रीवा। देशभर में बच्चों के साथ दरिंदगी के बढ़ रहे मामले को देखते हुए वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences) के अंतर्गत विशेष अदालत गठित करने का आदेश दिया था. साथ ही तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने इस विशेष अदालतों को जिला स्तर पर महज 2 महीने के अंदर स्थापित करने का निर्देश दिया था. जिसके बाद मध्य प्रदेश के सभी जिलों के साथ-साथ रीवा में भी मासूमों के संरक्षण के लिए पॉक्सो कोर्ट का गठन किया गया है.
- पॉक्सो एक्ट 2012
केंद्र सरकार की ओर से वर्ष 2012 में बनाए गए पॉक्सो एक्ट के तहत अलग-अलग प्रकृति के अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई. जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है. इस कानून को देश में बच्चों के प्रति यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था. हालांकि इस कानून में 2018 में संशोधन भी किए गए, जिसके तहत 12 साल तक की बच्ची रेप के दोषियों की सजा दी जाती है.
- पॉक्सो एक्ट के मामलों में नहीं आई कमी
जिले में पॉक्सो कोर्ट के बनने के बाद भी बच्चियों से यौन अपराध के मामलों में कमी नहीं आ रही है. शासन द्वारा भी इन अपराधों में पीड़ित पक्ष को किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी जा रही. लिहाजा जिले की अदालतों में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले वर्षों से लंबित हैं.
- रीवा जिले में पॉक्सो एक्ट के मामले
जिले में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों में लगातार इजाफा हुआ है. जिले में 2018 में 293 मामले सामने आए थे जिसके बाद 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 298 हो गया. 2020 में इसके कुल लंबित मामले 346 थे और अब वर्तमान में कुल लंबित मामलों की संख्या 379 है.हालांकि जिले में विशेष अदालत गठित होने के बाद यौन अपराध के मामलों का निराकरण तेजी से हुआ है, लेकिन अब तक यौन अपराधों पर रोक नहीं लग पाई है, जो चिंता का विषय है.
- पॉक्सो एक्ट से पहले क्या था जिले में स्थिति
ईटीवी भारत से बात करते हुए जिले के लोक अभियोजक अधिकारी रविन्द्र सिंह ने बताया की वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यथासंभव पॉक्सो कोर्ट के केस में महिला जज का होना अनिवार्य किया गया था, क्योंकि वह एक चाइल्ड फ्रेंडली कोर्ट है.
- महिला न्यायाधीश की जगह पुरुष जज कर रहे सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गाइडलाइन जारी होने के बाद भी कई अदालतों में पुरुष जज इन मामलों की सुनवाई कर रहे हैं. इसका कारण प्रदेश में महिला जजों की बड़ी मात्रा में कमी हैं. वहीं, पुरुष जजों के सामने अक्सर पेश होना बच्चियों के लिए मुश्किल होता है.
तहसील स्तर पर नहीं विशेष अदालत
लोक अभियोजक अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि रीवा जिला मुख्यालय में ही पॉक्सो से संबंधित एक स्पेशल कोर्ट है और कोर्ट में महिला जज महिमा कछवाहा है, उन्हीं के द्वारा पॉक्सो कोर्ट का संचालन किया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि अगर तहसील स्तर पर पॉक्सो कोर्ट की बात की जाए तो यहां पॉक्सो कोर्ट तो है मगर वह स्पेशल कोर्ट नहीं है और वहां अन्य मामलों पर सुनवाई होती है.
- पॉक्सो कोर्ट के संचालन में अभी सुधार की आवश्यकता: लोक अभियोजन अधिकारी
- लोक अभियोजन अधिकारी ने ईटीवी से बात करते हुए कहा कि पीड़िता को प्रतिकार देने के लिए उसमे और ज्यादा गंभीरता लाने की आवश्यकता है. जिस तरह से एससीएसटी मामलों में एससीएसटी वर्ग के लोगों को जितनी तत्परता से कंपनसेशन मिल रहा है उस तरह से यौन अपराधों के मामले में पीड़िता को कंपनसेशन नही मिल पा रहा है. इसमें सुधार की आवश्यकता है.
- जिला मुख्यालय में मामले ज्यादा होने के कारण लंबित केस ज्यादा हैं. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक भी जल्द मामलों पर सुनवाई नहीं हो पाती, जिसमें न्यायालयों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए.
- कई बार डी.एन.ए. रिपोर्ट आने में भी देरी होती है जिनके लिए जिले में डी.एन.ए. जांच यूनिट्स की संख्या बढ़ाए जाने की आवश्यकता है. इससे कई मामलों का निराकरण समय से हो सकता है.
- अपराधों में नहीं आ रही कमी
जिले में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई के लिए तो स्पेशल कोर्ट बना दी गई हैं, लेकिन बच्चों के साथ लगातार हो रहे अपराधों पर सरकार लगाम लगाने में नाकाम साबित हुई है. लिहाजा इसके मामले बढ़ते जा रहे हैं.