रायसेन। प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्रों से भरी गुफाओं के लिए रायसेन प्रसिद्ध है. ये इलाका पूरे तरह से गुफाओं से भरा हुआ है. यहां करीब 600 गुफाएं हैं. इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल में शुमार किया है. इनमें से कुछ गुफाओं में उकेरे हुए चित्र कई युगों पुराने हैं.
भीमबेटका का इतिहास
इसकी खोज डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर ने 1958 में की थी. भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल मंडल ने अगस्त 1999 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया. इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया. ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबंधित है, इसलिए इसका नाम भीमबेटका पड़ा है और इस स्थल को मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जाता है. ये गुफाचित्र यहां के प्रमुख आकर्षण हैं और ये ऑस्ट्रेलिया के सवाना क्षेत्र और फ्रांस के आदिवासी शैल चित्रों से मिलते हैं.
भीमबेटका की शैलकला
यहाँ बने चित्र मुख्यतः नृत्य, संगीत, आखेट, हाथी-घोड़ों की सवारी, आभूषणों को सजाने और शहद जमा करने के बारे में है. इनके अलावा बाघ, शेर, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घड़ियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है. यहां सबसे पुराना चित्र 12 हजार साल और नया चित्र करीब हजार साल पुराना है. यहां की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई हैं. यहां पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं, जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर हैं.
बता दें कि यह गुफाएं मध्य भारत पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं, हालांकि यहां प्रशासन ने परिवहन की कोई सुविधा नहीं दी है, जिसके कारण सैलानियों और शोधार्थियों को वहां जाने में काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.