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सफेद शेरों की धरती पर किसका होगा राज, सिद्धार्थ का चलेगा सिक्का, या जनार्दन फिर बनेंगे सरताज

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Published : May 5, 2019, 12:20 AM IST

रीवा लोकसभा सीट पर बीजेपी के जनार्दन मिश्रा का मुकाबला कांग्रेस के युवा नेता सिद्धार्थ तिवारी से है, रीवा संसदीय सीट प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में शुमार होती है. इस सीट इस बार दोनों प्रत्याशियों के बीच मुकाबला दिलचस्प माना जा रहा है.

बीजेपी प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा और कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी

रीवा। सफेद शेरों की धरती और झीलों की नगरी के नाम से मशहूर विंध्य अंचल की सियासत का केंद्र मानी जाने वाली रीवा संसदीय सीट प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में शुमार है. जहां कभी किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा. यहां का सियासी अंकगणित बड़े बड़ों का गणित बिगाड़ देता है. इस बार रीवा में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा का मुकाबला कांग्रेस के युवा प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी से है.

रीवा में बीजेपी-कांग्रेस के अलावा बसपा की भी अहम भूमिका नजर आती है. 1957 से 2014 तक यहां कुल12 आम चुनाव हुए. जिनमें से 6 बार कांग्रेस, तीन-तीन बार बीजेपी-बसपा को जीत मिली है. हालांकि, 1999 से कांग्रेस यहां लगातार मुंह की खा रही है. दिवंगत सुंदर लाल तिवारी रीवा से कांग्रेस के आखिरी सांसद थे, जबकि रीवा के महाराजा मार्तड सिंह सबसे ज्यादा तीन बार रीवा के सांसद रहे.

सफेद शेरों की धरती पर इस बार किसका होगा राज

रीवा संसदीय सीट पर इस बार कुल 16 लाख 66 हजार 884 मतदाता मिलकर अपना सांसद चुनेंगे. जिनमें 8 लाख 85 हजार 629 पुरुष मतदाता और 7 लाख 81 हजार 222 महिला मतदाता शामिल हैं. यूपी की सीमा से सटे इस क्षेत्र में अबकी बार कुल 2 हजार 13 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें 478 संवेदनशील और 139 अतिसंवेदनशील हैं, जहां प्रशासन ने सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम करने की बात कही है.

इस लोकसभा क्षेत्र में रीवा, गुढ़, देवतालाब, मऊगंज, सेमरिया, त्योंथर, मनगंवा और सिरमौर विधानसभा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन सभी आठ सीटों पर बीजेपी ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. जो विंध्य में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी अप्रत्याशित हार मानी गयी और सुंदर लाल तिवारी जैसे दिग्गज नेता भी अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे. खास बात ये है कि रीवा का सियासी समीकरण जातिगत खांचे में ही फिट बैठता है. ब्राह्मण बाहुल्य सीट होने के चलते यहां सियासी पार्टियां ब्राह्मण प्रत्याशी पर ही दांव लगाती हैं. 2014 में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस के सुंदर लाल तिवारी को हराया था.

हालांकि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की तरफ से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे सुंदर लाल तिवारी के निधन से पार्टी को नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई करने के लिये कांग्रेस ने उनके बेटे सिद्धार्थ तिवारी को मैदान में उतारा है, जबकि क्षेत्र के कई दिग्गज नेताओं ने हाल ही में कांग्रेस का दामन थामा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव के वक्त बने रीवा के सियासी समीकरण लोकसभा चुनाव में बदले-बदले नजर आते हैं.

खास बात ये है कि शहरी-ग्रामीण आबादी के बीच बंटे रीवा लोकसभा क्षेत्र में रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है, जबकि शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं अब भी यहां के वाशिंदों को मयस्सर नहीं हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि रीवा का मतदाता 6 मई को युवा जोश के साथ चलता है या जनार्दन मिश्रा के अनुभव को अपना आधार मानता है.

रीवा। सफेद शेरों की धरती और झीलों की नगरी के नाम से मशहूर विंध्य अंचल की सियासत का केंद्र मानी जाने वाली रीवा संसदीय सीट प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में शुमार है. जहां कभी किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा. यहां का सियासी अंकगणित बड़े बड़ों का गणित बिगाड़ देता है. इस बार रीवा में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा का मुकाबला कांग्रेस के युवा प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी से है.

रीवा में बीजेपी-कांग्रेस के अलावा बसपा की भी अहम भूमिका नजर आती है. 1957 से 2014 तक यहां कुल12 आम चुनाव हुए. जिनमें से 6 बार कांग्रेस, तीन-तीन बार बीजेपी-बसपा को जीत मिली है. हालांकि, 1999 से कांग्रेस यहां लगातार मुंह की खा रही है. दिवंगत सुंदर लाल तिवारी रीवा से कांग्रेस के आखिरी सांसद थे, जबकि रीवा के महाराजा मार्तड सिंह सबसे ज्यादा तीन बार रीवा के सांसद रहे.

सफेद शेरों की धरती पर इस बार किसका होगा राज

रीवा संसदीय सीट पर इस बार कुल 16 लाख 66 हजार 884 मतदाता मिलकर अपना सांसद चुनेंगे. जिनमें 8 लाख 85 हजार 629 पुरुष मतदाता और 7 लाख 81 हजार 222 महिला मतदाता शामिल हैं. यूपी की सीमा से सटे इस क्षेत्र में अबकी बार कुल 2 हजार 13 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें 478 संवेदनशील और 139 अतिसंवेदनशील हैं, जहां प्रशासन ने सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम करने की बात कही है.

इस लोकसभा क्षेत्र में रीवा, गुढ़, देवतालाब, मऊगंज, सेमरिया, त्योंथर, मनगंवा और सिरमौर विधानसभा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन सभी आठ सीटों पर बीजेपी ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. जो विंध्य में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी अप्रत्याशित हार मानी गयी और सुंदर लाल तिवारी जैसे दिग्गज नेता भी अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे. खास बात ये है कि रीवा का सियासी समीकरण जातिगत खांचे में ही फिट बैठता है. ब्राह्मण बाहुल्य सीट होने के चलते यहां सियासी पार्टियां ब्राह्मण प्रत्याशी पर ही दांव लगाती हैं. 2014 में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस के सुंदर लाल तिवारी को हराया था.

हालांकि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की तरफ से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे सुंदर लाल तिवारी के निधन से पार्टी को नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई करने के लिये कांग्रेस ने उनके बेटे सिद्धार्थ तिवारी को मैदान में उतारा है, जबकि क्षेत्र के कई दिग्गज नेताओं ने हाल ही में कांग्रेस का दामन थामा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव के वक्त बने रीवा के सियासी समीकरण लोकसभा चुनाव में बदले-बदले नजर आते हैं.

खास बात ये है कि शहरी-ग्रामीण आबादी के बीच बंटे रीवा लोकसभा क्षेत्र में रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है, जबकि शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं अब भी यहां के वाशिंदों को मयस्सर नहीं हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि रीवा का मतदाता 6 मई को युवा जोश के साथ चलता है या जनार्दन मिश्रा के अनुभव को अपना आधार मानता है.

Intro:NOTE- MP REWA ELECTION CAMPAIGN STORY 1-5-19 के नाम से मोजो से भेजी गई खबर में फ़ाइल शॉट भेजे गए है उनका इस्तेमाल कर लेवें।

लोकसभा चुनाव में मतदान के लिए अब कुछ ही दिन शेष रह गए जिसको लेकर शासन-प्रशासन भी जुड़ चुका है रीवा जिले में 6 मई को मतदान होने हैं, जिसको लेकर पूरे जिले में 2013 मतदान केंद्र बनाए गए। जिसमें देवतलाव में 266, सिरमौर में 243, त्योथर में 231, सेमरिया में 241, मनगवा में 281, मउगंज में 251, गुढ मे 256 और रीवा में 244 कुल 2013 पोलिंग बूथ बनाए जिसमें संवेदनशील मतदान केंद्र जिंन्हे चिंहित किया गया है उनकी संख्या 478 और अतिसंवेदनशील मतदान केंद्र 139 हैं। वैसे तो अति संवेदनशील मतदान केंद्रों में पुलिस की चार्ट चाक-चौबंद  व्यवस्था रहती है जो मतदान से पहले और मतदान के बाद भी व्यवस्था में लगी रहती है।




 लोकसभा के इस रण में रीवा लोकसभा सीट से कुल 27 लोगों ने नामांकन दाखिल किए थे जिसमें दो प्रत्याशियों के नाम रद्द कर दिए गए वहीं दो प्रत्याशियों ने अपना नाम वापस ले लिया अब रीवा लोकसभा सीट से कुल 23 प्रत्याशी मैदान पर है जो लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में जनता की आवाज को बुलंद करने के सपने के साथ आगे बढ़ रहे हैं।  वैसे तो कांग्रेस और भाजपा  यह दोनों पार्टियां भी सामने आती रही है लेकिन रीवा चुनाव का एक ऐसा मैदान है  जहां से अन्य दलों के प्रत्याशियों को भी जीत करता है मिलता आया है। समाजवादियों का गढ़ माने जाने वाला रीवा यहां बसपा का भी खासा असर देखने को मिलता है रीवा के राजनीतिक इतिहास की मानें तो यहां से निर्दलीय प्रत्याशी को भी जीत मिली है। 




Body:रीवा जिला, मध्यप्रदेश
शफेद शेरों की धरती, जलप्रपात की भूमी

क्षेत्रफल – 6314 वर्ग कि. मी.
जनसंख्या – 2363744 (2011 के अनुसार)
पुरुष – 1224918
महिला – 138826
साक्षरता – 73.4 प्रतिशत
लिंगानुपात – 930
तहसील – 11
गांव – 2719


2011 की जनगणना के मुताबिक रीवा  लोकसभा क्रमांक 10 की जनसंख्या 23 लाख 65 हजार 106 है। यहां की 83.27 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 16.73 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। यहां पर 16.22 फीसदी लोग अनुसूचित जाति और 13.19 फीसदी अनुसूचित जनजाति के हैं। चुनाव आयोग को आंकड़े के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 15,44,719 मतदाता थे। इसमें से 7लाख 22 हजार 919 महिला और 8 लाख 21 हजार 800 पुरुष मतदाता थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर 53.73 फीसदी मतदान हुआ था। जिसमें 8 लाख 30 हजार 2 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था।  जिसमें 4 लाख 57 हजार 663 पुरुष और 3 लाख 72 हजार 339  महिलाएं शामिल थी।





जातियों की अनुमानित संख्या
विधानसभा- आठ सीटें
कुल मतदाता- 16 लाख 27 हजार
ब्राह्मण - 6 लाख
पटेल- 2 लाख 24 हजार
क्षत्रिय- 1 लाख 24 हजार
वैश्य-  2 लाख
कुशवाहा- 90 हजार
मुस्लिम-  80  हजार
अजा- 2 लाख 80 हजार
अजजा- 1 लाख 40 हजार
वहीं रीवा लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण की बात करें तो इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा ब्राह्मण मतदाता है जिसका असर सीधा परिणाम पर होता है मगर कांग्रेस और बीजेपी से अगर ब्राह्मण उम्मीदवारों पर दांव खेला जाता है तो यह समीकरण बदल जाता है जिसका उदाहरण 2009 के लोकसभा चुनावों में देखा जा सकता है जब कांग्रेस और बीजेपी के द्वारा ब्राह्मण प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया था तथा इस चुनाव में बसपा के देवराज पटेल ने चुनाव जीता था जो की कुर्मी समुदाय से आते है ...और इसीलिए यहाँ कुर्मी , ठाकुर तथा पिछड़ी जातियों का भी वोट बैंक चुनाव में सीधा असर डालता है

इसलिए यहां पर हम आपको आगे बताएंगे रीवा लोकसभा क्षेत्र का वोट बैंक तथा विधानसभा वार कुल मतदाता की जानकारी

विधानसभा क्षेत्र के नाम महिला पुरुष कुल

68 सिरमौर. 106720, 9203,199623

69 सेमरिया. 106908,93947,200855

70 त्यौंथर. 103118,89202,192320

71 मऊगंज. 109372,96220,205592

72 देवतालाब. 117258,103840,221098

73 मनगवां. 119240,105362,224602

74 रीवा. 110547,99532, 210081

75 गुढ़. 112466,100216,212682

कुल मतदाता। 885629, 781222,1666864



Conclusion:लोकसभा चुनाव 2014 मे क्या था हाल..

जनार्धन मिश्रा को मिले थे 3 लाख 83 हजार 320 वोट मिले थे वही कांगेस से 2 लाख 14 हजार 594 वोट मिले थे वहीं 1 लाख 75 हजार 567 वोट मिले थे.. कुल 8 लाख 30 हजार 2 वोट कुल पडे थे.. वहीं 2004 में चंद्रमणी त्रिपाठी रीवा से पहली बार भाजपा से सांसद चुने गए थे.. उसके बाद 2009 में बसपा से देवराज सिंह पटेल सांसद बने,, 5 साल बाद फिर रीवा की जनता ने भाजपा को सत्ता पर रीवा सांसद जनार्धन मिश्रा के सांथ भाजपा को सत्ता पे लाया.. वहीं 1999 में कांग्रेस से सुंदर लाल तिवारी के बाद करीब 15 सालों से कांग्रेस की सत्ता रीवा को हाथ नहीं आई है..

 रीवा के अब तक के सांसद..

1952 राजभान तिवारी कांग्रेस
1957 व 1962 शिव दत्त उपाध्याय कांग्रेस
1967 शंभूनाथ शुक्ला कांग्रेस 
1971 मार्तण्ड सिंह जूदेव निर्दलीय 
1977 यमुना प्रसाद शास्त्री भारतीय लोक दल
1980 मार्तंड सिंह जूदेव निर्दलीय
1984 मार्तंड सिंह जूदेव कांग्रेस
1989 यमुना प्रसाद शास्त्री जनता पार्टी
1951 भीम सिंह पटेल बसपा
1996 बुद्ध सेन पटेल बसपा
1998 चंद्र मणि त्रिपाठी भाजपा
1999 सुंदरलाल तिवारी कांग्रेस
2004 चंद्र मणि त्रिपाठी भाजपा
2009 देवराज सिंह पटेल बसपा
2014 जनार्दन मिश्रा भाजपा







कैसा रहा बसपा का रीवा लोकसभा क्षेत्र में चुनावी सफर...

रीवा लोकसभा सीट से बसपा ने अब तक तीन बार जीत दर्ज की है बहुजन समाजवादी पार्टी ने तीन पंचवर्षीय में जीत का डंका बजाने में सफल रही है वहीं रीवा को समाजवादियों का गढ़ माने की असल हकीकत यह है कि रीवा नहीं देश को 1991 में बहुजन समाजवादी पार्टी से भीम सिंह के रूप में पहला सांसद दिया था।  बसपा प्रत्याशी भीम सिंह ने उस समय भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ रही महारानी प्रवीण कुमारी और कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता सफेद शेर माने जाने वाले श्रीनिवास तिवारी को चुनाव में हराया था। लेकिन मौजूदा हालात यह बयान करते हैं कि आज बसपा पूरी तरह से टूट चुकी है  बहुजन समाजवादी पार्टी से 3 पूर्व विधायक एक सांसद और एक जिला पंचायत अध्यक्ष सहित मनगवां विधानसभा से चुनाव लड़े प्रत्याशी  ने किनारा कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है।  ऐसे में बहुजन समाजवादी पार्टी पूरे रूप से टूट चुकी है। 

 वहीं समाजवादी पार्टी का भी हाल कुछ नया नहीं है समाजवादी पार्टी से 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे कपिल सिंह और प्रदीप सिंह पटना ने भी समाजवादी पार्टी से किनारा करते हुए  कांग्रेस की सदस्यता ले लिए हैं। 

क्या है वर्तमान में कांग्रेस की स्थिति।

 पिछले तीन चुनाव की बात करें तो कांग्रेस इन पिछले तीन चुनावों में काफी पीछे रही है चाहे 2018 के विधानसभा के चुनाव की बात करें चाहे 2014 के लोकसभा और 2009 के लोकसभा की बात करें। 2018 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को रीवा के आठों विधानसभा में करारी हार का सामना करना पड़ा है इस चुनाव में भाजपा को  4 लाख 19 हजार 270 तो वहीं कांग्रेस को 3 लाख 20 हजार 995 वोट मिले थे। वही 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी को 383320 वोट तो कांग्रेस को 214594 वोट मिले थे। 

 लेकिन मौजूदा हालातों की मानें तो जिस तरह से पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा रीवा में दल बदल कर नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं उसका कितना फायदा मिल सकता है यह भी बात सोचने वाली है  विधानसभा चुनाव में अच्छा खासा वोट बैंक इकट्ठा कर कांग्रेस का दामन थामने वाले बसपा और सपा के नेता कहीं ना कहीं कांग्रेस को इसका फायदा दिला सकते हैं। हालांकि जिस तरह से पूरे देश में मोदी की लहर चल रही है उस हिसाब से इन दल बदल कर आए नेताओं का कितना फायदा मिलेगा यह भी सोचनेेे वाली बात है। हालांकि स्थानीय जनता वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा से काफी  खुश तो नहीं  है यह तो चुनाव के परिणाम ही बताएंगे। 


 क्या है स्थानीय मुद्दे

 हालांकि रीवा लोकसभा क्षेत्र में ग्रामीण और शहरी है क्षेत्रों के हिसाब से लोगों के अलग-अलग मुद्दे हैं शहरी क्षेत्रों में रोजगार का खासा प्रभाव है यहां  लोगों के शहर के विकास और क्षेत्र के विकास के मुद्दे हैं लेकिन गांवों में ऐरा प्रथा किसान भाइयों के लिए नई योजनाओं को लाना खेती किसानी में नए संसाधनH उपलब्ध कराना यह सब अहम मुद्दे हैं।  वहीं साथ ही साथ ग्रामीण अंचलों में जिस तरह से प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्जवला योजना का लाभ हितग्राहियों को मिला है इसका भी खासा असर दिख रहा है और यह भी ग्रामीण इलाकों में एक अहम मुद्दा बन कर सामने आया है।।



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