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शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है विघ्नहर्ता की ये मूर्ति, इस वजह से नहीं होती पूजा-अर्चना

रीवा के किला परिसर में स्थित भगवान गणेश की एरोटिक मूर्ति की पूजा-अर्चना नहीं की जाती. शिल्प कला के बेजोड़ नमूने वाली इस मूर्ति को दुनिया की इकलौती मूर्ति बताया जाता है.

रीवा किला परिसर में स्थित गणेश की इस मूर्ति की नहीं होती है पूजा-अर्चना
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Published : Sep 5, 2019, 1:38 PM IST

रीवा। संभागीय मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर सीधी रोड पर गोर्गी नाम की एक जगह है, जिसे आठवीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने बसाया था. कलचुरी राजाओं ने गोर्गी कोमट मंदिर को शहर की तर्ज पर विकसित किया था. जहां तरह-तरह की प्रतिमाओं को पत्थर पर उकेरा गया था. जिन्हें आज भी शिल्प कला का बेजोड़ नमूना माना जाता है. मगर बदलते वक्त के साथ अब वहां इधर-उधर बिखरी मूर्तियों के अवशेष के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है.

रीवा किला परिसर में स्थित गणेश की इस मूर्ति की नहीं होती है पूजा-अर्चना

गोर्गी से बहुत सी मूर्तियां चोरों ने गायब कर दी थी, लेकिन कुछ बची हुई मूर्तियों को तत्कालीन रीवा महाराज गुलाब सिंह जूदेव एवं उनके बेटे महाराज मार्तंड सिंह जूदेव ने संरक्षण के उद्देश्य से रीवा जिले में स्थापित कर दिया था. उन्हीं में से एक है भगवान गणेश की मूर्ति, इस मूर्ति को एरोटिक गणेश के नाम से जाना जाता है.

बताया जाता है कि गणेश की ये मूर्ति इस रूप में दुनिया में और कहीं नहीं है. ये मूर्ति छठवीं से आठवीं शताब्दी के बीच की है, हालांकि इस मूर्ति को पूजा नहीं जाता है. इसे किला परिसर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में संरक्षित कर रखा गया है.

गणेश चतुर्थी के अवसर पर भारत वर्ष में हर जगह गणेश भगवान की पूजा अर्चना की जा रही है. यहां तक की रीवा स्थित राजघराना किला मंदिर में भी गणपति बप्पा की कुछ मूर्तियां ऐसी हैं, जिनकी कायदे से पूजा-अर्चना की जाती है. पर एरोटिक गणपति की पूजा नहीं की जाती है. उन्हें नहीं पूजे जाने की वजह है कि इन मूर्तियों को कलचुरी राजाओं ने मंदिर के बाहरी हिस्से पर भव्यता और धार्मिकता को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया था. जिसकी उस समय भी पूजा-अर्चना नहीं की जाती थी. यही वजह है कि बाद में रीवा राज के शासकों ने महल में 18 मूर्तियों को संरक्षित कर रखवा दिया.

रीवा। संभागीय मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर सीधी रोड पर गोर्गी नाम की एक जगह है, जिसे आठवीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने बसाया था. कलचुरी राजाओं ने गोर्गी कोमट मंदिर को शहर की तर्ज पर विकसित किया था. जहां तरह-तरह की प्रतिमाओं को पत्थर पर उकेरा गया था. जिन्हें आज भी शिल्प कला का बेजोड़ नमूना माना जाता है. मगर बदलते वक्त के साथ अब वहां इधर-उधर बिखरी मूर्तियों के अवशेष के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है.

रीवा किला परिसर में स्थित गणेश की इस मूर्ति की नहीं होती है पूजा-अर्चना

गोर्गी से बहुत सी मूर्तियां चोरों ने गायब कर दी थी, लेकिन कुछ बची हुई मूर्तियों को तत्कालीन रीवा महाराज गुलाब सिंह जूदेव एवं उनके बेटे महाराज मार्तंड सिंह जूदेव ने संरक्षण के उद्देश्य से रीवा जिले में स्थापित कर दिया था. उन्हीं में से एक है भगवान गणेश की मूर्ति, इस मूर्ति को एरोटिक गणेश के नाम से जाना जाता है.

बताया जाता है कि गणेश की ये मूर्ति इस रूप में दुनिया में और कहीं नहीं है. ये मूर्ति छठवीं से आठवीं शताब्दी के बीच की है, हालांकि इस मूर्ति को पूजा नहीं जाता है. इसे किला परिसर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में संरक्षित कर रखा गया है.

गणेश चतुर्थी के अवसर पर भारत वर्ष में हर जगह गणेश भगवान की पूजा अर्चना की जा रही है. यहां तक की रीवा स्थित राजघराना किला मंदिर में भी गणपति बप्पा की कुछ मूर्तियां ऐसी हैं, जिनकी कायदे से पूजा-अर्चना की जाती है. पर एरोटिक गणपति की पूजा नहीं की जाती है. उन्हें नहीं पूजे जाने की वजह है कि इन मूर्तियों को कलचुरी राजाओं ने मंदिर के बाहरी हिस्से पर भव्यता और धार्मिकता को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया था. जिसकी उस समय भी पूजा-अर्चना नहीं की जाती थी. यही वजह है कि बाद में रीवा राज के शासकों ने महल में 18 मूर्तियों को संरक्षित कर रखवा दिया.

Intro:रीवा किला परिसर में मौजूद भगवान गणेश की ऐसी मूर्ति जिसे शिल्प कला का बेजोड़ नमूना कहा जाता है करीब 15 वर्ष पूर्व निर्मित एरोटिक गणेश की यह मूर्ति रूप में दुनिया में कहीं और नहीं है लेकिन खास बात यह है कि दुनिया की दुर्लभ गणेश प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है।।।



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संभागीय मुख्यालय रीवा से 10 किलोमीटर दूर सीधी रोड पर एक जगह है गोर्गी जिसे आठवीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने बसाया था कलचुरी राजाओं ने गोर्गी कोमट मंदिर में शहर की तर्ज पर विकसित किया था यहां पर तरह-तरह की प्रतिमाओं को पत्थर पर उकेरा गया है जिन्हें शिल्प कला का अनोखा नमूना भी माना जाता है शिल्प कला का ऐसा उदाहरण इस शिल्प के जानकार भी दांतो तले उंगली दबा लेते हैं मगर बदलते वक्त के साथ मठ मंदिर का नगर गोर्गी खंडार के ढेर में बदल गया अब वहां इधर-उधर बिखरे मूर्तियों के अवशेष के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता।

बहुत सी मूर्ति यहां चोरों ने गायब कर दी लेकिन कुछ बची हुई मूर्तियों को तत्कालीन रीवा महाराज गुलाब सिंह जूदेव एवं उनके बेटे महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव के द्वारा संरक्षण के उद्देश्य से रीवा जिले में ले आई गई उन्हीं में से एक है भगवान गणेश की मूर्ति तथा इस मूर्ति को एरोटिक गणेश के नाम से जाना जाता है इस मूर्ति को शिल्प कला का बेजोड़ नमूना कहा जाता है बताया जाता है कि आरोपी गणेश की यह मूर्ति इस रूप में दुनिया में और कहीं नहीं है यह मूर्तियां छठवीं से आठवीं शताब्दी के बीच की हैं हालांकि इस मूर्ति को पूजा नहीं जाता है इसे किला परिसर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में संरक्षित कर रखा गया है।।


आपको बता दें कि गणेश चतुर्थी के अवसर पर भारतवर्ष में हर जगह गणेश भगवान की पूजा अर्चना की जा रही है यहां तक कि रीवा स्थित राजघराना किला मंदिर में भी गणपति बप्पा की कुछ मूर्तियां ऐसी हैं जिनकी वह कायदे से पूजा अर्चना की जाती है मगर एरोटिक गणपति के नाम से जाने जाने वाले यह देवता पूजा नहीं जाते हैं और उन्हें ना पूजे जाने की वजह यह है कि इन मूर्तियों को कलचुरी राजाओं के द्वारा मंदिर के बाहरी हिस्से पर भव्यता और धार्मिकता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था जिसकी उस समय भी पूजा-अर्चना नहीं की जाती थी और यह कारण है कि बाद में रीवा राज के शासकों द्वारा महल में इन्हें संरक्षित करवा दिया गया लेकिन इन मूर्तियों के पूजा अर्चना की मनाही है अगर आप भी शिल्प कला के बेजोड़ नमूने देखने के शौकीन है तो एक बार रीवा महल के 18 गणेश की मूर्तियों को देखना जरूरी है।।


byte- अलका सिंह, सीईओ महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव चैरिटी ट्रस्ट।


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