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रीवा: कुम्हारों के सामने रोजगार का संकट, प्लास्टिक और बोन चाइना के बर्तनों ने तोड़ी कमर

रीवा में बसे कुम्हार परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से इस शिल्पकला से अपनी रोजी-रोटी चलते आ रहे हैं. मिटटी के बर्तन बनाना इनका मुख्य व्यवसाय है. लेकिन आधुनिक युग में स्टील, प्लास्टिक और बोन चाइना के बर्तनों के चलते इनके इस मिटटी के बर्तनों को पूछने वाला कोई नहीं है.

बर्तन बनाता कुम्हार
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Published : Feb 7, 2019, 3:27 PM IST

Updated : Feb 7, 2019, 4:42 PM IST

रीवा। एक वक्त था जब मिट्टी के बर्तनों का भरपूर प्रयोग होता था. रोजाना खाना बनाने के लिए या खास मौकों पर पूजा पाठ के लिए मिट्टी के बर्तन ही उपयोग किये जाते थे. लेकिन प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने अब किचन से मिट्टी के बर्तनों को दूर कर दिया है. ऐसे में कुम्हारों के सामने अब रोजी- रोजी का संकट आ गया है.

दरअसल रीवा में बसे कुम्हार परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से इस शिल्पकला से अपनी रोजी-रोटी चलते आ रहे हैं. मिटटी के बर्तन बनाना इनका मुख्य व्यवसाय है. लेकिन आधुनिक युग में स्टील, प्लास्टिक और बोन चाइना के बर्तनों के चलते इनके इस मिटटी के बर्तनों को पूछने वाला कोई नहीं है. वहीं अब इनकी मांग सिर्फ त्योहारों तक ही रह गयी है.

स्टोरी पैकेज
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गौरतलब है कि दिवाली और कुछ ख़ास त्योहारों तक ही इनकी पूछ परख होती है. जिससे ये अपना परिवार चला रहे हैं. वहीं शासन-प्रशासन इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है, जिसकी वजह से इनके सामने रोजगार के संकट आ गये हैं.


कुम्हारों का कहना है कि बर्तन बनाने के लिए मिटटी काफी दूर से खरीद कर लाना पड़ता है. उसके बाद उस मिटटी को बर्तन बनाने के लिए उपयुक्त बनाने में काफी समय लगता है. वहीं मंहगाई इतनी बढ़ गयी इन बर्तनों को बनाने का सामान भी महगा हो गया है. इसके साथ ही मार्केट में कई तरह के डिस्पोजल आ गए हैं जिसकी वजह से हमारे इस बर्तनों को पूछने वाला कोई नहीं है.

अब सरकार से कुम्हारों को काफी उम्मीदें हैं. बता दें कि देश में कई ऐसे शहर हैं जहां पर मिट्टी के बर्तनों का फिर से प्रयोग किया जा रहा है.

रीवा। एक वक्त था जब मिट्टी के बर्तनों का भरपूर प्रयोग होता था. रोजाना खाना बनाने के लिए या खास मौकों पर पूजा पाठ के लिए मिट्टी के बर्तन ही उपयोग किये जाते थे. लेकिन प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने अब किचन से मिट्टी के बर्तनों को दूर कर दिया है. ऐसे में कुम्हारों के सामने अब रोजी- रोजी का संकट आ गया है.

दरअसल रीवा में बसे कुम्हार परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से इस शिल्पकला से अपनी रोजी-रोटी चलते आ रहे हैं. मिटटी के बर्तन बनाना इनका मुख्य व्यवसाय है. लेकिन आधुनिक युग में स्टील, प्लास्टिक और बोन चाइना के बर्तनों के चलते इनके इस मिटटी के बर्तनों को पूछने वाला कोई नहीं है. वहीं अब इनकी मांग सिर्फ त्योहारों तक ही रह गयी है.

स्टोरी पैकेज
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गौरतलब है कि दिवाली और कुछ ख़ास त्योहारों तक ही इनकी पूछ परख होती है. जिससे ये अपना परिवार चला रहे हैं. वहीं शासन-प्रशासन इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है, जिसकी वजह से इनके सामने रोजगार के संकट आ गये हैं.


कुम्हारों का कहना है कि बर्तन बनाने के लिए मिटटी काफी दूर से खरीद कर लाना पड़ता है. उसके बाद उस मिटटी को बर्तन बनाने के लिए उपयुक्त बनाने में काफी समय लगता है. वहीं मंहगाई इतनी बढ़ गयी इन बर्तनों को बनाने का सामान भी महगा हो गया है. इसके साथ ही मार्केट में कई तरह के डिस्पोजल आ गए हैं जिसकी वजह से हमारे इस बर्तनों को पूछने वाला कोई नहीं है.

अब सरकार से कुम्हारों को काफी उम्मीदें हैं. बता दें कि देश में कई ऐसे शहर हैं जहां पर मिट्टी के बर्तनों का फिर से प्रयोग किया जा रहा है.

Intro:एंकर- आधुनिक परिवेश के चलते परम्परागत कारीगरों के सामने रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है।  परंपरागत तरीके से पिछली कई पीढ़ियों से रीवा में बसे ये कुम्हाड मिटटी के बर्तन बनाते चले आ रहे हैं लेकिन आधुनिकता के चलते इनके इन बर्तनो को पूछने वाला कोई नहीं है। 


Body:रीवा में बसे ये कुम्हार परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से इस शिल्पकला से अपनी रोजी रोटी चलते आ रहे है मिटटी के बर्तन बनाना इनका मुख्य व्यवसाय है। लेकिन आधुनिक युग में स्टील,प्लास्टिक और चाइना के बर्तनो के चलते इनके इस मिटटी के बर्तनो को पूछने वाला कोई नहीं है अब इनकी मांग सिर्फ त्योहारो तक ही रह गयी है दिवाली और कुछ ख़ास त्योहारों तक ही इनकी पूछ परख सिमट कर रह गयी है जिससे ये अपना परिवार चला रहे हैं फिर भी इनकी तरफ प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इन कुम्हाड़ों को बर्तन बनाने के लिए मिटटी खरीद कर काफी दूर से लाना पड़ता है उसके बाद उस मिटटी को बर्तन बनाने के लिए उपयुक्त बनाने में काफी समय लगता है बर्तन बनाने के बाद उसे पकाने में महीनो लग जाते है। इन कुम्हारों का कहना है की मंहगाई इतनी बढ़ गयी इन बर्तनो को बनाने का सामान भी महगा हो गया है मार्केट में कई तरह के डिस्पोजल आ गए हैं हमारे इस बर्तनो को पूछने वाला कोई नहीं है शासन भी हमारी कोई मदद नहीं कर रहा है किसी तरह हम लोग अपना परिवार पाल रहे हैं।


Conclusion:...
Last Updated : Feb 7, 2019, 4:42 PM IST
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