ETV Bharat / state

बेटे की हार का बदला चुका पाएंगे भूरिया, या डामोर का बरकरार रहेगा गुमान, तय करेगा मतदाता

आदिवासी बाहुल्य रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर इस बार कांटे की ट्क्कर दिख रही है. यहां कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया के सामने बीजेपी ने अपने एक मात्र विधायक गुमान सिंह डामोर को उतारा है. डामोर ने विधानसभा चुनाव में कांतिलाल के बेटे विक्रांत भूरिया को हराया था.

बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर, कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया
author img

By

Published : May 18, 2019, 12:30 AM IST

रतलाम/झाबुआ। आदिवासी बाहुल्य रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट मालवा अंचल की हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती है. झाबुआ आदिवासी पारंपरिक सभ्यता के लिए मशहूर हैं, तो वहीं रतलामी नमकीन अपने स्वाद के लिए अलग पहचान रखता है, जबकि इस क्षेत्र का सूबे की सियासत में भी अहम रोल रहता है. यहां से निकले आदिवासी नेताओं की धमक भोपाल से दिल्ली तक रही है. कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ से कांतिलाल भूरिया बीजेपी विधायक गुमान सिंह डामोर का गुमान तोड़ने के लिए फिर ललकार रहे हैं.

रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट 2008 में हुए परिसीमन के पहले तक झाबुआ के नाम से जानी जाती थी, लेकिन 2009 से ये सीट रतलाम-झाबुआ के नाम से अस्तित्व में आ गई. इस सीट पर अब तक 16 आम चुनावों में से 9 बार कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया है, जबकि सिर्फ एक बार यहां बीजेपी का खाता खुला है. इसके अलावा एक-एक बार लोकदल और समता पार्टी के प्रत्याशियों ने झंडा बुलंद किया है. जुमना देवी, दिलीप सिंह भूरिया, कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज आदिवासी नेता इस सीट का प्रतिनिधित्व देश की सबसे बड़ी पंचायत में करते रहे हैं.

बेटे की हार का बदला चुका पाएंगे कांतिलाल भूरिया

इस संसदीय क्षेत्र में 18 लाख 50 हजार 602 वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 9 लाख 29 हजार 29 पुरुष वोटर तो 9 लाख 21 हजार 544 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 29 है. रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर जिले को मिलाकर बनने वाली इस सीट पर 19 मई को होने वाले मतदान के लिए 2348 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें से 407 संवेदनशील हैं. वहीं, 25 बूथ अति संवेदनशील हैं, जहां विशेष सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.

झाबुआ, रतलाम और अलीराजपुर की आठ विधानसभा सीटों से मिलकर बनने वाले इस लोकसभा क्षेत्र में रतलाम शहर, रतलाम ग्रामीण, सैलाना, पेटलावद, थांदला, झाबुआ, जोबट और अलीराजपुर शामिल है. इनमें से 5 पर कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि तीन पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था.

2014 की मोदी लहर में बीजेपी ने कांग्रेस के इस गढ़ में पहली बार सेंधमारी की थी. तब दिलीप सिंह भूरिया ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को हराया था, लेकिन बीजेपी सांसद दिलीप सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को फिर पटखनी दे दी और कांतिलाल ने दिलीप सिंह की बेटी निर्मला भूरिया को चुनावी रण में चित कर दिया था, कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया एक उपचुनाव सहित पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. खास बात ये है कि कांतिलाल के बेटे विक्रांत भूरिया को विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर से हार का सामना करना पड़ा था. जिससे इस बार मुकाबला और कड़ा नजर आ रहा है.

इस क्षेत्र के सामाजिक ताने बाने की बात करें तो आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, स्वास्थय, रोजगार, पानी का घोर अभाव है. जिसके चलते यहां के वाशिंदे परेशान नजर आते हैं, जबकि 2014 में हुआ पेटलावद हादसा बार-बार इनके जेहन को गंभीर जख्म की तरह कुरेदता है. ऐसा ही कुछ दर्द कांतिलाल के सीने में भी छिपा है, जिसे वह बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर का गुमान तोड़कर भरना चाहते हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव में डामोर ने उनके बेटे विक्रांत भूरिया को हराया था, अब देखना दिलचस्प होगा कि गुमान सिंह का गुमान बरकरार रहता है, या कांतिलाल दसवीं बार कांग्रेस को जीत दिला पाते हैं.

रतलाम/झाबुआ। आदिवासी बाहुल्य रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट मालवा अंचल की हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती है. झाबुआ आदिवासी पारंपरिक सभ्यता के लिए मशहूर हैं, तो वहीं रतलामी नमकीन अपने स्वाद के लिए अलग पहचान रखता है, जबकि इस क्षेत्र का सूबे की सियासत में भी अहम रोल रहता है. यहां से निकले आदिवासी नेताओं की धमक भोपाल से दिल्ली तक रही है. कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ से कांतिलाल भूरिया बीजेपी विधायक गुमान सिंह डामोर का गुमान तोड़ने के लिए फिर ललकार रहे हैं.

रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट 2008 में हुए परिसीमन के पहले तक झाबुआ के नाम से जानी जाती थी, लेकिन 2009 से ये सीट रतलाम-झाबुआ के नाम से अस्तित्व में आ गई. इस सीट पर अब तक 16 आम चुनावों में से 9 बार कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया है, जबकि सिर्फ एक बार यहां बीजेपी का खाता खुला है. इसके अलावा एक-एक बार लोकदल और समता पार्टी के प्रत्याशियों ने झंडा बुलंद किया है. जुमना देवी, दिलीप सिंह भूरिया, कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज आदिवासी नेता इस सीट का प्रतिनिधित्व देश की सबसे बड़ी पंचायत में करते रहे हैं.

बेटे की हार का बदला चुका पाएंगे कांतिलाल भूरिया

इस संसदीय क्षेत्र में 18 लाख 50 हजार 602 वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. जिनमें 9 लाख 29 हजार 29 पुरुष वोटर तो 9 लाख 21 हजार 544 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 29 है. रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर जिले को मिलाकर बनने वाली इस सीट पर 19 मई को होने वाले मतदान के लिए 2348 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें से 407 संवेदनशील हैं. वहीं, 25 बूथ अति संवेदनशील हैं, जहां विशेष सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.

झाबुआ, रतलाम और अलीराजपुर की आठ विधानसभा सीटों से मिलकर बनने वाले इस लोकसभा क्षेत्र में रतलाम शहर, रतलाम ग्रामीण, सैलाना, पेटलावद, थांदला, झाबुआ, जोबट और अलीराजपुर शामिल है. इनमें से 5 पर कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि तीन पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था.

2014 की मोदी लहर में बीजेपी ने कांग्रेस के इस गढ़ में पहली बार सेंधमारी की थी. तब दिलीप सिंह भूरिया ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को हराया था, लेकिन बीजेपी सांसद दिलीप सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को फिर पटखनी दे दी और कांतिलाल ने दिलीप सिंह की बेटी निर्मला भूरिया को चुनावी रण में चित कर दिया था, कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया एक उपचुनाव सहित पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. खास बात ये है कि कांतिलाल के बेटे विक्रांत भूरिया को विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर से हार का सामना करना पड़ा था. जिससे इस बार मुकाबला और कड़ा नजर आ रहा है.

इस क्षेत्र के सामाजिक ताने बाने की बात करें तो आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में सड़क, शिक्षा, स्वास्थय, रोजगार, पानी का घोर अभाव है. जिसके चलते यहां के वाशिंदे परेशान नजर आते हैं, जबकि 2014 में हुआ पेटलावद हादसा बार-बार इनके जेहन को गंभीर जख्म की तरह कुरेदता है. ऐसा ही कुछ दर्द कांतिलाल के सीने में भी छिपा है, जिसे वह बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर का गुमान तोड़कर भरना चाहते हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव में डामोर ने उनके बेटे विक्रांत भूरिया को हराया था, अब देखना दिलचस्प होगा कि गुमान सिंह का गुमान बरकरार रहता है, या कांतिलाल दसवीं बार कांग्रेस को जीत दिला पाते हैं.

Intro:झाबुआ : अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रतलाम संसदीय सीट पर 1951 से लेकर 2015 के उपचुनाव तक भील जाति का कब्जा रहा । इस संसदीय सीट को पहले झाबुआ संसदीय सीट के नाम से जाना जाता था ,बाद में झाबुआ -रतलाम संसदीय सीट हुआ और अब इसे रतलाम संसदीय सीट के नाम से जाना जाता है। इस संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभाये आती है जिसमे से 7 विधानसभा आदिवासी बहुल है, जबकि केवल रतलाम शहर एकमात्र विधानसभा सीट है जहां सामान्य जाति ओर ओबीसी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। सैलाना ,झाबुआ ,थांदला, पेटलावद ,जोबट ,अलीराजपुर विधानसभाओं में अनुसूचित जाति या यूं कहें की आदिवासी जाति की आबादी सर्वाधिक है। आदिवासी समुदाय में तीन प्रमुख जातिया शामिल है जिन्हें भील, भिलाला और पटलिया कहते है । इन तीन जातियों में भील जाति का वर्चस्व हमेशा से ही इस सीट पर देखा गया है ओर कायम है ।


Body:संसदीय क्षेत्र की अलीराजपुर और जोबट विधानसभा में भिलाला मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है जबकि थांदला, पेटलावद झाबुआ ,सैलाना और रतलाम ग्रामीण विधानसभाओं में भील बहुल मतदाताओं की संख्या 85 फ़ीसदी से ज्यादा है। थांदला और पेटलावद विधानसभा में पटेलिया समाज भी आता है मगर उनका वोट प्रतिशत बमुश्किल 3 से 4 फ़ीसदी से ज्यादा नहीं है। पूरे संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की सर्वाधिक संख्या होने के चलते यहां से चुने जाने वाले सांसद भी इसी जाति से आते हैं। कांग्रेस ने 1980 के बाद से भील जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जबकि भाजपा ने कई बार भीलाला जाति को भी मौका दिया ।


Conclusion:1951 से लेकर 2015 के उपचुनाव तक केवल दो बार भिलाला जाति के सांसद इस संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए । सन 1962 में कुक्षी से झाबुआ आकर जमुना देवी और बाद में अलीराजपुर से भागीरथ भंवर 1971 से 1980 तक सांसद रहे । संसदीय क्षेत्र से पहली बार 1951 में अमर सिंह डामोर और आखरी बार उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया सांसद निर्वाचित हुए , इस बीच सुर सिंह डामोर ,दिलीप सिंह भूरिया ने भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया जो भील जाति से आते रहे । इसलिए संसदीय क्षेत्र को भील बहुल संसदीय क्षेत्र भी कहा जाता है। रतलाम शहर विधानसभा को छोड़ दें तो बाकी संसदीय क्षेत्र में सामान्य और ओबीसी वर्ग के मतदाताओं की वोटर संख्या 10 फ़ीसदी के आसपास है, जिसमें मुस्लिम ,ब्राह्मण, राजपूत, पाटीदार जैसी तमाम जातियां शामिल है । पूरे रतलाम संसदीय क्षेत्र में लगभग 25 फ़ीसदी वोटर सामान्य और ओबीसी जाती का प्रतिनिधित्व करते है जो किसी भी दल के उम्मीदवार की हार और जीत की भूमिका में अहम किरदार निभाते है, लिहाजा दोनों ही दल के नेता इन्हें मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते ।
बाइट, चंद्रभान सिंह भदोरिया, वरिष्ठ पत्रकार

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.