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MP Seat Scan Alot: अब तक 14 बार हुए चुनाव, सिर्फ 6 बार जीती भाजपा, लेकिन फिर भी पलड़ा भारी, इस बार आंतरिक कलह से मुश्किल - रतलाम जिले की आलोट सीट

Alot Vidhan Sabha Seat:मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले हर विधानसभा क्षेत्र का सियासी और स्थानीय समीकरण ETV Bharat आप तक पहुंचा रहा है. इसी क्रम में आज बात रतलाम जिले की आलोट सीट की करेंगे, साथ ही जानेंगे यहां का क्या है सियासी समीकरण? एक नजर यहां के हालातों को लेकर Etv Bharat Seat Scan पर-

MP Seat Scan Alot
रतलाम जिले की आलोट सीट
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Published : Aug 7, 2023, 12:49 PM IST

भोपाल। एमपी गठन के बाद आलोट पर पहली बार 1977 में चुनाव हुए, पहली बार भले ही कांग्रेस जीती, लेकिन दूसरे टर्म यानी वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में इस सीट को भाजपा ने जीत लिया और विधायक बने संघ व जनसंघ से जुड़े रहे तब के तत्कालीन भाजपा पदाधिकारी थावरचंद गहलोत. पहली बार भाजपा को यह सीट मिली, लेकिन अगले ही चुनाव में फिर कांग्रेस के खाते में चली गई, लेकिन इसके बाद 6 में से पांच बार भाजपा के पास रही. बीते चुनाव में सीट छिटककर वापिस कांग्रेस की झोली में चली गई, महज 5,448 वोट के अंतर से थावरचंद गहलोत के बेटे जितेंद्र गहलोत कांग्रेस के मनोज चावला से चुनाव हार गए.

Alot Vidhan Sabha Seat
आलोट सीट का सियासी समीकरण

क्या है आलोट सीट का सियासी समीकरण: इस बार उम्मीद थी कि भाजपा अपनी इस खोई सीट को वापिस हासिल कर लेगी तो, अचानक दो महीने पहले हुए सामुहिक इस्तीफों ने मुश्किलें बड़ा दी. दरअसल आलोट सीट शेड्यूल कास्ट (SC) यानी दलित वर्ग के लिए रिजर्व है, सबसे अधिक मतदाता इन्हीं के हैं, लेकिन दूसरे नंबर पर यहां राजपूत वोट माने जाते हैं. सीट का ट्रेंड दलित वर्सेज दबंग का रहा है. ऐसे में राजनीतिक वर्चस्व के लिए मनमुटाव सामने आते रहे हैं, लेकिन एक साथ 80 पदाधिकारियों के इस्तीफ से मामला उलझा हुआ दिखाई दे रहा है. यह भी जानकारी मिली है कि एक बड़ा धड़ा फिर से इस्तीफे की तैयारी रहा है, यदि ऐसा होगा तो कांग्रेस के मनोज चावला सशक्त होंगे और थावरचंद गहलोत के बेटे जितेंद्र गहलोत के लिए मुश्किल होगी.

MP Seat Scan Alot
आलोट के मतदाताओं की संख्या

विरोध का एक बड़ा कारण भी यही रहा है कि इस सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के परिवार का नियंत्रण रहा है, दूसरा दलित नेता आगे नहीं बढ़ पाया. बीच में मनोहर ऊंटवाल ने भाजपा से एक अच्छी पकड़ इस सीट से बनाई, लेकिन बाद में वे सांसद बन गए तो फिर से गहलोत परिवार के पास यह सीट चली गई.

आलोट विधानसभा के चुनाव के नतीजे: आलोट विधानसभा के नेचर पर नजर डाले तो यहां जीत का अंतर लगातार बहुत रहता आया है. पहले और दूसरे चुनाव में भले ही कांग्रेस अच्छे मतों से जीती हो, लेकिन इसके बाद 1967 में जनसंघ के मदनलाल ने कम अंतर से पहली बार इस सीट पर कब्जा किया. हालांकि फिर 1972 में कांग्रेस की लीला देवी चौधरी ने वापिस सीट छीन ली. 1977 में उन्हें जनता पार्टी के प्रत्याशी नवरतन सांकला ने 15552 वोटों से हरा दिया, 1980 तक जनता पार्टी भारतीय जनता पार्टी बन गई और पहली बार पार्टी ने थावरचंद गहलोत को मैदान में उतारा और उन्होंने कांग्रेस के रामचंद्र सूर्यवंशी को 7742 वोटों से हराया. नया नाम पर दम नहीं देखकर कांग्रेस ने 1985 में वापिस लीलादेवी चौधरी को मैदान में उतार और उन्होंने थावरचंद गहलोत को 2399 वोटों से हराकर सीट छीन ली, लेकिन 1990 में कांग्रेस ने फिर चेहरा बदला और प्रहलाद कुमार वर्मा को मैदान में उतारा, जो कि संघ से निकलकर आए थावरचंद गहलो से 16954 वोटों से हारे.

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रतलाम जिले की आलोट सीट का 2018 का रिजल्ट

यह हार बीते दस चुनाव में सबसे बड़ी रही है. 1993 में दोबारा प्रहलाद कुमार वर्मा को सामने उतारा, लेकिन वे जीत नहीं पाए और इस बार भी थावरचंद गहलोत ने उन्हें 7513 वोटों से हराया, लेकिन कांग्रेस ने सबक नहीं लिया और 1998 में फिर से प्रहलाद वर्मा को टिकट दे दिया, लेकिन भाजपा ने चेहरा बदलकर मनोहर ऊंटवाल को टिकट दिया और वे प्रहलाद वर्मा से 3919 वोटों से जीत गए. आखिर 2003 में कांग्रेेस ने चेहरा बदलकर पहली बार प्रेमचंद गुड्‌डू बौरासी को भाजपा के मनोहर ऊंटवाल के सामने टिकट दिया और यह पैंतरा काम कर दिया.

इन खबरों पर भी एक नजर:

प्रेमचंद ने मनोहर ऊंटवाल को 2971 वोटों से हराया, मनोहर ऊंटवाल ने मैदान नहीं छोड़ा और 2008 में भाजपा ने फिर से उन पर विश्वास जताया तो उन्होंने इस बार फिर से कांग्रेस प्रत्याशी बनकर आए प्रेमचंद गुड्‌डू को 8567 वोट से शिकस्त दी, लेकिन 2013 का चुनाव बड़ा परिवर्तन लेकर आया. दोनों ही पार्टी ने चेहरे बदले, भाजपा ने थावरचंद गहलोत के बेटे जितेंद्र गहलोत को तो कांग्रेस ने प्रेमचंद गुड्‌डू के बेटे अजीत बौरासी को टिकट दिया. दोनों नेता पुत्रों में जमकर जोर आजमाईश हुई और जीत मिली भाजपा के जितेंद्र गहलोत को. उन्होंने 7973 वोट से अजीत को शिकस्त दी, कांग्रेस ने 2018 में चेहरा बदला और इस बार नए चेहरे व गरीब परिवार के एक्टिव नेता मनोज चावला को टिकट दी. जबकि भाजपा ने जितेंद्र गहलोत को दोहराया, नतीजा पलट गया. कांग्रेस के मनोज चावला 5448 वोट से जीत गए.

भोपाल। एमपी गठन के बाद आलोट पर पहली बार 1977 में चुनाव हुए, पहली बार भले ही कांग्रेस जीती, लेकिन दूसरे टर्म यानी वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में इस सीट को भाजपा ने जीत लिया और विधायक बने संघ व जनसंघ से जुड़े रहे तब के तत्कालीन भाजपा पदाधिकारी थावरचंद गहलोत. पहली बार भाजपा को यह सीट मिली, लेकिन अगले ही चुनाव में फिर कांग्रेस के खाते में चली गई, लेकिन इसके बाद 6 में से पांच बार भाजपा के पास रही. बीते चुनाव में सीट छिटककर वापिस कांग्रेस की झोली में चली गई, महज 5,448 वोट के अंतर से थावरचंद गहलोत के बेटे जितेंद्र गहलोत कांग्रेस के मनोज चावला से चुनाव हार गए.

Alot Vidhan Sabha Seat
आलोट सीट का सियासी समीकरण

क्या है आलोट सीट का सियासी समीकरण: इस बार उम्मीद थी कि भाजपा अपनी इस खोई सीट को वापिस हासिल कर लेगी तो, अचानक दो महीने पहले हुए सामुहिक इस्तीफों ने मुश्किलें बड़ा दी. दरअसल आलोट सीट शेड्यूल कास्ट (SC) यानी दलित वर्ग के लिए रिजर्व है, सबसे अधिक मतदाता इन्हीं के हैं, लेकिन दूसरे नंबर पर यहां राजपूत वोट माने जाते हैं. सीट का ट्रेंड दलित वर्सेज दबंग का रहा है. ऐसे में राजनीतिक वर्चस्व के लिए मनमुटाव सामने आते रहे हैं, लेकिन एक साथ 80 पदाधिकारियों के इस्तीफ से मामला उलझा हुआ दिखाई दे रहा है. यह भी जानकारी मिली है कि एक बड़ा धड़ा फिर से इस्तीफे की तैयारी रहा है, यदि ऐसा होगा तो कांग्रेस के मनोज चावला सशक्त होंगे और थावरचंद गहलोत के बेटे जितेंद्र गहलोत के लिए मुश्किल होगी.

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आलोट के मतदाताओं की संख्या

विरोध का एक बड़ा कारण भी यही रहा है कि इस सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के परिवार का नियंत्रण रहा है, दूसरा दलित नेता आगे नहीं बढ़ पाया. बीच में मनोहर ऊंटवाल ने भाजपा से एक अच्छी पकड़ इस सीट से बनाई, लेकिन बाद में वे सांसद बन गए तो फिर से गहलोत परिवार के पास यह सीट चली गई.

आलोट विधानसभा के चुनाव के नतीजे: आलोट विधानसभा के नेचर पर नजर डाले तो यहां जीत का अंतर लगातार बहुत रहता आया है. पहले और दूसरे चुनाव में भले ही कांग्रेस अच्छे मतों से जीती हो, लेकिन इसके बाद 1967 में जनसंघ के मदनलाल ने कम अंतर से पहली बार इस सीट पर कब्जा किया. हालांकि फिर 1972 में कांग्रेस की लीला देवी चौधरी ने वापिस सीट छीन ली. 1977 में उन्हें जनता पार्टी के प्रत्याशी नवरतन सांकला ने 15552 वोटों से हरा दिया, 1980 तक जनता पार्टी भारतीय जनता पार्टी बन गई और पहली बार पार्टी ने थावरचंद गहलोत को मैदान में उतारा और उन्होंने कांग्रेस के रामचंद्र सूर्यवंशी को 7742 वोटों से हराया. नया नाम पर दम नहीं देखकर कांग्रेस ने 1985 में वापिस लीलादेवी चौधरी को मैदान में उतार और उन्होंने थावरचंद गहलोत को 2399 वोटों से हराकर सीट छीन ली, लेकिन 1990 में कांग्रेस ने फिर चेहरा बदला और प्रहलाद कुमार वर्मा को मैदान में उतारा, जो कि संघ से निकलकर आए थावरचंद गहलो से 16954 वोटों से हारे.

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रतलाम जिले की आलोट सीट का 2018 का रिजल्ट

यह हार बीते दस चुनाव में सबसे बड़ी रही है. 1993 में दोबारा प्रहलाद कुमार वर्मा को सामने उतारा, लेकिन वे जीत नहीं पाए और इस बार भी थावरचंद गहलोत ने उन्हें 7513 वोटों से हराया, लेकिन कांग्रेस ने सबक नहीं लिया और 1998 में फिर से प्रहलाद वर्मा को टिकट दे दिया, लेकिन भाजपा ने चेहरा बदलकर मनोहर ऊंटवाल को टिकट दिया और वे प्रहलाद वर्मा से 3919 वोटों से जीत गए. आखिर 2003 में कांग्रेेस ने चेहरा बदलकर पहली बार प्रेमचंद गुड्‌डू बौरासी को भाजपा के मनोहर ऊंटवाल के सामने टिकट दिया और यह पैंतरा काम कर दिया.

इन खबरों पर भी एक नजर:

प्रेमचंद ने मनोहर ऊंटवाल को 2971 वोटों से हराया, मनोहर ऊंटवाल ने मैदान नहीं छोड़ा और 2008 में भाजपा ने फिर से उन पर विश्वास जताया तो उन्होंने इस बार फिर से कांग्रेस प्रत्याशी बनकर आए प्रेमचंद गुड्‌डू को 8567 वोट से शिकस्त दी, लेकिन 2013 का चुनाव बड़ा परिवर्तन लेकर आया. दोनों ही पार्टी ने चेहरे बदले, भाजपा ने थावरचंद गहलोत के बेटे जितेंद्र गहलोत को तो कांग्रेस ने प्रेमचंद गुड्‌डू के बेटे अजीत बौरासी को टिकट दिया. दोनों नेता पुत्रों में जमकर जोर आजमाईश हुई और जीत मिली भाजपा के जितेंद्र गहलोत को. उन्होंने 7973 वोट से अजीत को शिकस्त दी, कांग्रेस ने 2018 में चेहरा बदला और इस बार नए चेहरे व गरीब परिवार के एक्टिव नेता मनोज चावला को टिकट दी. जबकि भाजपा ने जितेंद्र गहलोत को दोहराया, नतीजा पलट गया. कांग्रेस के मनोज चावला 5448 वोट से जीत गए.

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