राजगढ़। किसी भी जिले के लिए चिकित्सा व्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण होती है और अगर उस जिले में डॉक्टर से लेकर स्टाफ अगर काफी अच्छा हो तो वहां पर रहने वाले नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता आसानी से हो जाती है और वहां पर मृत्यु दर से लेकर कई चीजों में गिरावट देखने को मिलती है. लेकिन राजगढ़ जिला चिकित्सा सेवाओं में लगातार पिछड़ाता हुआ दिखाई दे रहा है. यहां पर ना सिर्फ डॉक्टर बल्कि सपोर्टिंग स्टाफ की भी भारी कमी है. जिले के कई अस्पतालों में तो स्पेशलिस्ट उपलब्ध ही नहीं है और जिला मुख्यालय पर जिला अस्पताल में टाइम मशीनों को संचालित करने वाले स्टाफ की भी भारी कमी देखने को मिलती है.
जिले में है चिकित्सकों की भारी कमी
जिला चिकित्सालय की बात करें तो उसमें मेडिसिन विशेषज्ञ, सर्जरी विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ, एनएसथीसिया विशेषज्ञ, आर्थोपेडिक विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट, ईएनटी विशेषज्ञ, दंत रोग विशेषज्ञ, शय रोग विशेषज्ञ जिला अस्पताल में उपलब्ध होने चाहिए थे. लेकिन इनमें से एक भी विशेषज्ञ जिला अस्पताल में उपलब्ध नहीं है.
इसके अलावा और भी कई डिपार्टमेंट हैं, जिनमें भी भारी कमी है. जिला अस्पताल में 7 पदों में से सिर्फ एक ही शिशु रोग विशेषज्ञ उपलब्ध है. यह हालात तो जिला अस्पताल के हैं, लेकिन जिले के अन्य अस्पतालों की बात करें तो कई अस्पतालों में स्पेशलिस्ट तो दूर की बात है वहां पर तो पर्याप्त डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं हैं और वह लगातार डॉक्टरों की कमी के कारण जूझते हुए नजर आते हैं.
सोनोग्राफी से लेकर अन्य कार्यों के लिये होना पड़ता है परेशान
जिला अस्पताल में जहां मार्च से पहले सोनोग्राफी की मशीन को संचालित करने वाले एक प्राइवेट व्यक्ति को जिला अस्पताल ने हायर कर रखा था और वहां सिर्फ गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी की जाती थी, लेकिन मार्च के महीने में जहां उन्होंने भी अपना काम बंद कर दिया है और उसके बाद से ही जिला अस्पताल में सोनोग्राफी का कार्य ही पूरी तरह से बंद हो चुका है.
सोनोग्राफी कराने के लिए लोगों को प्राइवेट संस्थाओं पर निर्भर होना पड़ रहा है, जिसकी वजह से कई गरीबों को पैसों की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जहां जिला अस्पताल में सोनोग्राफी फ्री में होती थी, बाजार में इसका रेट काफी ज्यादा होता है. जिसकी वजह से उन लोगों को आर्थिक स्थिति का भी सामना करना पड़ता है, वहीं ऐसे ही कुछ हालात अन्य जरूरी मशीनों के साथ भी है. जिला अस्पताल में मशीनें तो उपलब्ध हैं, लेकिन उनको संचालित करने वाला कोई भी उपलब्ध नहीं है.
विशेषज्ञों की कमी के कारण जाना पड़ता है बड़े शहरों में
जिले के अस्पतालों में जहां विशेषज्ञों की भारी कमी है और जिला अस्पताल में भी जहां हालात ज्यादा अच्छे नहीं है तो वहीं जब कोई बड़ी बीमारी हो जाती है या फिर किसी व्यक्ति को अगर रेफर किया जाता है, तो जिला मुख्यालय से 200 किलोमीटर दूर इंदौर या भोपाल ले जाना पड़ता है.
जिसकी वजह से कई बार कई हादसे देखने को मिलते हैं और उस व्यक्ति की बीच रास्ते में ही मौत हो जाती है, वही कई बीमारियों के लिए इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में जाना पड़ता है और वहां पर जहां भारी भरकम फीस के कारण कई गरीब अपना इलाज नहीं करवा पाते हैं और इसका खामियाजा उन गरीबों को कई बार भुगतना पड़ता है, वहीं अगर वे इलाज करवाते हैं, तो उनको अपनी आर्थिक स्थिति से भी जूझना पड़ता है.
इस बारे में समाज सेवक बताते हैं कि जिला अस्पताल की बात की जाए तो यहां के हालात काफी बुरे हैं, यहां पर सबसे पहले तो डॉक्टरों की भारी कमी है. तो वहीं जो डॉक्टर उपलब्ध हैं, उनके कारण कई बार मरीजों को रेफर करना भी पड़ता है. क्योंकि उनके पास वह विशेषज्ञता नहीं है, जिससे मरीजों का इलाज किया जा सके.
वहीं, इस बारे में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एसयदु बताते हैं कि हर जिले में विशेषज्ञों से लेकर कई डॉक्टरों की भारी कमी है. जहां हम जिले में विशेषज्ञों की बात करें तो जिले में 98 विशेषज्ञों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ चार ही अभी कार्यरत हैं और 94 पद अभी भी रिक्त हैं.
वहीं, चिकित्सा अधिकारियों की बात करें तो जिले में 96 चिकित्सा अधिकारियों के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से सिर्फ 65 ही अभी कार्य कर रहे हैं. जिसमें अभी भी 31 चिकित्सा अधिकारियों की कमी जिले में है. चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन जिले के बड़े अस्पतालों में तो चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध हैं.