रतलाम। कोरोना संकट की वजह से बंद शैक्षिणक संस्थानों और ऑनलाइन स्टडी का युवाओं पर नेगेटिव असर हो रहा है. ज्यादातर युवा इसकी वजह से तनाव और अवसाद का शिकार हो रहे हैं. देशभर में लोगों को राहत देने के लिए अनलॉक तो किया गया, लेकिन अब भी शैक्षणिक गतिविधियां पटरी पर नहीं लौटी हैं. शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने के कारण फिलहाल छात्रों के पास ऑनलाइन पढ़ाई के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं बचा है. ऐसे में सिविल सर्विसेज और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर छात्रों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है. इस चिंता का नतीजा ये सामने आ रहा है कि, कई छात्र तनाव और अवसाद का शिकार हो रहे हैं.
नहीं मिल रहा क्लासरूम जैसा माहौल
कोरोना महामारी का असर समाज के हर वर्ग पर हुआ है. इसी बीच युवाओं और छात्रों की मानसिक सेहत पर इसका गहरा असर हुआ है. शहर के कई युवा अपनी उच्चशिक्षा और भविष्य को लेकर चिंतित हैं. शहर की शिवानी गोठवाल बेंगलुरू में रहकर गेट (Graduate Aptitude Test in Engineering) परीक्षा की तैयारी कर रही थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण उन्हें अपने घर वापस आना पड़ा, जहां वे ऑनलाइन स्टडी के जरिए तैयारी कर रही हैं. उनका कहना है कि, घर से तैयारी करना काफी मुश्किल हो रहा है. घर में क्लासरूम का माहौल मिलना भी बेहद जरूरी है, ऐसा नहीं होने की वजह से युवा डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं.
भविष्य की हो रही है चिंता
सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुटी मुस्कान व्यास का कहना है कि, घर पर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करने की एक लिमिटेशन होती है. साल भर कड़ी मेहनत करने के बाद एग्जाम नहीं होने से छात्रों में निराशा है. इसके अलावा मुस्कान ने बताया कि, उनके कई सहपाठी अब ओवर ऐज होने की वजह से सिविल सर्विसेज की आगामी परीक्षा नहीं दे पाएंगे. भविष्य की अनिश्चितताओं को लेकर युवाओं में खासी चिंता देखी जा रही है.
अभिभावक दें विशेष ध्यान
शहर के मनोचिकित्सक डॉक्टर निर्मल जैन से जब इस बारे में बात की गई, तो उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान युवाओं में तनाव और अवसाद के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. उनके पास आने वाले ज्यादातर केस में नौकरी छूट जाने की वजह से युवा डिप्रेशन में आए हैं. वहीं महंगी उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त कर रहे युवाओं की संख्या ज्यादा है. जो डिप्रेशन के शिकार होकर मनोरोगी बन गए हैं. डॉ जैन के मुताबिक अभिभावकों को ऐसे युवा बच्चों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. उन्हें किसी तरह का अल्टरनेटिव वर्क करवाने के साथ ही उनकी दैनिक दिनचर्या पर नजर रखनी चाहिए. इसके अलावा बच्चों में नींद की कमी और चिड़चिड़ाहट जैसे लक्षण दिखाई देने पर मनोचिकित्सक से परामर्श भी लेना चाहिए.
लॉकडाउन के दौरान भविष्य की अनिश्चितताओं को लेकर युवाओं में खासी चिंता देखी जा रही है. छात्रों में अपने कैरियर खराब होने का डर बना हुआ है. जिस वजह से कई युवा तनाव और अवसाद के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा युवाओं के परिजनों को अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है. इसके साथ ही खुद युवाओं को भी हौसला बांधने और पॉजिटिव रहने की जरूरत है.