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अपनी विरासत: इस महल में है उदयपुर की शान, वृंदावन के भगवान और सफेद बाघ की पहचान...

रीवा में गोविन्दगढ़ का ऐतिहासिक किला अब जल्द ही अपना वास्तविक रूप लेगा. इसके लिए सरकार के द्वारा वाइल्ड लाइफ हेरिटेज कंपनी को काम सौंप दिया गया है. देखें हमारी यह स्पेशल रिपोर्ट...

Historical Fort of Govindgarh
गोविंदगढ़ का ऐतिहासिक किला
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Published : Jan 22, 2021, 1:10 PM IST

रीवा। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गोविन्दगढ़ का यह ऐतिहासिक किला लगभग 200 वर्ष पुराना है. यह किला कभी रीवा रियासत के महाराजाओं की शान हुआ करता था. इस भव्य किले का निर्माण वर्ष 1855 में रीवा रियासत के महाराजा विश्वनाथ सिंह ने कराया था. विश्व का पहला सफेद बाघ मोहन भी इसी किले में पला और बड़ा हुआ. लेकिन समय बीतता गया और किले का अस्तित्त्व खत्म होता चला गया. देखरेख के अभाव में एक विशालकाय और खूबसूरत किला खंडहर में तब्दील हो गया. बीते कई वर्षों से सरकार इसके संरक्षण के लिए योजनाएं तो बना रही थी, लेकिन इसे मूर्तरूप नहीं दिया जा सका. लेकिन अब जल्द ही किला अपना वास्तविक रूप ले लेगा. इसके लिए सरकार ने वाइल्ड लाइफ हैरिटेज कंपनी को काम सौंप है.

गोविंदगढ़ का ऐतिहासिक किला

महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव ने कराया था किले का निर्माण

रीवा रियासत में अब तक 37 राजाओं और उनकी पीढ़ियों ने राज किया. इन्ही राजाओं में से एक राजा थे महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव. महाराजा विश्वनाथ जू देव के पुत्र थे रघुराज सिंह जू देव. जिनका विवाह वर्ष 1851 के दौरान उदयपुर के महाराजा की बेटी राजकुमारी सौभाग्य कुमरी के साथ हुआ था. इतिहासकारों की मानें तो विवाह से पहले उदयपुर के महाराजा ने रीवा महाराजा विश्वनाथ सिंह के सामने उदयपुर स्थित लेक पैलेस के तर्ज पर रीवा में एक भव्य किला निर्माण कराने की शर्त रखी. जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हो. जिसके बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव ने उनकी शर्त मान ली और गोविन्दगढ़ में एक महल का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया. महल के निर्माण कार्य से पहले एक विशालकाय तालाब का निर्माण कराया गया. जिसका नाम विश्वनाथ सरोवर रखा गया. जिसे आज के समय मे गोविन्दगढ़ तालाब भी कहा जाता है. तालाब के किनारे एक बंगले का निर्माण कराया गया. जो की उदयपुर के लेक पैलेस से मिलता जुलता था. वर्ष 1851 में किले का निर्माण कार्य शुरू हुआ. शर्त के अनुसार कुछ वर्षों बाद महाराजा रघुराज सिंह जू देव का विवाह उदयपुर की राजकुमारी सौभाग्य कुमारी के साथ संपन्न हुआ. महरानी बनकर इसी गोविंदगढ़ के किले में उनका निवास हुआ और 4 वर्षों के बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव का निधन हो गया. जिसके बाद आगे का निर्माण कार्य उनके पुत्र महाराजा रघुराज सिंह जू देव की देख रेख में हुआ.

वृन्दावन के तर्ज पर विकसित किया गया गोविन्दगढ़ का कस्बा

निर्माण कार्य के दौरान किले के आस पास बड़ी संख्या में मंदिरों का भी निर्माण कार्य कराया गया. वृन्दावन के तर्ज पर कस्बे को विकसित किया गया. जिनमें से एक मंदिर में रमा गोविंद भगवान की स्थापना की गई और तब से इस कस्बे का नाम गोविन्दगढ़ हुआ. जबकि पहले गोविंदगढ़ को खंदो के नाम से जाना जाता था. लेकिन इस ऐतिहासिक किले और मंदिरों के अंदर रखी बेशकीमती मूर्तियों पर तस्करों की नजर पड़ी एवं कई मंदिरों से मूर्तिया चोरी कर ली गईं. वर्ष 1951 में विश्व का पहले सफेद बाघ मोहन को इसी गोविन्दगढ़ के जंगलों से पकड़ा गया था. इसके बाद में गोविन्दगढ़ के किले में रखा गया. जिसके वंशज आज दुनिया भर के चिड़ियाघरों में मौजूद हैं. 25 वर्षों तक मोहन की देख रेख की गई और लगभग 1976 के दरमियान मोहन ने अंतिम सांस ली. जिसकी याद में किले के बाहर बगीचे में उसकी समाधी बनाई गई.

देखरेख के अभाव में 200 वर्ष पुराना किला हुआ खंडहर

महाराजा रघुराज सिंह जू देव के बाद उनके पुत्र गुलाब सिंह और महाराजा गुलाब सिंह जू देव के बाद उनके पुत्र महाराजा मार्तण्ड सिंह के कार्यकाल तक इस किले होता विस्तार होता रहा. लेकिन समय बीतता गया और प्रशासनिक अनदेखी के चलते प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस खूबसूरत विशालकाय किले का अस्तित्त्व खोता चला गया. 170 वर्ष पुराना यह किला खंडहर में तब्दील हो गया. वर्ष 1985 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय अर्जुन सिंह के कार्यकाल में इस किले को राज्य सरकार ने अधिग्रहित किया. लेकिन बाद में यह किला देखरेख की अभाव में जीर्ण-शीर्ण होने लगा. कुछ वर्षों बाद इस किले को पुरात्तत्व विभाग के हवाले कर दिया गया. बाद में किले की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को सौंप दी गई.

100 करोड़ की लागत से दोबारा लौटेगा किले का अस्तित्त्व

किले को विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2010 में 3 साल के भीतर काम पूरा करने की शर्त पर मेसर्स मैगपाई रिसोर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को काम सौंपा. लेकिन 5 वर्ष तक कार्य शुरू नहीं हुआ. 5 साल के बाद समीक्षा कर अनुबंध निरस्त कर दिया गया. कंपनी की ओर से जमानत के तौर पर जमा कराई गई 1.72 करोड़ की राशि को जब्त कर लिया गया. दरअसल गोविन्दगढ़ किले का एक लंबा इतिहास रहा है. जिसके लिए प्राचीन धरोहर को संजोने के लिए शासन एवं प्रशासन के द्वारा एक बार फिर इस ऐतिहासिक किले का वास्तविक रूप में वापस लाने के लिए पीपीपी मोड़ के तहत राजस्थान स्थित उदयपुर की वाइल्ड लाइफ हेरिटेज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को इसका जिम्मा सौंपा गया. कंपनी के द्वारा किले को दोबारा विकसित करने के लिए निर्माण कार्य की शुरुआत भी कर दी गई है. लगभग 100 करोड़ की लागत से 5 वर्ष बाद यह किला एक बार फिर अपना वास्तविक रूप ले लेगा.

राजशाही की रौनक और फिर से गुलजार होने का इंतजार

गोविन्दगढ़ किले को स्थानीय और विदेशी पर्यटकों की पसंद को ध्यान में रखते हुए विकसित कराया जा रहा है. पर्यटन के नजरिए से देखा जाए तो खजुराहो और बांधवगढ़ के बीच ठहरने की कोई खास व्यवस्था नहीं है. जिसे ध्यान में रखते हुए दोबारा इस किले को विकसित कराया जा रहा है. व्हाइट टाइगर सफारी भी किले से महज 5 किलोमीटकर की दूरी पर है. इस लिए यहां आने वाले पर्यटकों के लिए बेहतर इंतजाम हो सकेगा. सरकार और कंपनी के बीच रखी गई शर्त में कंपनी को किले का वास्तविक रूप लौटाने लिए किले के निर्माण कार्य मे उपयोग की गई समाग्री से ही उसका दोबारा कायाकल्प कराया जाना है. जिसमें उडद, गुड़, बेल और गोंद सहित अन्य समाग्री का उपयोग किया जाएगा. किले का स्वरूप पहले की तरह होगा. भीतरी हिस्से में हेरिटेज होटल के लिए डीलक्स कमरे बनाए जाएंगे और किले की साज सज्जा राजशाही समय का ही होगा.

रीवा। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर गोविन्दगढ़ का यह ऐतिहासिक किला लगभग 200 वर्ष पुराना है. यह किला कभी रीवा रियासत के महाराजाओं की शान हुआ करता था. इस भव्य किले का निर्माण वर्ष 1855 में रीवा रियासत के महाराजा विश्वनाथ सिंह ने कराया था. विश्व का पहला सफेद बाघ मोहन भी इसी किले में पला और बड़ा हुआ. लेकिन समय बीतता गया और किले का अस्तित्त्व खत्म होता चला गया. देखरेख के अभाव में एक विशालकाय और खूबसूरत किला खंडहर में तब्दील हो गया. बीते कई वर्षों से सरकार इसके संरक्षण के लिए योजनाएं तो बना रही थी, लेकिन इसे मूर्तरूप नहीं दिया जा सका. लेकिन अब जल्द ही किला अपना वास्तविक रूप ले लेगा. इसके लिए सरकार ने वाइल्ड लाइफ हैरिटेज कंपनी को काम सौंप है.

गोविंदगढ़ का ऐतिहासिक किला

महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव ने कराया था किले का निर्माण

रीवा रियासत में अब तक 37 राजाओं और उनकी पीढ़ियों ने राज किया. इन्ही राजाओं में से एक राजा थे महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव. महाराजा विश्वनाथ जू देव के पुत्र थे रघुराज सिंह जू देव. जिनका विवाह वर्ष 1851 के दौरान उदयपुर के महाराजा की बेटी राजकुमारी सौभाग्य कुमरी के साथ हुआ था. इतिहासकारों की मानें तो विवाह से पहले उदयपुर के महाराजा ने रीवा महाराजा विश्वनाथ सिंह के सामने उदयपुर स्थित लेक पैलेस के तर्ज पर रीवा में एक भव्य किला निर्माण कराने की शर्त रखी. जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हो. जिसके बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव ने उनकी शर्त मान ली और गोविन्दगढ़ में एक महल का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया. महल के निर्माण कार्य से पहले एक विशालकाय तालाब का निर्माण कराया गया. जिसका नाम विश्वनाथ सरोवर रखा गया. जिसे आज के समय मे गोविन्दगढ़ तालाब भी कहा जाता है. तालाब के किनारे एक बंगले का निर्माण कराया गया. जो की उदयपुर के लेक पैलेस से मिलता जुलता था. वर्ष 1851 में किले का निर्माण कार्य शुरू हुआ. शर्त के अनुसार कुछ वर्षों बाद महाराजा रघुराज सिंह जू देव का विवाह उदयपुर की राजकुमारी सौभाग्य कुमारी के साथ संपन्न हुआ. महरानी बनकर इसी गोविंदगढ़ के किले में उनका निवास हुआ और 4 वर्षों के बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव का निधन हो गया. जिसके बाद आगे का निर्माण कार्य उनके पुत्र महाराजा रघुराज सिंह जू देव की देख रेख में हुआ.

वृन्दावन के तर्ज पर विकसित किया गया गोविन्दगढ़ का कस्बा

निर्माण कार्य के दौरान किले के आस पास बड़ी संख्या में मंदिरों का भी निर्माण कार्य कराया गया. वृन्दावन के तर्ज पर कस्बे को विकसित किया गया. जिनमें से एक मंदिर में रमा गोविंद भगवान की स्थापना की गई और तब से इस कस्बे का नाम गोविन्दगढ़ हुआ. जबकि पहले गोविंदगढ़ को खंदो के नाम से जाना जाता था. लेकिन इस ऐतिहासिक किले और मंदिरों के अंदर रखी बेशकीमती मूर्तियों पर तस्करों की नजर पड़ी एवं कई मंदिरों से मूर्तिया चोरी कर ली गईं. वर्ष 1951 में विश्व का पहले सफेद बाघ मोहन को इसी गोविन्दगढ़ के जंगलों से पकड़ा गया था. इसके बाद में गोविन्दगढ़ के किले में रखा गया. जिसके वंशज आज दुनिया भर के चिड़ियाघरों में मौजूद हैं. 25 वर्षों तक मोहन की देख रेख की गई और लगभग 1976 के दरमियान मोहन ने अंतिम सांस ली. जिसकी याद में किले के बाहर बगीचे में उसकी समाधी बनाई गई.

देखरेख के अभाव में 200 वर्ष पुराना किला हुआ खंडहर

महाराजा रघुराज सिंह जू देव के बाद उनके पुत्र गुलाब सिंह और महाराजा गुलाब सिंह जू देव के बाद उनके पुत्र महाराजा मार्तण्ड सिंह के कार्यकाल तक इस किले होता विस्तार होता रहा. लेकिन समय बीतता गया और प्रशासनिक अनदेखी के चलते प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस खूबसूरत विशालकाय किले का अस्तित्त्व खोता चला गया. 170 वर्ष पुराना यह किला खंडहर में तब्दील हो गया. वर्ष 1985 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय अर्जुन सिंह के कार्यकाल में इस किले को राज्य सरकार ने अधिग्रहित किया. लेकिन बाद में यह किला देखरेख की अभाव में जीर्ण-शीर्ण होने लगा. कुछ वर्षों बाद इस किले को पुरात्तत्व विभाग के हवाले कर दिया गया. बाद में किले की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को सौंप दी गई.

100 करोड़ की लागत से दोबारा लौटेगा किले का अस्तित्त्व

किले को विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2010 में 3 साल के भीतर काम पूरा करने की शर्त पर मेसर्स मैगपाई रिसोर्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को काम सौंपा. लेकिन 5 वर्ष तक कार्य शुरू नहीं हुआ. 5 साल के बाद समीक्षा कर अनुबंध निरस्त कर दिया गया. कंपनी की ओर से जमानत के तौर पर जमा कराई गई 1.72 करोड़ की राशि को जब्त कर लिया गया. दरअसल गोविन्दगढ़ किले का एक लंबा इतिहास रहा है. जिसके लिए प्राचीन धरोहर को संजोने के लिए शासन एवं प्रशासन के द्वारा एक बार फिर इस ऐतिहासिक किले का वास्तविक रूप में वापस लाने के लिए पीपीपी मोड़ के तहत राजस्थान स्थित उदयपुर की वाइल्ड लाइफ हेरिटेज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को इसका जिम्मा सौंपा गया. कंपनी के द्वारा किले को दोबारा विकसित करने के लिए निर्माण कार्य की शुरुआत भी कर दी गई है. लगभग 100 करोड़ की लागत से 5 वर्ष बाद यह किला एक बार फिर अपना वास्तविक रूप ले लेगा.

राजशाही की रौनक और फिर से गुलजार होने का इंतजार

गोविन्दगढ़ किले को स्थानीय और विदेशी पर्यटकों की पसंद को ध्यान में रखते हुए विकसित कराया जा रहा है. पर्यटन के नजरिए से देखा जाए तो खजुराहो और बांधवगढ़ के बीच ठहरने की कोई खास व्यवस्था नहीं है. जिसे ध्यान में रखते हुए दोबारा इस किले को विकसित कराया जा रहा है. व्हाइट टाइगर सफारी भी किले से महज 5 किलोमीटकर की दूरी पर है. इस लिए यहां आने वाले पर्यटकों के लिए बेहतर इंतजाम हो सकेगा. सरकार और कंपनी के बीच रखी गई शर्त में कंपनी को किले का वास्तविक रूप लौटाने लिए किले के निर्माण कार्य मे उपयोग की गई समाग्री से ही उसका दोबारा कायाकल्प कराया जाना है. जिसमें उडद, गुड़, बेल और गोंद सहित अन्य समाग्री का उपयोग किया जाएगा. किले का स्वरूप पहले की तरह होगा. भीतरी हिस्से में हेरिटेज होटल के लिए डीलक्स कमरे बनाए जाएंगे और किले की साज सज्जा राजशाही समय का ही होगा.

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