रायसेन। इन दिनों शहर में एक बच्ची आकर्षण का केंद्र बनी हुई है जो कि अपने पिता और भाई के साथ शहर में कर्तब दिखाने आई है. कर्तब भी ऐसे की आप दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे.
कभी घुटनों के नीचे थाली तो कभी रिंग के सहारे रस्सी पर थिरकती है, कभी रस्सी पर उछलती है तो कभी उंगलियों के सहारे आहिस्ता-आहिस्ता रेंगती है.
जिसकी उम्र अभी बचपन को जीने की है. स्कूल जाकर कलम पकड़ना सीखने की उम्र में एक लाठी के सहारे रस्सी पर जिंदगी का संतुलन बना रही है. इसे सिस्टम की विफलता कहें या समाजसेवी और नेताओं की संवेदनहीनता, जिनकी नाक के नीचे मासूम का बचपन दफन हो रहा है.
मदद की बाट जोहती जिंदगी
सड़क पर चलते लोग पलभर रुककर बच्ची का तमाशा तो देखते हैं, लेकिन मदद का एक हाथ उस तक नहीं पहुंचता. नीता का भाई शिव प्रसाद कहता है कि करतब दिखाने से मिले पैसों से उनके परिवार का पालन पोषण होता है. गांव में कुछ खेती भी है पर उससे जिंदगी चल पाना मुश्किल है.
शिव प्रसाद बताता है सरकार से उन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली. पहले रस्सी पर वो कर्तब दिखाता था अब उसकी बहन दिखाती है.
ऐसे बढ़ेगी बेटी तो कैसे पढ़ेगी बेटी
पेट के लिए रस्सी पर झूलती जिंदगी शायद किसी को नजर नहीं आ रही. गरीबी के कारण मासूम से छिनता बचपन को कोई नहीं देख ही पा रहा, सिर्फ कुछ तालियां और चंद पैसे देकर लोग आगे बढ़ जाते हैं.
सरकारों का 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा इस मासूम को देख बेमानी सा लगता है. महिला और बाल विकास की तमाम योजनाएं शायद सिर्फ कागजों पर ही हैं, जो इसके आंखों में पलने वाले सपनों को दफन होने से नहीं रोक पा रहीं हैं.