक भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. आरके त्रिवेदी इस इलाके में काफी शोध कर चुके हैं, वह बताते हैं कि "विशेषकर छतरपुर से बक्सवाहा का जो बंदर प्रोजेक्ट है, यहां पर हीरे की खदान का अन्वेषण रियो टिंटो ग्रुप द्वारा किया गया था. इसका विस्तार पन्ना के मझगवां की हीरा खदानों से चार-पांच गुना ज्यादा बताया जा रहा है, अगर इस नजरिए से देखें तो ये बड़ी मात्रा में बहुमूल्य राष्ट्रीय संपत्ति है, जिसका दोहन किया जाना चाहिए, जो राष्ट्र हित में होगा. दूसरी तरफ हम पर्यावरण के लिहाज से देखें, तो हमें अनुमान लगाना होगा कि इस प्रोजेक्ट के आने के बाद जब खनन शुरू होगा, तो कितना नुकसान होगा. तुलनात्मक रूप से ये नुकसान अगर मिलने वाले मटेरियल की तुलना में कम मूल्य का है, तो यहां खनन शुरू कर सकते हैं. वैसे भी खनन के लिए जो इलाका चुना गया है, वह जंगल के नजरिए से काफी छोटा है और काफी कम मात्रा में जंगल को नुकसान होगा."

क्या कहते हैं पर्यावरण प्रेमी: वन और वन्यजीव के संरक्षण के लिए कार्यरत प्रयत्न संस्था के संयोजक अजय दुबे बताते हैं कि "मध्यप्रदेश के बक्सवाहा में हीरा खदान के लिए हजारों पेड़ों को काटा जाएगा, यह काफी दुखद है. हमारा मानना है कि केंद्रीय वन मंत्रालय और मध्य प्रदेश सरकार के वन विभाग को इस विषय पर ध्यान देना चाहिए. हीरा खदान के खनन से पेड़ों को होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति में जो वृक्षारोपण होगा, उस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि बक्सवाहा में बड़ी संख्या में वन्य प्राणियों का कारीडोर है. यहां पर बड़ी मूल्यवान प्रजाति के वृक्ष हैं और जैव विविधता है, यदि हम इस संपदा को नष्ट करेंगे तो आने वाली पीढ़ी के साथ अन्याय होगा. इसके विकल्प के तौर पर जो बेहतर पर्यावरण संरक्षण हो सकता है, हमें उस पर ध्यान देना चाहिए. मध्य प्रदेश सरकार इसे गंभीरता से समझे कि यदि प्रकृति और संपदा की रक्षा करेंगे, तो जलवायु परिवर्तन की चुनौती हमारे सामने हैं, हम उससे निपट सकेंगे."

क्या कहते हैं इतिहासकार: जिस इलाके में हीरों का खनन किया जाना है, उस इलाके में पर्यावरण संपदा के अलावा ऐतिहासिक संपदा भी बड़े पैमाने पर बिखरी हुई है. इतिहासकार डॉ भरत शुक्ला बताते हैं कि "बंदर प्रोजेक्ट में बहुत बड़ी मात्रा में भूमि का खनन किया जाना है, क्योंकि यहां पर पन्ना की हीरा खदानों से ज्यादा मात्रा में हीरा मिलने का सर्वे हो चुका है लेकिन सरकार को में यह जानकारी देना चाहूंगा कि वहां पर पाषाणकाल के भित्ति चित्र और शैलचित्र हैं. इसके लिए सरकार को पुरातत्व विभाग से संयोजन करके उनके संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए. इसके अलावा इस इलाके में चंदेल और कलचुरी राजवंश, जो हमारे बुंदेलखंड के महान राजवंश रह चुके हैं, उनके स्मारक मंदिर और शिलालेख भी पाए गए हैं, हमें इनका संरक्षण करने के बाद हीरा का खनन शुरू करना चाहिए.

Last Updated : Mar 28, 2023, 2:29 PM IST
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