ETV Bharat / state

हजारों साल पुराने शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध भीमबेटका की गुफाएं, दुनियाभर से आते हैं सैलानी - world famous rock painting

रायसेन की प्रसिद्ध भीमबेटका गुफाएं प्रागैतिहासिक काल का अनमोल खजाना हैं. ये भोपाल से 46 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. भीमबेटका नाम भीम और वाटिका दो शब्दों से मिलकर बना है.

भीमबेटका की शैलकला
author img

By

Published : Aug 7, 2019, 1:12 PM IST

रायसेन। प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्रों से भरी गुफाओं के लिए रायसेन प्रसिद्ध है. ये इलाका पूरे तरह से गुफाओं से भरा हुआ है. यहां करीब 600 गुफाएं हैं. इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल में शुमार किया है. इनमें से कुछ गुफाओं में उकेरे हुए चित्र कई युगों पुराने हैं.

शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध भीमबेटका की गुफाएं

भीमबेटका का इतिहास
इसकी खोज डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर ने 1958 में की थी. भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल मंडल ने अगस्त 1999 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया. इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया. ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबंधित है, इसलिए इसका नाम भीमबेटका पड़ा है और इस स्थल को मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जाता है. ये गुफाचित्र यहां के प्रमुख आकर्षण हैं और ये ऑस्ट्रेलिया के सवाना क्षेत्र और फ्रांस के आदिवासी शैल चित्रों से मिलते हैं.

भीमबेटका की शैलकला
यहाँ बने चित्र मुख्यतः नृत्य, संगीत, आखेट, हाथी-घोड़ों की सवारी, आभूषणों को सजाने और शहद जमा करने के बारे में है. इनके अलावा बाघ, शेर, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घड़ियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है. यहां सबसे पुराना चित्र 12 हजार साल और नया चित्र करीब हजार साल पुराना है. यहां की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई हैं. यहां पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं, जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर हैं.
बता दें कि यह गुफाएं मध्य भारत पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं, हालांकि यहां प्रशासन ने परिवहन की कोई सुविधा नहीं दी है, जिसके कारण सैलानियों और शोधार्थियों को वहां जाने में काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.

रायसेन। प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्रों से भरी गुफाओं के लिए रायसेन प्रसिद्ध है. ये इलाका पूरे तरह से गुफाओं से भरा हुआ है. यहां करीब 600 गुफाएं हैं. इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल में शुमार किया है. इनमें से कुछ गुफाओं में उकेरे हुए चित्र कई युगों पुराने हैं.

शैलचित्रों के लिए प्रसिद्ध भीमबेटका की गुफाएं

भीमबेटका का इतिहास
इसकी खोज डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर ने 1958 में की थी. भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल मंडल ने अगस्त 1999 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया. इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया. ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबंधित है, इसलिए इसका नाम भीमबेटका पड़ा है और इस स्थल को मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जाता है. ये गुफाचित्र यहां के प्रमुख आकर्षण हैं और ये ऑस्ट्रेलिया के सवाना क्षेत्र और फ्रांस के आदिवासी शैल चित्रों से मिलते हैं.

भीमबेटका की शैलकला
यहाँ बने चित्र मुख्यतः नृत्य, संगीत, आखेट, हाथी-घोड़ों की सवारी, आभूषणों को सजाने और शहद जमा करने के बारे में है. इनके अलावा बाघ, शेर, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घड़ियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है. यहां सबसे पुराना चित्र 12 हजार साल और नया चित्र करीब हजार साल पुराना है. यहां की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई हैं. यहां पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं, जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर हैं.
बता दें कि यह गुफाएं मध्य भारत पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं, हालांकि यहां प्रशासन ने परिवहन की कोई सुविधा नहीं दी है, जिसके कारण सैलानियों और शोधार्थियों को वहां जाने में काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.

Intro:रायसेन-भीमबेटका भारत के मध्य प्रदेश प्रांत के रायसेन जिले में स्थित पुरापाषानिक आवासीय पुरास्थल है यह आदि मानव द्वारा बनाए गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्य पाषाण काल के समय का माना जाता है यह चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिन्ह है यह स्थल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है इनकी खोज वर्ष 1957-1958 में डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल मंडल ने अगस्त 1999 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।


Body:यहां पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं जिनमें प्राचीन के लिए की दीवार,लघुस्तूप,पाषाण निर्मित भवन,शुंग-गुप्तकालीन अभिलेख शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष सम्मिलित हैं ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबंधित है एवं इसी से इसका नाम भीमबेटका पड़ा। यह गुफाएं मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर है जिसे देखने के लिए देश दुनिया भर से सेलानी और शोधार्थी आते हैं हालांकि अब भी इस क्षेत्र में परिवहन सुविधा की दरकार है जिसे शासन प्रशासन द्वारा पूरी कर दी जाए तो न केवल पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी होगी बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। हजारों वर्ष पहले का जीवन दर्शाते हैं यहां बनाए गए चित्र मुख्यतः नृत्य संगीत आखेट घोड़ों और हाथियों की सवारी आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में है इनके अलावा बाघ सिंह जंगली सूअर हाथियों कुत्तों और घड़ियालो जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चिन्हित किया गया है यहां की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे इस प्रकार भीमबेटका के प्राचीन मानव के संज्ञानात्मक विकास का कालक्रम विश्व के अन्य प्राचीन समांनातर स्थलों से हजारों वर्ष पूर्व हुआ था इस प्रकार से यह स्थल मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जा सकता है

Byte-मनीषा यादव।

Byte-अनन्या शोधकर्ता देहरादून।

Byte-पवन कुमार।


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.