राजगढ़। प्रदेश में सोयाबीन खरीफ की एक मुख्य फसल है. जिसकी खेती करीब 53 लाख हेक्टेयर में होती है. देश में सोयाबीन उत्पादन में मध्यप्रदेश पहले पायदान पर है, जिसकी हिस्सेदारी 55 से 60 फीसदी है. उत्पादन पर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि, हमारे देश की उत्पादकता 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जो कि एशिया की औसत उत्पादन 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की तुलना में काफी कम है. अकेले मालवा जलवायु क्षेत्र में सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग 22 से 25 लाख हेक्टेयर है. इससे स्पष्ट है कि, प्रदेश में सोयाबीन का भविष्य इसी क्षेत्र के जरिए नियंत्रित होता है. पिछले कुछ वर्षों से मौसम में हुई बदलाव के चलते किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. ये समय सोयाबीन की बोवनी का है. ईटीवी भारत ने कृषि वैज्ञानिक लाल सिंह से बात की और जाना की किसानों को इस दौरान किन- किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
कृषि वैज्ञानिक लाल सिंह ने बताया कि, शुरूआती समय से ही कुछ सावधानियां बरतते हैं, तो पीला सोना कहे जाने वाले सोयाबीन की पैदावर अच्छी हो सकती है. जिनमें ये बाते मुख्य हैं-
मिट्टी परीक्षण
संतुलित उर्वरक प्रबंधन और मृदा स्वास्थ्य के लिए मिट्टी का मुख्य तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, द्वितियक पोषक तत्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, मैग्निशियम और सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जस्ता, तांबा, लोहा, मैगनीज, मोलिब्डिनम, बोराॅन साथ ही पीएच, ईसी और कार्बनिक द्रव्य का परीक्षण जरूर कराएं.
बीज का चयन
किसानों को सबसे पहले बीज अच्छी किस्म का चयन करना चाहिए. बीज की गुणवत्ता परखकर ही खेत में बोएं. बीज खरीदते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि, एक सर्टिफाइड संस्था से सर्टिफाइड बीज ही खरीदें. इस दौरान अंकुरण प्रतिशत जरूर देखें. क्योंकि कितनी ही तैयारी कर लो, लेकिन अगर बीच खराब होता है, तो फसल को नुकसान होना तय है. बीज का अंकुरण पर्सेंट करीब 70 फीसदी होना जरूरी है. फिर भी अगर अंकुरण प्रतिशत इससे 2-3 फीसदी कम होता है, तो 8 से 10 फीसदी बीज की मात्रा बढ़ाकर बोना चाहिए.
ऐसें करें अंकुरण का परीक्षण
बीज की अंकुरण क्षमता चेक करने के लिए 100 दानें तीन जगह लेकर गीली बोरी में रख दें. फिर कुछ दिनों बाद उसे खोलें इस तरह किसान देख पाएंगे की बीज की अंकुरण क्षमता कितनी है.
उन्नत किस्म की चयन
बीज के साथ- साथ किसानों को अच्छी किस्म का चयन करना जरूरी है. जिले में अभी कुछ सालों से भारी बारिश हो रही है, लिहाजा ऐसा किस्म को चुनना चाहिए जो ज्यादा बारिश में भी अच्छा उत्पादन दे सके. कई कृषि विश्वविद्यालयों ने सोयाबीन की उन्नत किस्में विकसित की हैं. जिसमें आरबीएस 2004,जीएस 9560, जेएस 97-52, जे.एस. 20-29, एन.आर.सी-86 समेत कई उन्नत किस्म मौजूद हैं. किसानों ये किस्में कई संस्थानों और कृषि वैज्ञानिक केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय में आसानी से मिल जाएंगीं.
बीजों का उपचार
किसान बीज को थायरम और कार्बेन्डाजिम (2:1) के 3 ग्राम मिश्रण, या थायरम और कार्बोक्सीन 2.5 ग्राम या थायोमिथाक्सेम 78 ws 3 ग्राम या ट्राईकोडर्मा विर्डी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर सकते हैं.
बोवनी के लिए बारिश की मात्रा
बीज बोने से पहले किसान खेत को अच्छे से तैयार कर लें, खासकर देशी खाद का उपयोग अच्छी मात्रा में कर लें. इसके बाद नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि को अच्छी तरह से खेत में फैला दें, खेत में फैलाने के बाद समतल कर दें. वहीं किसान ध्यान दें कि, अभी बारिश की शुरुआत हुई है और कई जगहों पर बारिश अच्छी हो चुकी है, तो जिन इलाकों में अगर बारिश 4 इंच से अधिक हो, तो ही वहां बोवनी की जा सकती है.
जैव उर्वरक का प्रयोग
- सबसे पहेल बीज को राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम और पीएसबी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बोने से कुछ घंटे पहले टीकाकरण करें.
- पीएसबी 2.50 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में मिलाने से स्फुर को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराने में सहायक होता है.
कतारों में बोवनी
- किसान कम फैलने वाली प्रजातियों जैसे जेएस 93-05, जेएस 95-60 जैसी किस्मों के लिए बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 40 सेमी रखें.
- ज्यादा फैलने वाली किस्में जैसे जेएस 335, एनआरसी 7, जेएस 97-52 के लिए 45 सेमी की दूरी रखें.
बीज की मात्रा
- बुवाई के लिए दानों के आकार के मुताबिक बीज की मात्रा का निर्धारण जरूरी है. पौध संख्या 4-4.5 लाख/हे. होनी चाहिए.
- छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिये बीज की मात्रा 60-70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें.
- बड़े दाने वाली प्रजातियों के लिये बीज की मात्रा 80-90 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से निर्धारित करें.
- गहरी काली भूमि और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में रिजर सीडर प्लांटर से कूड (नाली) मेड़ पद्धति या रेज्ड बेड प्लांटर या ब्राड बेड फरो पद्धति से बुआई करना चाहिए.
- बीज के साथ किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न करें.
बारिश के मुताबिक ऐसे करें बोवनी
कभी बारिश ज्यादा हो जाती है, तो कभी बारिश कम होती है, इस दौरान किसान रिज फरो के जरिए बोवनी कर सकते हैं. जिससे फरो बनाकर आप अपने बीज को फरो में डालें जिससे कम या ज्यादा बारिश होने पर बीज को कोई नुकसान नहीं होगा.
बहुत बार देखा गया है कि, किसान लो-लैंड पर भी खेती करते हैं. इन जगहों पर ब्राड बैड फरो मशीन का इस्तेमाल करें, जिससे ज्यादा बारिश होने पर पानी नाली के जरिए बाहर चला जाएगा और आप का बीज और पौधा सुरक्षित रहेगा.