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35 सालों से रामायण पाठ कर रहे फारुख खान, कौमी एकता की मिसाल हैं फारुख रामायणी

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, इस लाइन को चरितार्थ कर रहे हैं राजगढ़ जिले के फारुख रामायणी. जो पिछले 35 सालों से लोगों को सद्भावना का पाठ पढ़ाते आ रहे हैं.

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Published : Nov 26, 2019, 12:26 PM IST

Updated : Nov 26, 2019, 1:30 PM IST

Farrukh Khan is an example of goodwill
फारुख खान सद्भावना की पेश कर रहे मिसाल

राजगढ़। खुद टूटकर भी जिस राम ने सबको जोड़े रखा, आज उसी राम के नाम पर लोग टूट रहे हैं या लोगों को तोड़ने का काम कर रहें हैं, लेकिन राजगढ़ निवासी फारुख खान राम की मर्यादा के इस कदर मुरीद हुए कि फारुख खान से फारुख रामायणी बन गए और गंगा-जमुनी संगम की मिसाल बन गए हैं. जिनमें भारत की असली छवि नजर आती है. फारुख रामायणी पिछले 35 साल से रामकथा करते आ रहे हैं बल्कि प्रवचन के साथ-साथ उन्होंने रामायण के ऊपर भी कई लेख लिख चुके हैं.

फारूख रामायणी बताते हैं कि वो पांच वक्त की नामाज अदा करना भी नहीं भूलते और लोगों को जोड़ने के लिए रामकथा भी करते है. फारुख रामायणी जहां भी रामकथा करते हैं, वहां हर रोज सैकड़ों लोग पहुंचकर रामकथा का भरपूर आनंद उठाते हैं. यही वजह है कि फारुख खान रामायणी को फारुख रामायणी के नाम से पुकारा जाता है.

फारुख खान सद्भावना की पेश कर रहे मिसाल

मुस्लिम परिवार में जन्मे फारुख खान रामायण में इस कदर रमे कि फारुख रामायणी बन गए. उनके रामायण कथा करने के अलग अंदाज के चलते सुनने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ आती है. फारुख रोजाना घंटों रामायण का पाठ करते हैं. वेद, गीता सहित तमाम ग्रंथों पर धारा प्रवाह बोलते हैं, लेकिन कभी भी अपनी पांच बार की नमाज को भी नहीं भूलते हैं. अब तक मध्यप्रदेश ही नहीं महाराष्ट्र, नागपुर तेलंगाना सहित कई हिस्सों में रामकथा कर चुके हैं. उन्हें कई बार इस सद्भावना के लिए अनेक प्रशस्ति पत्रों से नवाजा जा चुका है.

गंगा-जमुनी तहजीब का चेहरा फारुख रामायणी

कैसे शुरू हुआ यह सफर
फारुख रामायणी इस बारे में बताते हैं कि उनके गांव गुनियारी में जब भी सुंदरकांड का पाठ होता था तो वो वहां बैठा करते थे और घंटों प्रवचन सुनते थे. जब एक बार गायत्री परिवार के संस्थापक सदस्य आचार्य श्रीराम शर्मा का सम्मान नरसिंहगढ़ में किया गया, तब ही उन्होंने जीवन में ऐसा कुछ बनने का सोच लिया था. तब से उन्होंने अपने जीवन में बदलाव की शुरुआत की. फारुख बताते हैं कि उन्होंने राजगढ़ जिले के पचोर में पहली राम कथा 24 साल में की थी. तब से लेकर आज तक वो रामायण का पाठ करते आ रहे हैं.

Farrukh Khan does Ram Katha
फारुख खान करते है रामकथा

कैसे फारुख खान बने फारुख रामायणी
इस बारे में फारुख बताते हैं कि उनके गुरु पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा उनसे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उनको रामायणी के खिताब से नवाजा और उनको फारुख रामायणी के नाम से विख्यात किया, वहीं फारुख रामायणी अपनी रामकथा से अनेक लोगों को प्रभावित कर चुके हैं और लगातार प्रभावित कर रहे हैं.

राजगढ़। खुद टूटकर भी जिस राम ने सबको जोड़े रखा, आज उसी राम के नाम पर लोग टूट रहे हैं या लोगों को तोड़ने का काम कर रहें हैं, लेकिन राजगढ़ निवासी फारुख खान राम की मर्यादा के इस कदर मुरीद हुए कि फारुख खान से फारुख रामायणी बन गए और गंगा-जमुनी संगम की मिसाल बन गए हैं. जिनमें भारत की असली छवि नजर आती है. फारुख रामायणी पिछले 35 साल से रामकथा करते आ रहे हैं बल्कि प्रवचन के साथ-साथ उन्होंने रामायण के ऊपर भी कई लेख लिख चुके हैं.

फारूख रामायणी बताते हैं कि वो पांच वक्त की नामाज अदा करना भी नहीं भूलते और लोगों को जोड़ने के लिए रामकथा भी करते है. फारुख रामायणी जहां भी रामकथा करते हैं, वहां हर रोज सैकड़ों लोग पहुंचकर रामकथा का भरपूर आनंद उठाते हैं. यही वजह है कि फारुख खान रामायणी को फारुख रामायणी के नाम से पुकारा जाता है.

फारुख खान सद्भावना की पेश कर रहे मिसाल

मुस्लिम परिवार में जन्मे फारुख खान रामायण में इस कदर रमे कि फारुख रामायणी बन गए. उनके रामायण कथा करने के अलग अंदाज के चलते सुनने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ आती है. फारुख रोजाना घंटों रामायण का पाठ करते हैं. वेद, गीता सहित तमाम ग्रंथों पर धारा प्रवाह बोलते हैं, लेकिन कभी भी अपनी पांच बार की नमाज को भी नहीं भूलते हैं. अब तक मध्यप्रदेश ही नहीं महाराष्ट्र, नागपुर तेलंगाना सहित कई हिस्सों में रामकथा कर चुके हैं. उन्हें कई बार इस सद्भावना के लिए अनेक प्रशस्ति पत्रों से नवाजा जा चुका है.

गंगा-जमुनी तहजीब का चेहरा फारुख रामायणी

कैसे शुरू हुआ यह सफर
फारुख रामायणी इस बारे में बताते हैं कि उनके गांव गुनियारी में जब भी सुंदरकांड का पाठ होता था तो वो वहां बैठा करते थे और घंटों प्रवचन सुनते थे. जब एक बार गायत्री परिवार के संस्थापक सदस्य आचार्य श्रीराम शर्मा का सम्मान नरसिंहगढ़ में किया गया, तब ही उन्होंने जीवन में ऐसा कुछ बनने का सोच लिया था. तब से उन्होंने अपने जीवन में बदलाव की शुरुआत की. फारुख बताते हैं कि उन्होंने राजगढ़ जिले के पचोर में पहली राम कथा 24 साल में की थी. तब से लेकर आज तक वो रामायण का पाठ करते आ रहे हैं.

Farrukh Khan does Ram Katha
फारुख खान करते है रामकथा

कैसे फारुख खान बने फारुख रामायणी
इस बारे में फारुख बताते हैं कि उनके गुरु पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा उनसे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उनको रामायणी के खिताब से नवाजा और उनको फारुख रामायणी के नाम से विख्यात किया, वहीं फारुख रामायणी अपनी रामकथा से अनेक लोगों को प्रभावित कर चुके हैं और लगातार प्रभावित कर रहे हैं.

Intro:जहां एक तरफ राम के नाम को लेकर भारत देश में काफी विवाद होता है और लगातार राम मंदिर हो या फिर बीएचयू में संस्कृत पढ़ाने का मामला हो, भारत देश में धर्म को लेकर हमेशा राजनीति के कारण लड़ाई छिड़ी रहती है, परंतु राजगढ़ जिले के फारुख खान उर्फ़ फारूक रामायणी एक गंगा जमुनी सद्भावना की मिसाल पेश करते हुए, एक ऐसे व्यक्ति हैं जो पिछले 35 वर्षों से लगातार रामायण के प्रवचन ना सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि देश के विभिन्न कोनों में कर चुके हैं।


Body:कहते हैं राम का नाम ना सिर्फ मजहब से ऊपर है बल्कि धर्म से भी ऊपर उसको माना जाता है और इसी का एक उदाहरण पेश करते हुए मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले फारुख खान उर्फ फारुख रामायणी के नाम से विख्यात व्यक्ति इस को साबित कर रहे हैं कि चाहे राम कहो या रहीम कहो दोनों एक ही उस सर्वशक्तिमान के नाम है जो इंसानों को राह दिखाने का काम करता है, पांच वक्त की नमाज अदा करने वाले फारुख रामायणी पिछले 35 वर्षों से लगातार रामायण के प्रवचन कर रहे हैं और ना सिर्फ उन्होंने रामायण के प्रवचन बल्कि उन्होंने रामायण के ऊपर भी कई बार अपने यहां अनेक लेख लिख चुके
हैं और उनको ना सिर्फ मध्यप्रदेश में बल्कि भारत के कोने-कोने से चाहे वह महाराष्ट्र का नागपुर हो या फिर तेलंगाना का हैदराबाद ,वे रामायण के प्रवचन करने के लिए आमंत्रित किए जाते है और वह यह कार्य खुशी-खुशी और अपने निस्वार्थ भाव से लगातार करते आ रहे हैं और लगातार रुपए अपने इस कार्य से ना सिर्फ हिंदुओं में बल्कि मुसलमानों में भी सद्भावना पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं और उन्हें कई बार इस सद्भावना के लिए अनेक प्रशस्ति पत्रों से नवाजा जा चुका है।

कैसे शुरू हुआ यह सफ़र :-
फारुख रामायणी इस बारे में बताते हैं कि वे जब अपने छोटे से गांव अर्थात मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले के गांव गुनियारी जो एक हिंदू बाहुल्य गांव था और जिसमें सिर्फ 2 मुस्लिम परिवार रहा करते थे उसी में फारुख खान के पिता अहमद खान भी वहां पर निवास करते थे वही जब शाहरुख खान की उम्र मात्र 6 वर्ष की थी तब उनका रुझान रामायण और गीता जैसे धर्म ग्रंथों की ओर बढ़ने लगा और वही जब उनके गांव में सुंदरकांड का पाठ हो या फिर रामायण का पाठ इसी दौरान वे लगातार वहां पर बैठने लगे और घंटों उन प्रवचन ओं को सुनने लगे वही एक बात जब गायत्री परिवार के संस्थापक सदस्य आचार्य श्रीराम शर्मा आचार्य का सम्मान नरसिंहगढ़ में किया गया था तब ही उन्होंने जीवन में ऐसा कुछ बनने का सोच लिया और अपने दोस्तों को इस बारे में बताया कि मैं भी इनकी तरह बनूंगा, वही तब से उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की और वह लगातार चली आ रही है वहीं जब वे 24 वर्ष के थे तब फारूक रामायणी रामायण का पाठ काफी अच्छी तरह से करने लगे, इससे प्रभावित होकर लोगों का रुझान उनकी ओर होने लगा और वे लगातार रामायण के प्रवचन जगह-जगह करना शुरू कर दिए।
वहीं वे बताते हैं कि उन्होंने राजगढ़ जिले के पचोर में अपनी पहली राम कथा 24 वर्ष की उम्र में की थी और इसी दौरान उनकी रामकथा की काफी सराहना की गई, और इसके बाद वे लगातार रामायण का पाठ करते आ रहे हैं और वह भारत के अनेक स्थान जैसे महाराष्ट्र के नागपुर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद और अनेक ऐसे स्थानों पर भी रामायण का प्रवचन कर चुके हैं।




Conclusion:कैसे फारुख खान बदले फारुख रामायणी में

इस बारे में फारुख बताते हैं कि उनके गुरु पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा उनसे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उनको रामायणी के खिताब से नवाजा और उनको फारुख रामायणी के नाम से विख्यात किया, वही फारुख रामायणी अपनी रामकथा से अनेक लोगों को प्रभावित कर चुके हैं और लगातार प्रभावित कर रहे हैं।

वहीं उन्होंने धर्म और राजनीति के बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह दोनों ऐसे हैं जैसे धर्म गंगाजल हो और राजनीति एक दूषित शराब वहीं उन्होंने राजनीति और धर्म पर अनेक बातें बताते हुए धर्म और राजनीति को काफी अच्छी तरह से समझाया।


विसुअल

फारुख रामायणी के
उनके कमरे में मौजूद किताबें

बाइट

फारुख रामायणी रामायण कथा वाचक
Last Updated : Nov 26, 2019, 1:30 PM IST
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