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इटली की शोधार्थी रोसीना पास्तोरे का हिंदी में व्याख्यान, ब्रजभाषा में कर रही हैं शोध - ब्रजभाषा में शोध

सांची बौद्ध विश्वविद्यालय में ब्रजभाषा पर शोध कर रही इटली की शोधार्थी रोसीना पास्तोरे ने हिंदी में व्याख्यान दिया. रोसीना वर्तमान में विश्व भारती शांति निकेतन के भारतीय दर्शन विभाग में पीएचडी पूरी करने के लिए एक साल के लिए आई हैं.

Italian researcher Rosina Pastore
Italian researcher Rosina Pastore
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Published : Jan 16, 2020, 11:14 PM IST

Updated : Jan 16, 2020, 11:57 PM IST

रायसेन। सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में इटली से आई एक शोधार्थी ने ब्रजभाषा में शोध पर विशेष व्याख्यान दिया. रोसीना पास्तोरे स्विट्जरलैंड के लूज़ेन विश्वविद्यालय के भारतीय दर्शन विभाग में शोधार्थी हैं और इसी विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट असिस्टेंट के तौर पर कार्य करती हैं. रोसीना वर्तमान में विश्व भारती शांति निकेतन के भारतीय दर्शन विभाग में पीएचडी पूर्ण करने के लिए एक साल के लिए आई हैं, जिन्हें शांति निकेतन का हिंदी विभाग अपना पूरा सहयोग प्रदान कर रहा है.

इटली की शोधार्थी रोसीना पास्तोरे कर रहीं हिंदी में शोध

रोसीना पास्तोरे ने ब्रजवासीदास की ब्रजभाषा के माध्यम से “प्रबोधचंद्रम के अनेक रूप और स्त्रोत” पर सांची विश्वविद्यालय के सभी विभागों के प्राध्यापकों और छात्रों, विशेषकर हिंदी विभाग के छात्रों के सामने अपना व्याख्यान दिया. रोसीना पास्तोरे, संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम में दर्शन के पक्ष को ढूंढने का प्रयास कर रही हैं.

विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से आयोजित किए गए इस व्याख्यान में रोसीना पास्तोरे ने बताया कि उन्होंने अपने अब तक के शोध में यह पाया है कि ब्रजवासीदास के द्वारा लिखे नाट्य प्रबोधचंद्रम पर संस्कृत में लिखे गए भरतमुनि के नाट्य का प्रभाव ना होकर तुलसीदास की रामचरित्रमानस का अधिक प्रभाव है.

ग्यारहवीं सदी में संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम को ब्रजवासीदास ने 17वीं शताब्दी में व्याख्यायित किया है. रोसीना का कहना है कि ब्रजवासीदास ने दरअसल ब्रज भाषा में ही प्रबोधचंमद्र को व्याख्यायित किया है क्योंकि उस दौर में ब्रज हिंदी का जोर था. हिंदी भाषा भी संस्कृत से होते हुए पहले ब्रज भाषा बनी और उसके बाद हिंदी भाषा बनी.

रोसीना को हिंदी से है लगाव

रोसीना हिंदी से अपने हाईस्कूल के दौर में प्रभावित हो गई थीं जब उन्होंने एक बॉलीवुड फिल्म देखी थी. उनका यह हिंदी प्रेम बढ़ता चला गया और उन्होंने नेपल्स विश्वविद्यालय, इटली से हिंदी भाषा में बीए करने के बाद एमए किया. हिंदी भाषा की चाहत उन्हें भारत खींच लाई. वो 2012 में भारत आईं और उसके बाद उन्होंने भारत में ही किसी विश्वविद्यालय से पीएचडी करने का फैसला किया

रोसीना पास्तोरे का कहना है कि भारत के लोग भी उसी तरह से सरल और सहज हैं, जिस तरह से वो इटली या दुनिया के अन्य किसी देश के लोगों को सरल पाती हैं. सांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागध्यक्ष डॉ.राहुल सिद्धार्थ का कहना है. कि प्रबोध का अर्थ होता है अभ्युदय और इसी प्रबोध से समाज में समरसता आती है, सौहार्द आता है.

सांची विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ.ओपी बुधोलिया ने सांची स्तूप पर केंद्रित किताब रोसीना पास्तोरे को भेंट की और उनके द्वारा हिंदी में व्याख्यान के साथ-साथ दर्शन के पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया.

रायसेन। सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में इटली से आई एक शोधार्थी ने ब्रजभाषा में शोध पर विशेष व्याख्यान दिया. रोसीना पास्तोरे स्विट्जरलैंड के लूज़ेन विश्वविद्यालय के भारतीय दर्शन विभाग में शोधार्थी हैं और इसी विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट असिस्टेंट के तौर पर कार्य करती हैं. रोसीना वर्तमान में विश्व भारती शांति निकेतन के भारतीय दर्शन विभाग में पीएचडी पूर्ण करने के लिए एक साल के लिए आई हैं, जिन्हें शांति निकेतन का हिंदी विभाग अपना पूरा सहयोग प्रदान कर रहा है.

इटली की शोधार्थी रोसीना पास्तोरे कर रहीं हिंदी में शोध

रोसीना पास्तोरे ने ब्रजवासीदास की ब्रजभाषा के माध्यम से “प्रबोधचंद्रम के अनेक रूप और स्त्रोत” पर सांची विश्वविद्यालय के सभी विभागों के प्राध्यापकों और छात्रों, विशेषकर हिंदी विभाग के छात्रों के सामने अपना व्याख्यान दिया. रोसीना पास्तोरे, संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम में दर्शन के पक्ष को ढूंढने का प्रयास कर रही हैं.

विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से आयोजित किए गए इस व्याख्यान में रोसीना पास्तोरे ने बताया कि उन्होंने अपने अब तक के शोध में यह पाया है कि ब्रजवासीदास के द्वारा लिखे नाट्य प्रबोधचंद्रम पर संस्कृत में लिखे गए भरतमुनि के नाट्य का प्रभाव ना होकर तुलसीदास की रामचरित्रमानस का अधिक प्रभाव है.

ग्यारहवीं सदी में संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम को ब्रजवासीदास ने 17वीं शताब्दी में व्याख्यायित किया है. रोसीना का कहना है कि ब्रजवासीदास ने दरअसल ब्रज भाषा में ही प्रबोधचंमद्र को व्याख्यायित किया है क्योंकि उस दौर में ब्रज हिंदी का जोर था. हिंदी भाषा भी संस्कृत से होते हुए पहले ब्रज भाषा बनी और उसके बाद हिंदी भाषा बनी.

रोसीना को हिंदी से है लगाव

रोसीना हिंदी से अपने हाईस्कूल के दौर में प्रभावित हो गई थीं जब उन्होंने एक बॉलीवुड फिल्म देखी थी. उनका यह हिंदी प्रेम बढ़ता चला गया और उन्होंने नेपल्स विश्वविद्यालय, इटली से हिंदी भाषा में बीए करने के बाद एमए किया. हिंदी भाषा की चाहत उन्हें भारत खींच लाई. वो 2012 में भारत आईं और उसके बाद उन्होंने भारत में ही किसी विश्वविद्यालय से पीएचडी करने का फैसला किया

रोसीना पास्तोरे का कहना है कि भारत के लोग भी उसी तरह से सरल और सहज हैं, जिस तरह से वो इटली या दुनिया के अन्य किसी देश के लोगों को सरल पाती हैं. सांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागध्यक्ष डॉ.राहुल सिद्धार्थ का कहना है. कि प्रबोध का अर्थ होता है अभ्युदय और इसी प्रबोध से समाज में समरसता आती है, सौहार्द आता है.

सांची विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ.ओपी बुधोलिया ने सांची स्तूप पर केंद्रित किताब रोसीना पास्तोरे को भेंट की और उनके द्वारा हिंदी में व्याख्यान के साथ-साथ दर्शन के पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया.

Intro:सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में इतालवी (प्जंसपंद) शोधार्थी ने ब्रजभाषा में शोध पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। रोसीना पास्तोरे स्विटज़रलैंड के लूज़ेन विश्वविद्यालय के भारतीय दर्शन विभाग में शोधार्थी हैं और इसी विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट असिस्टेंट के तौर पर कार्य करती हैं। रोसीना वर्तमान में विश्व भारती शांति निकेतन के भारतीय दर्शन विभाग में पी.एच.डी पूर्ण करने के लिए एक साल के लिए आई हैं, जिन्हें शांति निकेतन का हिंदी विभाग अपना पूरा सहयोग प्रदान कर रहा है।Body:रोसीना पास्तोरे ने ब्रजवासीदास की ‘ब्रजभाषा’ के माध्यम से “प्रबोधचंद्रम के अनेक रूप और स्त्रोत” पर सांची विश्वविद्यालय के सभी विभागों के प्राध्यापकों और छात्रों, विशेषकर हिंदी विभाग के छात्रों के समक्ष अपना व्याख्यान केंद्रित किया। रोसीना पास्तोरे, संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम में दर्शन के पक्ष को ढूंढने का प्रयास कर रही हैं। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से आयोजित किए गए इस व्याख्यान में रोसीना पास्तोरे ने बताया कि उन्होंने अपने अब तक के शोध में यह पाया है कि ब्रजवासीदास के द्वारा लिखे नाट्य प्रबोधचंद्रम पर संस्कृत में लिखे गए भरतमुनि के नाट्य का प्रभाव न होकर तुलसीदास की रामचरित्रमानस का अधिक प्रभाव है।Conclusion:ग्यारहवीं सदी में संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम को ब्रजवासीदास ने 17वीं शताब्दी में व्याख्यायित किया है। रोसीना का कहना है कि ब्रजवासीदास ने दरअसल ब्रज भाषा में ही प्रबोधचंमद्र को व्याख्यायित किया है क्योंकि उस दौर में ब्रज हिंदी का ज़ोर था। हिंदी भाषा भी संस्कृत से होते पहले ब्रज भाषा बनी और उसके बाद हिंदी भाषा बनी। रोसीना हिंदी से अपने हाईस्कूल के दौर में प्रभावित हो गई थीं जब उन्होंने एक बॉलीवुड फिल्म देखी थी। उनका यह हिंदी प्रेम बढ़ता चला गया और उन्होंने नेपल्स विश्वविद्यालय, इटली से हिंदी भाषा में बी.ए करने के बाद एम.ए किया। हिंदी भाषा की चाहत उन्हें भारत खींच लाई। वो 2012 में भारत आईं और उसके बाद उन्होंने भारत में ही किसी विश्वविद्यालय से पी.एच.डी करने का फैसला किया। अपनी पी.एच.डी पूर्ण करने के लिए वो 2018 में एक बार फिर भारत
आईं हैं।

Vo3शांतिनिकेतन से हिंदी की पढ़ाई करने पर वे गर्व महसूस करती हैं। रोसीना पास्तोरे का कहना है कि भारत के लोग भी उसी तरह से सरल और सहज हैं जिस तरह से वो इटली या दुनिया के अन्य किसी देश के लोगों को सरल पाती हैं। सांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागध्यक्ष डॉ राहुल सिद्धार्थ का कहना है कि प्रबोध का अर्थ होता है अभ्युदय और इसी प्रबोध से समाज में समरसता आती है, सौहार्द आता है। सांची विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. ओ.पी बुधोलिया ने सांची स्तूप पर केंद्रित क़िताब डवदनउमदजे वि ैंदबीप रोसीना पास्तोरे को भेंट की और उनके द्वारा हिंदी में व्याख्यान के साथ-साथ दर्शन के पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।


बाइट- रोसीना पास्तोरे, इतालवी नागरिक/दर्शन एवं हिंदी की शोधार्थी
Last Updated : Jan 16, 2020, 11:57 PM IST
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