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दीपावली के दूसरे दिन होती है भगवान गोवर्धन की पूजा - lord govardhan

दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा का अलग ही महत्व है, जिसमें लोग गाये के गोबर से भगवान गोवर्धन को बनाकर पूरे विधि विधान से उनकी पूजा करते हैं.

दीपावली के दूसरे दिन पूजे जाते भगवान गोवर्धन
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Published : Oct 28, 2019, 5:27 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 7:36 PM IST

राजगढ़। दीपावली के दूसरे दिन पड़वा पर कई घरों में गोवर्धन पूजा की जाती है. माना जाता है कि जब ब्रजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे , तब कृष्ण ने मां यशोदा से पूछा की सब लोग इंद्र की पूजा क्यों कर रहे हैं. मां यशोदा ने बताया कि इंद्र की पूजा अच्छी वर्षा के लिए ब्रजवासी कर रहें हैं , जिससे अन्न की पैदावर अच्छी हो और गायों को चारा मिल सकें.

दीपावली के दूसरे दिन पूजे जाते हैं भगवान गोवर्धन

ये बात सुनकर कृष्ण ने कहा कि ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं. इसके बाद कृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगें. जिससे इंद्रदेव ने आपना आपमान समक्षा और प्रलय के समान मूसलाधार बारिश शुरु कर दी. जिसके बाद ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया. जिसके बाद इंद्र को विष्णू के कृष्ण अवतार के बारे में पता लगा. जिसके बाद अपनी भूल मान कर इंद्र ने कृष्ण से क्षमा याचना की और गोवर्धन पर्वत नीचे रखने को कहा. इसके बाद भगवान कृष्ण ने पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से हर साल गोवर्धन पूजा करने को कहा. तब ही से दीपावली के दूसरे दिन लोग गोवर्धन पूजा पूरे विधि विधान से करते है , जिसमें गाए के गोबर से भगवान गोवर्धन को बनाया जाता है.

राजगढ़। दीपावली के दूसरे दिन पड़वा पर कई घरों में गोवर्धन पूजा की जाती है. माना जाता है कि जब ब्रजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे , तब कृष्ण ने मां यशोदा से पूछा की सब लोग इंद्र की पूजा क्यों कर रहे हैं. मां यशोदा ने बताया कि इंद्र की पूजा अच्छी वर्षा के लिए ब्रजवासी कर रहें हैं , जिससे अन्न की पैदावर अच्छी हो और गायों को चारा मिल सकें.

दीपावली के दूसरे दिन पूजे जाते हैं भगवान गोवर्धन

ये बात सुनकर कृष्ण ने कहा कि ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं. इसके बाद कृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगें. जिससे इंद्रदेव ने आपना आपमान समक्षा और प्रलय के समान मूसलाधार बारिश शुरु कर दी. जिसके बाद ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया. जिसके बाद इंद्र को विष्णू के कृष्ण अवतार के बारे में पता लगा. जिसके बाद अपनी भूल मान कर इंद्र ने कृष्ण से क्षमा याचना की और गोवर्धन पर्वत नीचे रखने को कहा. इसके बाद भगवान कृष्ण ने पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से हर साल गोवर्धन पूजा करने को कहा. तब ही से दीपावली के दूसरे दिन लोग गोवर्धन पूजा पूरे विधि विधान से करते है , जिसमें गाए के गोबर से भगवान गोवर्धन को बनाया जाता है.

Intro: नरसिंहगढ़
नगर मैं दिवाली के दूसरे दिन कई घरों में गोवर्धन पूजा की जाती है।
कृष्ण जी ने अपने भक्तों को ऐसे सारे कार्य बंद करने की आज्ञा दे दी क्योंकि वह अपने समय में वृंदावन में अनन्य भक्ति स्थापित कर देना चाहते थे सर्वज्ञ कृष्ण जी को ज्ञात था कि सारे ग्वाले इंद्रिय की तैयारी कर रहे हैं।
प्रश्न से यहां प्रश्न सुनकर महाराज नंद ने उत्तर दिया मेरे बेटे यहां उत्सव पूर्व परंपरा चुकी वर्षा राजा इंद्र की कृपा से होती है और बादल उसके प्रतिनिधि हैं और क्योंकि हमारे जीवन के लिए जल इतना महत्वपूर्ण है अतः हमें वर्षा के नियामक महाराज इंद्र के प्रति कुछ कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए अतः हम राजा इंद्र को प्रसन्न करने का प्रबंध कर रहे हैं क्योंकि उसने कृषि कर्मो को सफल बनाने के लिए ही बादलों को प्रचुर वर्षा करने के लिए भेजा है जल अत्यंत आवश्यक है।
इसे सुनकर भगवान कृष्ण अपने पिता तथा वृंदावन के समस्त वालों के समक्ष इस प्रकार बोले जिससे स्वर्ग का राजा इंद्र अत्यंत कुपित हो उन्होंने सुझाया कि यहां यज्ञ बंद कर दिया जाए इंद्र को प्रसन्न करने वाले इस यज्ञ का निश्चित करने के दो कारण थे पहला- जैसा की भागवत गीता में कहा गया है कि किसी भौतिक उन्नति के लिए देवता की पूजा करना व्यर्थ है देवताओं की पूजा से प्राप्त होने वाले सारे फल क्षणिक होते हैं और केवल अल्पज्ञ ही ऐसे फलों में रुचि रखते हैं दूसरा- देवताओं की पूजा से जो भी फल प्राप्त होता है वहां भगवान की कृपा से होता है भागवत गीता में स्पष्ट कथन है मायेव विहितान हि तान । देवताओं से जो भी लाभ मिलता है वहां वास्तव में भगवान द्वारा प्रदत्त है भगवान की अनुमति के बिना कोई किसी को लाभ नहीं पहुंचा सकता।
अतः श्री भगवान कृष्ण ने ग्वालो को सलाह दी कि इंद्र यज्ञ बंद करके इंद्र को दंडित करने के लिए गोवर्धन पूजा प्रारंभ की जाए क्योंकि इंद्र स्वर्ग का परम नियंता होने के कारण अत्यंत गर्वीला हो गया है।
वृंदावन वासी एकत्र हुए अपनी अपनी गोवे सजाई और उन्हें हरी हरी दूब दी फिर गोवो को आगे करके गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने लगे गोपियों ने भी अपने को अच्छे वस्त्रों से सजाया और बैल गाड़ियों में बैठकर कृष्ण की लीलाओं का कीर्तन करने ब्राह्मणों ने गोवर्धन पूजा के लिए पुरोहित बनकर वालों तथा उनकी पत्नियों को आशीर्वाद दिया जब सबकुछ पूरा हो गया तो कृष्ण ने विशाल दिव्य रूप धारण किया और वृंदावन वासियों के समक्ष घोषित किया कि वे स्वयं गोवर्धन पर्वत हैं जिससे भक्तों को विश्वास हो जाए कि स्वयं कृष्ण तथा गोवर्धन पर्वत अभिन्न है तब वहां पर अर्पित सारे व्यंजनों को कृष्ण खाने लगे आज भी कृष्ण कथा गोवर्धन पर्वत की सत्ता का सम्मान किया जाता है और परम भक्त गण गोवर्धन पर्वत से शिलाखंड लेकर उसकी उसी प्रकार पूजा करते हैं जिस प्रकार मंदिरों में कृष्ण के श्री विग्रह की करते हैं।
Body:इसीलिए भक्तगण गोवर्धन पर्वत से छोटी-छोटी शीला एकत्र करके अपने घर में उसकी पूजा करते हैं क्योंकि यहां पूजा श्री विग्रह पूजा के ही समान है जिस रूप में कृष्ण ने भोग लगाया था उसको अलग से बनाकर कृष्ण तथा अन्य वृंदावन वासियों ने उसे तथा गोवर्धन पर्वत को नमस्कार किया साक्षात कृष्ण तथा गोवर्धन पर्वत के विशाल रूप को नमस्कार करते हुए कृष्ण ने उस सभा में घोषित किया जरा देखो तो की गोवर्धन पर्वत किस प्रकार यहां विशाल रूप धारण किए हैं और सारी भेंटे स्वीकार करके हम पर अनुग्रह कर रहा है मैंने गोवर्धन की पूजा जिस प्रकार से संपन्न की है यदि कोई उस रूप में नहीं करेगा तो वहां सुखी नहीं रहेगा गोवर्धन पर्वत में अनेक सर्प हैं और जो गोवर्धन पूजा नहीं करेगा उससे यह साफ काटेंगे और वहां पर जावेगा गोवो तथा अपने कल्याण के लिए गोवर्धन के निकटवर्ती समस्त वृंदावन वासियों को इस पर्वत की पूजा उसी रूप में करनी चाहिए जैसा मैंने बताया है।
इस प्रकार गोवर्धन पूजा संपन्न करके वृंदावन के समस्त वासियों ने वासुदेव के पुत्र कृष्ण की आज्ञा का पालन किया और बाद में वे अपने अपने घरों को चले गए।

Conclusion:बाइट - महिलाओं की ।
Last Updated : Oct 28, 2019, 7:36 PM IST
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