मानसिक स्वास्थ्य में हमारी भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक भलाई शामिल है. यह इस बात को प्रभावित करता है कि हम कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं और कार्य करते हैं. लेकिन, इन दिनों बदलती जीवनशैली के चलते मनुष्यों का मेंटल हेल्थ काफी प्रभावित हो रहा है. युवा, बुजुर्गों के साथ साथ टीन एजर और बच्चे भी इस तरह की परेशानी की चपेट में आ रहे हैं. एक अध्ययन के मुताबिक देश में पांच करोड़ से ज्यादा 13 से 18 के टीन एजर्स किसी न किसी तरह के मेंटल इश्यू की चपेट में हैं. यह इश्यू सोशल मीडिया और परिवार से जनरेट हो रहे हैं. इसके अलावा पढाई के लिए दबाव, वॉयलेंस और एब्यूजमेंट हो सकता है.
विशेषज्ञ का कहना है कि युवा होते बच्चों को इससे बचाने के लिए सबसे जरूरी है कि पेरेंट्स उनसे बात करें, इस दौरान यह ध्यान रखें की खुद कम बोले और बच्चे को ज्यादा मौका दे जिससे वह अपनी परेशानी आपके सामने रख सकें, ऐसा नहीं होने पर स्थितियां ज्यादा खराब होने की आशंका होती जिसके चलते वह गलत राह पकड़ सकते हैं.
टीनएज बच्चों की परवरिश में इन बातों का रखें ध्यान
डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज के मनोविकार विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ जीडी कूलवाल का कहना है कि 18 वर्ष की उम्र तक बच्चे का दिमाग विकसित हो रहा हो जाता है, इस दौरान जैसे उसके साथ व्यवहार ओर स्थितियां होगी वह उसी प्रकार से अपने आप को भी विकसित करेगा. आज के समय में जरूरी है कि परिवार के लोग युवा हो रहे बच्चों के साथ दोस्त बनकर रहें, जिससे बच्चे परिवार के साथ अपनी बात शेयर कर सकें. क्योंकि इस दौरान बच्चों पर पढाई के साथ साथ अपने करिअर को लेकर भी बहुत प्रेशर रहता है. वहीं, जब इन बातों के लिए उन्हें परिवार से सहयोग नहीं मिलता है तो वह मानसिक रूप से पीड़ित होने लगते हैं, उनका आचरण बदलने लगता है. परेंट्स को चाहिए कि वह इसे तुरंत पहचाने, काउंसिल कर उसे सही राह पर लाएं. जरूरत पड़ने पर साइक्रेटिक से मिलना चाहिए.
सोशल मीडिया पर नजर रखें
डॉ. कूलवाल का कहना है कि सबसे जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों के सोशल मीडिया यूज पर कंट्रोल करें. उनका का कहना है कि उनके पास ऐसे केस हर दिन आते हैं जिसमें अभिभावक अपने बच्चों की मोबाइल की लत से परेशान है. ऐसे में जब बच्चों से मोबाइल ले लिया जाता है तो वे इतने एग्रेसिव हो जाते है कि कभी-कभी उनके परेंट्स डर जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि अभिभावक बहुत गाइडेड तरीके से उनसे बात कर और बच्चों के सोशल मीडिया यूज को नियंत्रित करें. जब कोई पैरेंट पहली बार अपने बच्चे को मोबाइल दिलाए तो उसे समझाएं कि इससे पढाई ओर सामाजिक गतिविधियां बाधित नहीं होनी चाहिए. उन्हें बताएं कि समय तय करें कब कितना देखना हैं. पैरेंट इस बात पर भी नजर रखें कि उनका बच्चा क्या देख रहा हैं, किस तरह की साइट्स देख रहा है, उसके फोन में किस तरह की एप्लीकेशन है. उसका कंटेट क्या है?
बात करें, खुलकर बोलने दें
बच्चे के सवाल, जिज्ञासाएं और उसके दिमाग में क्या चल रहा है यह जानने के लिए जरूरी है कि बच्चों से लगातार बात करते रहें, उसकी सुने, कई बार वह पूरी बात शब्दों में नहीं कह पाते हैं तो बात लंबी होती है, ऐसे में उसे खुलकर बोलने का पूरा मौका दें. उसकी किसी भी बात को नेगेटिव नहीं ले, जितना पॉजिटिव आचरण रखकर बच्चे को गाइड किया जा सकता है उसका मुकाबला नहीं हैं. इससे वह हमेशा फ्रेंडली रहेगा तो अपनी हर परेशानी घर पर शेयर करेगा अन्यथा वह एंजायटी और डिप्रेशन का शिकार होने पर नशे की ओर चला जाएगा. जो बहुत घातक होता है.
यूं समझे कैंसे बढ़ रही है यह परेशानी
भारत में सबसे ज्यादा किशोरो की संख्या है, जो भारत की आबादी का करीब पांचवा हिस्सा है. एक मेटा-विश्लेषण की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वैश्विक स्तर पर युवाओं की आत्महत्या की दर सबसे अधिक है. देश में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-2016) में सामने आया था कि 13-17 वर्ष के बच्चों में सात फीसदी मेंटल इश्यू से प्रभावित हैं. इंडियन जनरल आफ साइक्रेटिक के अनुसार कोविड से पहले देश में 5 करोड़ से ज्यादा किशोर मेंटल हैल्थ इश्यू से पीडित थे। यह संख्या लगातार बढ़ रही है.
डिस्कलेमर :-- यहां आपको दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान के लिए लिखी गई है. यहां उल्लिखित किसी भी सलाह का पालन करने से पहले, विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.