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कहानी विंध्य की...जिसे फिर प्रदेश बनाने की उठी मांग - Vindhya Pradesh Demand

मध्यप्रदेश से अलग विंध्यप्रदेश बनाने की मांग तेज होने लगी है. मैहर से बीजेपी विधायक लगातार अलग विंध्यप्रदेश की मांग कर रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1948 में विंध्यप्रदेश कैसा था.

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विंध्य प्रदेश
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Published : Jan 20, 2021, 9:22 PM IST

रीवा । मध्यप्रदेश में एक बार फिर विंध्य प्रदेश बनाने की मांग उठी है. मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार मध्य प्रदेश से अलग होकर विंध्य प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं. नारायण त्रिपाठी का कहना है कि, छोटे-छोटे प्रदेश बनाने से विकास होता है. देश में कई उदाहरण हैं जहां अलग प्रदेश बनने के बाद विकास हुआ है. ऐसे में विंध्य वासियों के जेहन में एक ये भी सवाल उठ रहा है कि आखिर उनका पुराना विंध्य कैसा था ? क्या उन्हें विंध्य प्रदेश मिलेगा.

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अलग विंध्य प्रदेश की मांग

विंध्य के पुनर्गठन की फिर उठी मांग

मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था. नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व समाप्त हो गया. इसमें आने वाले बघेलखंड और बुंदेलखंड के साथ अन्य कई क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा हो गए. उस दौरान विलय के समय इस क्षेत्र में जो संसाधन दिए जाने थे, वह नहीं मिले. जिसकी वजह से फिर विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग उठ खड़ी हुई. हालांकि विलय का भी व्यापक रूप से विरोध हुआ था, बड़ा आंदोलन हुआ गोलियां चली. गंगा, चिंताली और अजीज नाम के लोग शहीद भी हुए, सैकड़ों लोग जेल भी गए. लेकिन सरकारी तंत्र ने उस आवाज को शांत कर दिया था. बढ़ती मांग के चलते मध्यप्रदेश विधानसभा ने 10 मार्च 2000 को संकल्प पारित कर विंध्य प्रदेश के अलग राज्य गठित करने के लिए केन्द्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की थी.

Awadhesh Pratap Singh University
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय

सर्वसम्मति से पारित हुआ था प्रस्ताव

ये संकल्प विधानसभा में अमरपाटन के तत्कालीन विधायक शिव मोहन सिंह ने प्रस्तुत किया था. जिसका विंध्य के सभी विधायकों ने समर्थन कर इस क्षेत्र के दावे के बारे में बताया था. उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी. इस संकल्प का समर्थन भाजपा के विधायकों ने भी किया था. सर्वसम्मति से पारित किए गए इस प्रस्ताव के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने केंद्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की थी.

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कभी विंध्य प्रदेश की राजधानी थी रीवा

टूटते गए विभागों के प्रदेश कार्यालय

स्टेट री-ऑर्गनाइजेशन बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिन राज्यों का विलय हो रहा है. उनका गौरव बनाए रखने के लिए प्रदेश स्तर के संसाधन दिए जाएंगे. विंध्य प्रदेश के विलय के बाद इसकी राजधानी रहे रीवा में एक कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए. पूर्व में यहां हाईकोर्ट राजस्व मंडल अकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था और धीरे-धीरे इस का स्थानांतरण होता गया. उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं. लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ. इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच अकाउंटेंट जनरल के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए, इंदौर को लोकसेवा आयोग वाणिज्यकर हाईकोर्ट की बेंच श्रम विभाग के मुख्यालय मिले, जबलपुर को हाईकोर्ट रोजगार संचानालय मिला था. इसके अलावा अन्य स्थानों पर राज्य के कार्यालय संचालित हैं. लेकिन यह केवल संभागीय मुख्यालय रह गया है.

लगातार उपेक्षित हो रहा है विंध्य प्रदेश

विंध क्षेत्र को बड़े संस्थान अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम मिल रहे हैं. विंध्य प्रदेश पुनर्गठन को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक जयराम शुक्ला बताते हैं कि मध्यप्रदेश में आईआईटीएस यूनिवर्सिटी सहित कई बड़े संस्थान इंदौर, भोपाल और जबलपुर को दिए जा रहे हैं. विंध्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बस शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं. यहां उद्योग भी आए तो धुंए और धूल वाले विंध्य प्रदेश की राजधानी रहे रीवा को स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट से भी अलग रखा गया. जब रीवा राजधानी थी तो ये लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर जैसे शहरों के बराबर माना जाता था. उस समय इसे भोपाल से भी बड़ा माना जाता था. यहां राजनीतिक जागरूकता सबसे अधिक रही. लेकिन क्षेत्र के विकास में इसका फायदा जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके.

60 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला था विंध्य प्रदेश

राज्य पुनर्गठन 1956 के पूर्व विंध्य प्रदेश 1951 में गवर्नमेंट ऑफ स्टेट्स एक्ट के अंतर्गत पार्ट सी स्टेट था. इसका क्षेत्रफल 14,84,5721 एकड़ था यानि लगभग 60 हजार वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 35 लाख 75 हजार थी. तब विंध्य प्रदेश में 8 जिले थे. जिसमें रीवा, सतना, शहडोल, सीधी, पन्ना, छतरपुर, दतिया और टीकमगढ़ शामिल थे. इसके अलावा गांव की कुल संख्या 12,776 थी उस समय भी प्रदेश में 11 नगरपालिका थीं और एक नोटिफाइड एरिया कमेटी थीं. विंध्य प्रदेश में 1806 ग्राम पंचायत और 585 न्याय पंचायतें थी. 1 मार्च 1952 से विंध्य प्रदेश में उप राज्यपाल नियुक्त हुआ, प्रथम आम चुनाव में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए सदस्यों और लोकसभा के लिए 6 सदस्यों का निर्वाचन हुआ साथ ही राज्यसभा में मध्य प्रदेश को चार स्थान आवंटित किए गए थे.

विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे अवधेश प्रताप सिंह

साल 1948 में जब विंध्यप्रदेश की स्थापना हुई, तब पहली बार अवधेश प्रताप सिंह को मुख्यमंत्री निर्वाचित किया गया था, जिसके नाम से बाद में रीवा में एक विश्वविद्यालय भी बनाया गया. साथ ही रीवा के वर्तमान नगर निगम कार्यालय में विधानसभा लगाई जा रही थी. इसके अलावा वर्तमान स्वागत भवन में विधायकों का विश्राम गृह था. वर्तमान एसपी के निवासरत को मुख्यमंत्री का निवास स्थान बनाया गया था.

रीवा । मध्यप्रदेश में एक बार फिर विंध्य प्रदेश बनाने की मांग उठी है. मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार मध्य प्रदेश से अलग होकर विंध्य प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं. नारायण त्रिपाठी का कहना है कि, छोटे-छोटे प्रदेश बनाने से विकास होता है. देश में कई उदाहरण हैं जहां अलग प्रदेश बनने के बाद विकास हुआ है. ऐसे में विंध्य वासियों के जेहन में एक ये भी सवाल उठ रहा है कि आखिर उनका पुराना विंध्य कैसा था ? क्या उन्हें विंध्य प्रदेश मिलेगा.

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अलग विंध्य प्रदेश की मांग

विंध्य के पुनर्गठन की फिर उठी मांग

मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था. नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व समाप्त हो गया. इसमें आने वाले बघेलखंड और बुंदेलखंड के साथ अन्य कई क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा हो गए. उस दौरान विलय के समय इस क्षेत्र में जो संसाधन दिए जाने थे, वह नहीं मिले. जिसकी वजह से फिर विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग उठ खड़ी हुई. हालांकि विलय का भी व्यापक रूप से विरोध हुआ था, बड़ा आंदोलन हुआ गोलियां चली. गंगा, चिंताली और अजीज नाम के लोग शहीद भी हुए, सैकड़ों लोग जेल भी गए. लेकिन सरकारी तंत्र ने उस आवाज को शांत कर दिया था. बढ़ती मांग के चलते मध्यप्रदेश विधानसभा ने 10 मार्च 2000 को संकल्प पारित कर विंध्य प्रदेश के अलग राज्य गठित करने के लिए केन्द्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की थी.

Awadhesh Pratap Singh University
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय

सर्वसम्मति से पारित हुआ था प्रस्ताव

ये संकल्प विधानसभा में अमरपाटन के तत्कालीन विधायक शिव मोहन सिंह ने प्रस्तुत किया था. जिसका विंध्य के सभी विधायकों ने समर्थन कर इस क्षेत्र के दावे के बारे में बताया था. उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी. इस संकल्प का समर्थन भाजपा के विधायकों ने भी किया था. सर्वसम्मति से पारित किए गए इस प्रस्ताव के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने केंद्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की थी.

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कभी विंध्य प्रदेश की राजधानी थी रीवा

टूटते गए विभागों के प्रदेश कार्यालय

स्टेट री-ऑर्गनाइजेशन बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिन राज्यों का विलय हो रहा है. उनका गौरव बनाए रखने के लिए प्रदेश स्तर के संसाधन दिए जाएंगे. विंध्य प्रदेश के विलय के बाद इसकी राजधानी रहे रीवा में एक कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए. पूर्व में यहां हाईकोर्ट राजस्व मंडल अकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था और धीरे-धीरे इस का स्थानांतरण होता गया. उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं. लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ. इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच अकाउंटेंट जनरल के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए, इंदौर को लोकसेवा आयोग वाणिज्यकर हाईकोर्ट की बेंच श्रम विभाग के मुख्यालय मिले, जबलपुर को हाईकोर्ट रोजगार संचानालय मिला था. इसके अलावा अन्य स्थानों पर राज्य के कार्यालय संचालित हैं. लेकिन यह केवल संभागीय मुख्यालय रह गया है.

लगातार उपेक्षित हो रहा है विंध्य प्रदेश

विंध क्षेत्र को बड़े संस्थान अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम मिल रहे हैं. विंध्य प्रदेश पुनर्गठन को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक जयराम शुक्ला बताते हैं कि मध्यप्रदेश में आईआईटीएस यूनिवर्सिटी सहित कई बड़े संस्थान इंदौर, भोपाल और जबलपुर को दिए जा रहे हैं. विंध्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बस शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं. यहां उद्योग भी आए तो धुंए और धूल वाले विंध्य प्रदेश की राजधानी रहे रीवा को स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट से भी अलग रखा गया. जब रीवा राजधानी थी तो ये लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर जैसे शहरों के बराबर माना जाता था. उस समय इसे भोपाल से भी बड़ा माना जाता था. यहां राजनीतिक जागरूकता सबसे अधिक रही. लेकिन क्षेत्र के विकास में इसका फायदा जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके.

60 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला था विंध्य प्रदेश

राज्य पुनर्गठन 1956 के पूर्व विंध्य प्रदेश 1951 में गवर्नमेंट ऑफ स्टेट्स एक्ट के अंतर्गत पार्ट सी स्टेट था. इसका क्षेत्रफल 14,84,5721 एकड़ था यानि लगभग 60 हजार वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 35 लाख 75 हजार थी. तब विंध्य प्रदेश में 8 जिले थे. जिसमें रीवा, सतना, शहडोल, सीधी, पन्ना, छतरपुर, दतिया और टीकमगढ़ शामिल थे. इसके अलावा गांव की कुल संख्या 12,776 थी उस समय भी प्रदेश में 11 नगरपालिका थीं और एक नोटिफाइड एरिया कमेटी थीं. विंध्य प्रदेश में 1806 ग्राम पंचायत और 585 न्याय पंचायतें थी. 1 मार्च 1952 से विंध्य प्रदेश में उप राज्यपाल नियुक्त हुआ, प्रथम आम चुनाव में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए सदस्यों और लोकसभा के लिए 6 सदस्यों का निर्वाचन हुआ साथ ही राज्यसभा में मध्य प्रदेश को चार स्थान आवंटित किए गए थे.

विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे अवधेश प्रताप सिंह

साल 1948 में जब विंध्यप्रदेश की स्थापना हुई, तब पहली बार अवधेश प्रताप सिंह को मुख्यमंत्री निर्वाचित किया गया था, जिसके नाम से बाद में रीवा में एक विश्वविद्यालय भी बनाया गया. साथ ही रीवा के वर्तमान नगर निगम कार्यालय में विधानसभा लगाई जा रही थी. इसके अलावा वर्तमान स्वागत भवन में विधायकों का विश्राम गृह था. वर्तमान एसपी के निवासरत को मुख्यमंत्री का निवास स्थान बनाया गया था.

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