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ऐसे बढ़ेगी बेटी तो कैसे पढ़ेगी बेटी, रस्सी पर करतब दिखाकर पाल रही परिवार

पेट के लिए रस्सी पर झूलती जिंदगी, जहां समाज की सच्चाई दिखा रही है वहीं सरकारों के दावों की भी पोल खोल रही है.

रस्सी पर कर्तब दिखाती नीता
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Published : Aug 25, 2019, 3:39 AM IST

रायसेन। इन दिनों शहर में एक बच्ची आकर्षण का केंद्र बनी हुई है जो कि अपने पिता और भाई के साथ शहर में कर्तब दिखाने आई है. कर्तब भी ऐसे की आप दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे.
कभी घुटनों के नीचे थाली तो कभी रिंग के सहारे रस्सी पर थिरकती है, कभी रस्सी पर उछलती है तो कभी उंगलियों के सहारे आहिस्ता-आहिस्ता रेंगती है.

ऐसे बढ़ेगी बेटी तो कैसे पढ़ेगी बेटी
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की रहने वाली 10 साल की नीता अपनी कला का प्रदर्शन कर दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त करती है. कुछ लोग उसकी कला पर तो कुछ लोग उसकी उम्र पर को देख सिक्के उसकी थाली में डाल देते हैं.


जिसकी उम्र अभी बचपन को जीने की है. स्कूल जाकर कलम पकड़ना सीखने की उम्र में एक लाठी के सहारे रस्सी पर जिंदगी का संतुलन बना रही है. इसे सिस्टम की विफलता कहें या समाजसेवी और नेताओं की संवेदनहीनता, जिनकी नाक के नीचे मासूम का बचपन दफन हो रहा है.


मदद की बाट जोहती जिंदगी
सड़क पर चलते लोग पलभर रुककर बच्ची का तमाशा तो देखते हैं, लेकिन मदद का एक हाथ उस तक नहीं पहुंचता. नीता का भाई शिव प्रसाद कहता है कि करतब दिखाने से मिले पैसों से उनके परिवार का पालन पोषण होता है. गांव में कुछ खेती भी है पर उससे जिंदगी चल पाना मुश्किल है.
शिव प्रसाद बताता है सरकार से उन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली. पहले रस्सी पर वो कर्तब दिखाता था अब उसकी बहन दिखाती है.


ऐसे बढ़ेगी बेटी तो कैसे पढ़ेगी बेटी
पेट के लिए रस्सी पर झूलती जिंदगी शायद किसी को नजर नहीं आ रही. गरीबी के कारण मासूम से छिनता बचपन को कोई नहीं देख ही पा रहा, सिर्फ कुछ तालियां और चंद पैसे देकर लोग आगे बढ़ जाते हैं.
सरकारों का 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा इस मासूम को देख बेमानी सा लगता है. महिला और बाल विकास की तमाम योजनाएं शायद सिर्फ कागजों पर ही हैं, जो इसके आंखों में पलने वाले सपनों को दफन होने से नहीं रोक पा रहीं हैं.

रायसेन। इन दिनों शहर में एक बच्ची आकर्षण का केंद्र बनी हुई है जो कि अपने पिता और भाई के साथ शहर में कर्तब दिखाने आई है. कर्तब भी ऐसे की आप दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे.
कभी घुटनों के नीचे थाली तो कभी रिंग के सहारे रस्सी पर थिरकती है, कभी रस्सी पर उछलती है तो कभी उंगलियों के सहारे आहिस्ता-आहिस्ता रेंगती है.

ऐसे बढ़ेगी बेटी तो कैसे पढ़ेगी बेटी
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की रहने वाली 10 साल की नीता अपनी कला का प्रदर्शन कर दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त करती है. कुछ लोग उसकी कला पर तो कुछ लोग उसकी उम्र पर को देख सिक्के उसकी थाली में डाल देते हैं.


जिसकी उम्र अभी बचपन को जीने की है. स्कूल जाकर कलम पकड़ना सीखने की उम्र में एक लाठी के सहारे रस्सी पर जिंदगी का संतुलन बना रही है. इसे सिस्टम की विफलता कहें या समाजसेवी और नेताओं की संवेदनहीनता, जिनकी नाक के नीचे मासूम का बचपन दफन हो रहा है.


मदद की बाट जोहती जिंदगी
सड़क पर चलते लोग पलभर रुककर बच्ची का तमाशा तो देखते हैं, लेकिन मदद का एक हाथ उस तक नहीं पहुंचता. नीता का भाई शिव प्रसाद कहता है कि करतब दिखाने से मिले पैसों से उनके परिवार का पालन पोषण होता है. गांव में कुछ खेती भी है पर उससे जिंदगी चल पाना मुश्किल है.
शिव प्रसाद बताता है सरकार से उन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली. पहले रस्सी पर वो कर्तब दिखाता था अब उसकी बहन दिखाती है.


ऐसे बढ़ेगी बेटी तो कैसे पढ़ेगी बेटी
पेट के लिए रस्सी पर झूलती जिंदगी शायद किसी को नजर नहीं आ रही. गरीबी के कारण मासूम से छिनता बचपन को कोई नहीं देख ही पा रहा, सिर्फ कुछ तालियां और चंद पैसे देकर लोग आगे बढ़ जाते हैं.
सरकारों का 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा इस मासूम को देख बेमानी सा लगता है. महिला और बाल विकास की तमाम योजनाएं शायद सिर्फ कागजों पर ही हैं, जो इसके आंखों में पलने वाले सपनों को दफन होने से नहीं रोक पा रहीं हैं.

Intro:जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं....भीड़ है कयामत की ओर हम अकेले हैं.....टेपरिकार्ड पर चल रहा यह फिल्मी गाना....

सिर पर कलश घुटनों के नीचे  फंसी थाली और पैरों की उंगलियों के सहारे पतली रस्सी पर चलकर अपने शरीर के साथ साथ अपनी जिंदगी और परिवार के दायित्वों का संतुलन बनाती छत्तीसगढ़ राज्य की 10 वर्षीय नीता अपनी कला का प्रदर्शन कर दो समय की रोटी का बंदोवस्त करती है। लोग करतब देखकर तालियां बजाते हैं, खुश होते हैं, दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं, लेकिन इस मासूम की आंखों में पलने बाले सपनों को बड़े होने से पहले ही दफन होते कोई नही देख पाता........इसे सिस्टम की विफलता कहें या शासन प्रशासन समाजसेवी और नेताओं की संवेदनहीनता...जिनकी नाक के नीचे इस मासूम का बचपन खेलने खाने के दिनों को देखने से पहले ही जबान और समझदार हो गया है..... रायसेन जिले में इन दिनों छत्तीसगढ़ की एक 10 वर्ष की बालिका पढ़ने लिखने की उम्र में अपने परिवार का पेट पालने की खातिर जान जोखिम मे डाल कर रस्सी पर करतब दिखाती है। 10 साल की बालिका नीता नट को आम जनता समाजसेवी नेता और प्रशासन की नाक के नीचे सड़क चलते लोग रुककर इसके खेल को देखते तो हैं लेकिन सार्थक मदद की तरफ कोई हाथ बढ़ाने की नही सोचता। क्या केंद्र और राज्य सरकारों के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे बेमानी है और सिर्फ कागजों पर ही हैं... महिला बाल विकास की योजनाएं इन मासूमों तक क्यों नही पहुंच पाती हैं....यह एक बड़ा प्रश्न है और उनके कामकाज पर प्रश्नचिन्ह भी है....मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों पर.......Body:रायसेन जिले में पिछले एक माह से 10 साल की यह मासूम लड़की नीता नट पापी पेट के खातिर रस्सी पर चल कर विभिन्न करतब दिखाती हुई अंत में पेट की भूख को शांत करने के लिए हाथ फैला कर लोगों से सहयोग राशि मांगती है। कुछ लोग तरस खाकर तो कुछ लोग

बालिका के दिखाए करतब पर खुश होकर उसे समर्थ अनुसार राशि देते है। मूलतः बिलासपुर  की रहने वाली 10 साल की बालिका नीता नट पिता बसंत नट

बीते करीब एक माह से नगर में विभिन्न स्थानो पर करतब दिखा रही है। बालिका

रस्सी पर चढ़ कर सिर पर कलश रख कर पहिया, लाठी व थाली के साथ सधे हुए

कदमों से करीब 50 फ़ीट रस्सी पर करतब दिखाती है।Conclusion:बालिका के भाई शिव प्रसाद ने बताया की करतब दिखाने से मिले पैसो से उसके परिवार का पालन पोषण

होता है। प्रदेश के अनेक शहरो में इन करतबों का प्रदर्शन कर चुके है।

बाईट....शिव प्रसाद नीता का भाई


नीता के भाई का दुख है कि उसके परिवार को अभी तक मध्यप्रदेश या छत्तीसगढ़ सरकार से किसी भी

प्रकार की कोई आर्थिक सहायता नही मिली है और ना ही किसी योजना का लाभ ही मिल सका है। पेट के खातिर ही उसकी बहन खतरनाक करतब दिखा रही है।

Byte शिवप्रसाद बालिका का भाई
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