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नेटवर्क नहीं होने से गांव में फेल ऑनलाइन क्लास, शिक्षक अपने खर्च से लगा रहा कक्षाएं

रायसेन मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर घने जंगल में पहाड़ों के बीच बसे आदिवासी भील गांव साले गढ़ गांव में नेटवर्क नहीं होने से यहां के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास दूर की कौड़ी है, लेकिन एक शिक्षक की मेहनत इन गरीब बच्चों के सपनों को आकार दे रहा है.

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शिक्षक ने अपने खर्चे से लगाईं कक्षाएं
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Published : Aug 26, 2020, 10:05 AM IST

रायसेन। कोरोना महामारी से बचाने के लिए स्कूल-कॉलेजों को बंद रखा गया है, लेकिन छात्रों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसके लिए ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था की गई है, रायसेन जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर घने जंगल में पहाड़ों के बीच बसे आदिवासी भील गांव साले गढ़ में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से यहां डिजिटल पढ़ाई बेमानी साबित हो रही है. यहां की प्राथमिक शाला में बच्चों की संख्या 98 है. जहां पदस्थ शिक्षक नीरज सक्सेना पांच जगह घरों में ही अपने निजी पैसे से क्लास लगा रहे हैं. 5 टीचर जहां बच्चों की पढ़ाई करा रहे हैं, जिससे ये आदिवासी भील समाज के बच्चे पढ़ाई से जुड़े रहे हैं.

ऑनलाइन नहीं शिक्षक की क्लास

पांच जगह क्लास लगाने से सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन किया जा रहा है. ऐसे में टीचर नीरज सक्सेना सड़क नहीं होने के कारण कीचड़ में पैदल जाकर खुद भी बच्चों को पढ़ाते हैं, वहीं स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने बताया कि उन्हें ऐसा नहीं लग रहा, जैसे स्कूल नहीं लग रहे हैं. उनकी क्लास घर में ही लगाई जा रही है, शिक्षक कड़ी मेहनत कर घनघोर जंगल के बीच बसे ग्राम जहां सड़क बिजली नहीं है, वहां 12 साल से बच्चों की पढ़ाई करा रहे हैं. यही मेहनत रंग लाई है, यहां के आदिवासी भील समाज के बच्चे स्कूल नहीं जाते थे, वो बच्चे आज बेधड़क इंग्लिश पढ़ लेते हैं. भले ही क्षेत्र में विकास नहीं हुआ, लेकिन यहां के बच्चे शिक्षा में प्राइवेट स्कूल से आगे हैं.

रायसेन। कोरोना महामारी से बचाने के लिए स्कूल-कॉलेजों को बंद रखा गया है, लेकिन छात्रों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसके लिए ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था की गई है, रायसेन जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर घने जंगल में पहाड़ों के बीच बसे आदिवासी भील गांव साले गढ़ में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से यहां डिजिटल पढ़ाई बेमानी साबित हो रही है. यहां की प्राथमिक शाला में बच्चों की संख्या 98 है. जहां पदस्थ शिक्षक नीरज सक्सेना पांच जगह घरों में ही अपने निजी पैसे से क्लास लगा रहे हैं. 5 टीचर जहां बच्चों की पढ़ाई करा रहे हैं, जिससे ये आदिवासी भील समाज के बच्चे पढ़ाई से जुड़े रहे हैं.

ऑनलाइन नहीं शिक्षक की क्लास

पांच जगह क्लास लगाने से सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन किया जा रहा है. ऐसे में टीचर नीरज सक्सेना सड़क नहीं होने के कारण कीचड़ में पैदल जाकर खुद भी बच्चों को पढ़ाते हैं, वहीं स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने बताया कि उन्हें ऐसा नहीं लग रहा, जैसे स्कूल नहीं लग रहे हैं. उनकी क्लास घर में ही लगाई जा रही है, शिक्षक कड़ी मेहनत कर घनघोर जंगल के बीच बसे ग्राम जहां सड़क बिजली नहीं है, वहां 12 साल से बच्चों की पढ़ाई करा रहे हैं. यही मेहनत रंग लाई है, यहां के आदिवासी भील समाज के बच्चे स्कूल नहीं जाते थे, वो बच्चे आज बेधड़क इंग्लिश पढ़ लेते हैं. भले ही क्षेत्र में विकास नहीं हुआ, लेकिन यहां के बच्चे शिक्षा में प्राइवेट स्कूल से आगे हैं.

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