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Mp Seat Scan Ratlam: इस सीट की राजनीति है बड़ी नमकीन, एक वर्ग का रहता है वर्चस्व, जानिए इस साल किस करवट बैठेगा ऊंट - रतलाम में बेरोजगारी बड़ी समस्या

मध्यप्रदेश में यदि नमकीन की बात होती है, तो सबसे पहला नाम रतलाम शहर का आता है. यहां की राजनीति भी बड़ी नमकीन है. नमकीन की तरह एक ही वर्ग का वर्चस्व है. सोना, साड़ी और नमकीन वाले इस शहर में इन दिनों बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बना हुआ है. आइए जानते हैं कि विधानसभा सीट क्रमांक 220 रतलाम शहर में राजनीति का ऊंट इस बार किस करवट बैठेगा.

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रतलाम सीट स्कैन
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Published : Aug 8, 2023, 9:27 PM IST

रतलाम। मालवा क्षेत्र में शिक्षा और रोजगार की बात हाेती थी, तो इंदौर के बाद रतलाम शहर का दूसरा नाम आया करता था, लेकिन अब यहां की इंडस्ट्री पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है. जेवीएल जैसी बड़ी कंपनी बंद हो गई है. अब सिर्फ नमकीन, रेलवे, सोना और साड़ी के सहारे ही यह शहर चलायमान है. इसके बाद भी यहां की राजनीति में एक बात है, जो नहीं बदल रही है, वह है जैन समाज का वर्चस्व. फिर चाहे भाजपा हो या फिर कांग्रेस. दोनों ही दल इसी वर्ग के व्यक्ति को प्रत्याशी बनाते आए हैं.

जानिए क्यों हारी कांग्रेस: पिछले दाे बार से चेतन कश्यप विधायक हैं, तो उनके पहले 2008 में जैन समाज के ही पारस सखलेचा को निर्दलीय विधायक बनने का मौका मिल चुका है. जबकि 2003 में जैन समाज के हिम्मत कोठारी भाजपा से जीतकर मंत्री भी बने थे. जानकारों का मानना है कि कांग्रेस को हराने वाले हमेशा से कांग्रेस कार्यकर्ता ही रहे हैं, लेकिन अब स्थिति और भी खराब हो गई है, क्योंकि इस शहर पर सिंधिया गुट का दबदबा रहा है. अब जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा का दामन थाम चुके हैं ताे उनका पूरा गुट भाजपा में चला गया और चेतन कश्यप के साथ है. दूसरी तरफ कांग्रेस के पास पारस सखलेचा और महेंद्र कटारिया जैसे नेता बचे हैं. इनके अलावा कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे विक्रांत भूरिया का भी खासा प्रभाव इस सीट पर है. भाजपा के लिए कोई बड़ी चुनौती है तो वो बेरोजगारी, सड़क, सीवेज और पानी है. दो बार के प्रयास के बाद भी इन समस्याओं को हल नहीं कर पा रहे हैं.

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रतलाम सीट के मतदाता

रतलाम शहर का राजनीतिक इतिहास: कभी यहां जैन वर्सेज सनातन का संघर्ष चलता था. जिसे अब संघ और भाजपा ने लगभग मैनेज कर लिया है. 2003 से 2018 तक तीन बार भाजपा तो एक बार निर्दलीय प्रत्याशी ने विजय प्राप्त की है. इस संसदीय क्षेत्र से सांसद जीएस डामोर हैं, जो कि भारतीय जनता पार्टी से हैं. उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस के कांति लाल भूरिया को 90636 से हराया था. 2003 में आखिरी बार इस शहर की सीट से जीते हिम्मत कोठारी मंत्री बने थे. उनके बाद चेतन कश्यप काे मंत्री बनने का इंतजार है. 1998 में यहां से कांग्रेस के शिवकुमार झालानी विधायक बने थे. उन्होंने हिम्मत कोठारी को हराया था. तब मोतीलाल दवे कांग्रेस के धर्मस्व मंत्री थे. जो रतलाम जिले की दूसरी सीट से विधायक बने थे. उनका हस्तक्षेप यहां अधिक था, लेकिन वोट परसेंट बढ़ाने में काम नहीं आया. अब यदि कांग्रेस पारस सखलेचा को टिकट देती है और उन्हें मंत्री बनाने की बात की जाती है तो रतलाम शहर की जनता अपना मन बदल सकती है.

रतलाम शहर की क्षेत्र की खासियत: इस शहर की तारीफ एजुकेशन के लिए की जाती है. सबसे पुराना पॉलिटेक्निक कॉलेज यहीं है. अब मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेज भी खुल गया है, लेकिन सबसे अधिक पॉपुलैरिटी यदि किसी से है तो वो है नमकीन. यहां का नमकीन ब्रांड बन चुका है और सबसे बड़ा कारोबार भी. इसके अलावा रतलाम का सोना सबसे अधिक शुद्ध माना जाता है. साड़ी भी सस्ती और अच्छी होने के कारण बड़ी संख्या में बिकती है और बड़ा मार्केट बन गया है. सोने की गुणवत्ता 24 कैरेट मानी जाती है और डिजाइन बहुत पापुलर है. साड़ियां का बड़ा व्यवसाय है. खानपान में गराड़ु, दाल बाटी फेमस है. पोहा समोसा भी फेमस है. रेलवे स्टेशन के कारण भी यह फेमस है.

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रतलाम की खासियत

कुछ और सीट स्कैन यहां पढ़ें...

साल 2018 का विधानसभा चुनाव: साल 2018 में बीजेपी ने चेतन कश्यप को टिकट दिया था. जबकि कांग्रेस ने प्रेमलता दवे को चुनावी मैदान में उतारा था. जहां चुनावी परिणाम में चेतन कश्यप ने 43,435 वोटों से जीत हासिल की थी.

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रतलाम सीट का रिपोर्ट कार्ड

साल 2013 का विधानसभा चुनाव: वहीं साल 2013 में भी बीजेपी ने चेतन्य कश्यप को ही टिकट दिया था. जहां बीजेपी के चेतन कश्यप ने 40,305 वोटों से जीत हासिल करते हुए कांग्रेस के अदिति दवेसर को जीत दिलाई थी.

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साल 2018 का रिजल्ट

साल 2008 का विधानसभा चुनाव: साल 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. यहां से पारस दादा निर्दलीय प्रत्याशी थी. इन्होंने 31,074 वोटों से जीत हासिल करते हुए बीजेपी के हिम्मत कोठारी को हराया था.

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रतलाम के मुद्दे

रतलाम शहर सीट का जातीय समीकरण: यहां जैन समाज का एक तरफा वर्चस्व है. लगातार चार बार से जीतते आ रहे हैं और महापौर चुनाव में भी दबदबा रहता आया है. कुल 2 लाख 6 हजार वोटर हैं और माना जाता है कि इनमें से सर्वाधिक 50 हजार जैन मतदाता हैं. जबकि दूसरे नंबर पर ठाकुर यानी 40 हजार माने जाते हैं. जबकि ब्राम्हण और मुस्लिम करीब 30- 30 हजार की संख्या में गिने जाते हैं. वहीं दलित और ट्राइबल की संख्या भी 20 हजार के करीब शहरी क्षेत्र में निवास करती है. इनके अलावा पाटीदार, गुर्जर, बनिया, मीणा आदि समाज निवास करती है.

रतलाम। मालवा क्षेत्र में शिक्षा और रोजगार की बात हाेती थी, तो इंदौर के बाद रतलाम शहर का दूसरा नाम आया करता था, लेकिन अब यहां की इंडस्ट्री पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है. जेवीएल जैसी बड़ी कंपनी बंद हो गई है. अब सिर्फ नमकीन, रेलवे, सोना और साड़ी के सहारे ही यह शहर चलायमान है. इसके बाद भी यहां की राजनीति में एक बात है, जो नहीं बदल रही है, वह है जैन समाज का वर्चस्व. फिर चाहे भाजपा हो या फिर कांग्रेस. दोनों ही दल इसी वर्ग के व्यक्ति को प्रत्याशी बनाते आए हैं.

जानिए क्यों हारी कांग्रेस: पिछले दाे बार से चेतन कश्यप विधायक हैं, तो उनके पहले 2008 में जैन समाज के ही पारस सखलेचा को निर्दलीय विधायक बनने का मौका मिल चुका है. जबकि 2003 में जैन समाज के हिम्मत कोठारी भाजपा से जीतकर मंत्री भी बने थे. जानकारों का मानना है कि कांग्रेस को हराने वाले हमेशा से कांग्रेस कार्यकर्ता ही रहे हैं, लेकिन अब स्थिति और भी खराब हो गई है, क्योंकि इस शहर पर सिंधिया गुट का दबदबा रहा है. अब जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा का दामन थाम चुके हैं ताे उनका पूरा गुट भाजपा में चला गया और चेतन कश्यप के साथ है. दूसरी तरफ कांग्रेस के पास पारस सखलेचा और महेंद्र कटारिया जैसे नेता बचे हैं. इनके अलावा कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे विक्रांत भूरिया का भी खासा प्रभाव इस सीट पर है. भाजपा के लिए कोई बड़ी चुनौती है तो वो बेरोजगारी, सड़क, सीवेज और पानी है. दो बार के प्रयास के बाद भी इन समस्याओं को हल नहीं कर पा रहे हैं.

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रतलाम सीट के मतदाता

रतलाम शहर का राजनीतिक इतिहास: कभी यहां जैन वर्सेज सनातन का संघर्ष चलता था. जिसे अब संघ और भाजपा ने लगभग मैनेज कर लिया है. 2003 से 2018 तक तीन बार भाजपा तो एक बार निर्दलीय प्रत्याशी ने विजय प्राप्त की है. इस संसदीय क्षेत्र से सांसद जीएस डामोर हैं, जो कि भारतीय जनता पार्टी से हैं. उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस के कांति लाल भूरिया को 90636 से हराया था. 2003 में आखिरी बार इस शहर की सीट से जीते हिम्मत कोठारी मंत्री बने थे. उनके बाद चेतन कश्यप काे मंत्री बनने का इंतजार है. 1998 में यहां से कांग्रेस के शिवकुमार झालानी विधायक बने थे. उन्होंने हिम्मत कोठारी को हराया था. तब मोतीलाल दवे कांग्रेस के धर्मस्व मंत्री थे. जो रतलाम जिले की दूसरी सीट से विधायक बने थे. उनका हस्तक्षेप यहां अधिक था, लेकिन वोट परसेंट बढ़ाने में काम नहीं आया. अब यदि कांग्रेस पारस सखलेचा को टिकट देती है और उन्हें मंत्री बनाने की बात की जाती है तो रतलाम शहर की जनता अपना मन बदल सकती है.

रतलाम शहर की क्षेत्र की खासियत: इस शहर की तारीफ एजुकेशन के लिए की जाती है. सबसे पुराना पॉलिटेक्निक कॉलेज यहीं है. अब मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेज भी खुल गया है, लेकिन सबसे अधिक पॉपुलैरिटी यदि किसी से है तो वो है नमकीन. यहां का नमकीन ब्रांड बन चुका है और सबसे बड़ा कारोबार भी. इसके अलावा रतलाम का सोना सबसे अधिक शुद्ध माना जाता है. साड़ी भी सस्ती और अच्छी होने के कारण बड़ी संख्या में बिकती है और बड़ा मार्केट बन गया है. सोने की गुणवत्ता 24 कैरेट मानी जाती है और डिजाइन बहुत पापुलर है. साड़ियां का बड़ा व्यवसाय है. खानपान में गराड़ु, दाल बाटी फेमस है. पोहा समोसा भी फेमस है. रेलवे स्टेशन के कारण भी यह फेमस है.

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रतलाम की खासियत

कुछ और सीट स्कैन यहां पढ़ें...

साल 2018 का विधानसभा चुनाव: साल 2018 में बीजेपी ने चेतन कश्यप को टिकट दिया था. जबकि कांग्रेस ने प्रेमलता दवे को चुनावी मैदान में उतारा था. जहां चुनावी परिणाम में चेतन कश्यप ने 43,435 वोटों से जीत हासिल की थी.

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रतलाम सीट का रिपोर्ट कार्ड

साल 2013 का विधानसभा चुनाव: वहीं साल 2013 में भी बीजेपी ने चेतन्य कश्यप को ही टिकट दिया था. जहां बीजेपी के चेतन कश्यप ने 40,305 वोटों से जीत हासिल करते हुए कांग्रेस के अदिति दवेसर को जीत दिलाई थी.

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साल 2018 का रिजल्ट

साल 2008 का विधानसभा चुनाव: साल 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. यहां से पारस दादा निर्दलीय प्रत्याशी थी. इन्होंने 31,074 वोटों से जीत हासिल करते हुए बीजेपी के हिम्मत कोठारी को हराया था.

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रतलाम के मुद्दे

रतलाम शहर सीट का जातीय समीकरण: यहां जैन समाज का एक तरफा वर्चस्व है. लगातार चार बार से जीतते आ रहे हैं और महापौर चुनाव में भी दबदबा रहता आया है. कुल 2 लाख 6 हजार वोटर हैं और माना जाता है कि इनमें से सर्वाधिक 50 हजार जैन मतदाता हैं. जबकि दूसरे नंबर पर ठाकुर यानी 40 हजार माने जाते हैं. जबकि ब्राम्हण और मुस्लिम करीब 30- 30 हजार की संख्या में गिने जाते हैं. वहीं दलित और ट्राइबल की संख्या भी 20 हजार के करीब शहरी क्षेत्र में निवास करती है. इनके अलावा पाटीदार, गुर्जर, बनिया, मीणा आदि समाज निवास करती है.

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