राजगढ़। मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को अब सिर्फ पांच ही दिन रह गए हैं और अंतिम दौर में उपचुनाव के संग्राम में दोनों पार्टी अपना पूरा दमखम लगा रही हैं. इन 28 सीटों में राजगढ़ जिले की ब्यावरा सीट भी शामलि हैं, जहां चुनावी मैदान में बीजेपी ने नारायण सिंह पंवार को प्रत्याशी बनाया है तो वहीं कांग्रेस ने रामचंद्र दांगी को मैदान में उतारा है. ETV भारत की टीम ब्यावरा विधानसभा क्षेत्र में पहुंची और मतदाताओं से चुनावी मुद्दों पर चर्चा की.
किसानों की कर्ज माफी बना अहम मुद्दा
ETV भारत ने जब अड्डा जमाकर लोगों से चुनावी मुद्दों पर बात की तो सबसे पहले सबने यही बताया कि किसानों से साथ कर्जमाफी ने नाम पर जो छलावा हुआ है, वो उस कारण काफी नाराज हैं. कमलनाथ सरकार ने जो 2 लाख रुपए तक का कर्जा माफ करने को लेकर बात कही थी, अब तक किसानों का कर्जा माफ नहीं हो पाया है. यहां यह मुद्दा काफी प्रभावी रहेगा.
युवाओं के साथ रोजगार के नाम पर धोखा
लोगों ने बताया कि युवाओं से कांग्रेस ने वादा किया था कि उन्हें हर महीने चार हजार रुपए दिए जाएंगे, लेकिन 15 महीने की सरकार निकल जाने के बाद भी वह रुपए नहीं मिल पाया है. वहीं विकास की बात करें तो 15 महीने कैसे निकल गए यह पता भी नहीं चला और कुछ भी विकास नहीं दिखाई दिया. लोगों ने बताया कि ब्यावरा में 2018 चुनाव के पहले बहुत विकास हुआ था और विकास करने वाला ही व्यक्ति ब्यावरा विधानसभा उपचुनाव में जीत दर्ज कर पाएगा, जनता को मूर्ख बनाने वाला नहीं.
फसल खराब से किसान परेशान
किसानों ने बताया कि सोयाबीन की फसल इस बार भी खराब हो गई है और किसान परेशान हैं. वहीं कुछ मंडिया बंद पड़ी हुई हैं, जिससे किसान को लगातार सोयाबीन की फसल को बेचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा इस बार सोयाबीन की फसल काफी कम हुई है और एक बीघा में सिर्फ 40 से 50 किलो की सोयाबीन निकली है, जिसको किसान मंडियों में लेकर कैसे जाएं और उसको बेचने में काफी दिक्कत आ रही है. जो लागत वह अपने खेत में लगा रहा है वह भी नहीं निकल पा रही है.
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2018 के बाद क्या से क्या हो गई तस्वीर
ब्यावरा के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक सुठालिया की जनता बताती है कि 2018 के चुनाव के पहले हमने कुछ और देखा था और अब कुछ और देख रहे हैं. बात की जाए सुठालिया क्षेत्र की तो वहां पर 2018 के पहले बहुत विकास हुआ था और पूर्व विधायक द्वारा सुठालिया क्षेत्र में अस्पताल से लेकर कॉलेज और पानी की व्यवस्था दुरुस्त हुई है और काफी कुछ बदलाव हमने देखने को मिला था लेकिन 2018 के बाद जैसे वहां का विकास रुक सा गया था.
हाथ ठेला व्यापारी नाराज
सड़कों पर ठेला लगाकर अपनी रोजी-रोटी कमाने वाले व्यापारी पूर्व विधायक से नाराज नजर आए. वे कहते हैं कि 2018 के पहले नारायण सिंह के कार्यकाल में ठेले वाले व्यक्तियों को भगा दिया जाता था, और सड़क किनारे दुकान लगाने की अनुमति नहीं होती थी. हम पूछना चाहते हैं कि अगर फल-फ्रूट की दुकान किसी कोने में लगेगी और वह दिखाई नहीं देगी तो उसमें क्रेता कैसे आएगा क्योंकि फल-फ्रूट जब दिखता है तभी तो बिकता है.
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इसके अलावा छोटे व्यापारी भी नेताओं से नाराज नजर आए. उन्होंने बताया कि मुद्दे तो बहुत सारे हैं जो दिखाई नहीं दे रहे हैं. ब्यावरा में बेरोजगारी बहुत है, सड़क का निर्माण तो हुआ है लेकिन नदी नालों की बात की जाए तो उनका ठीक से रख-रखाव और साफ-सफाई नहीं की गई है. वहीं आवास की बात की जाए तो हमारे आवास का काम तीन-चार साल से अटका हुआ है. इसके लिए अगर नगर पालिका में जाओ तो वहां पर कोई भी ठीक से जवाब नहीं देता है.
ब्यावरा विधानसभा सीट के सियासी इतिहास पर एक नजर
- 1951 से लेकर अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी बारी-बारी से यह सीट जीतती रही है. निर्दलीय प्रत्याशी भी यहां जीत दर्ज करते रहे हैं.
- ब्यावरा विधानसभा सीट पर अब तक 14 आम चुनाव हुए हैं. जिनमें पांच बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो चार बार बीजेपी के प्रत्याशी ने बाजी मारी.
- चार बार निर्दलीय प्रत्याशी जीते तो एक बार जनता दल ने जीत का स्वाद चखा था.