रतलाम। दिल्ली की कुतुब मीनार और चित्तौड़गढ़ के विजय स्तंभ की तरह सैलाना का कीर्तिस्तंभ भी जिले और सैलाना नगर के कीर्ति और गौरव को बढ़ा रहा है. इस कीर्तिस्तंभ को मालवा का कुतुब मीनार भी कहा जाता है.
सैलाना में बने कीर्ति स्तंभ का इतिहास
दरअसल कीर्ति स्तंभ का निर्माण तत्कालीन महाराजा जसवंत सिंह राठौर ने देश और प्रदेश में सैलाना राज्य की कीर्ति स्थापित करने के लिए 1895 से 1919 तक कराया था. बताया जाता है कि इस इमारत की ऊंचाई 177 फीट है, जिसे 30 -40 किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है. वहीं कीर्ति स्तंभ के ऊपरी भाग पर बने झरोखो से सैलाना के प्राकृतिक सौंदर्य के साथ आसपास के क्षेत्रों का नजारा भी देखा जा सकता है.
इसलिए राजा जसवंत सिंह कराया कीर्ति स्तंभ का निर्माण
बता दे कि कीर्ति स्तंभ के निर्माण के पीछे महाराजा से जुड़ा एक प्रचलित किस्सा भी यहां के जानकार लोग बताते हैं, जिसमें ब्रिटिशकाल के दौरान महाराजा जसवंत सिंह रियासतदारों की एक बैठक में दिल्ली गए थे, लेकिन सैलाना रियासत को वहां खास तरहीज नहीं दिए जाने से महाराज ने निर्णय लिया कि सैलाना की कीर्ति और पहचान बढ़ाने वाली ऐसी इमारत का निर्माण करेंगे, जिसके कीर्ति और गौरव के चर्चे मालवा में ही नहीं पूरे देश में हो सके.
कीर्ति स्तंभ में बनाई गई हैं 189 सीढ़ियां
महाराजा जसवंत सिंह के फैसले के बाद इस कीर्ति स्तंभ को पत्थरों और चूने की जुड़ाई से तैयार किया, जिसकी ऊंचाई 177 फीट है. इसमें ऊपर तक जाने के लिए 189 सीढ़ियों का निर्माण भी किया गया था. इसके बाद यह कीर्ति स्तंभ सैलाना की पहचान बन गया. आज भी इस कीर्ति स्तंभ को देखने और इसके झरोखों से सैलाना की प्राकृतिक छटा को निहारने के लिए पर्यटक भी यहां पहुंचते रहते हैं.
दूर-दूर से पहुंचते हैं पर्यटक
बहरहाल सैलाना की कीर्ति बढ़ाने वाला यह कीर्ति स्तंभ पर्यटन विभाग की अनदेखी के चलते मध्य प्रदेश के पर्यटन के नक्शे पर मौजूद ही नहीं है, इसके बावजूद सैलाना का यह कीर्ति स्तंभ आसपास से गुजरने वाले पर्यटकों को अपनी और आकर्षित कर ही लेता है.