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बासमती चावल को जीआई टैग न मिलने से किसान परेशान, सस्ते दामों पर बेच रहे चावल

बासमती चावल के जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) नहीं मिले से किसान परेशान हैं. किसानों का कहना है कि बासमती को भी अभी तक जीआई टैग नहीं मिल पाया है. जिसके कारण से मध्य प्रदेश के किसान हरियाणा और पंजाब के व्यापारियों को मजबूरी में अपनी बेशकीमती बासमती चावल सस्ते दामों पर बेच रहे हैं.

Farmers upset
किसान परेशान
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Published : Aug 12, 2020, 9:35 AM IST

Updated : Aug 12, 2020, 1:04 PM IST

रायसेन। मध्यप्रदेश में पैदा होने वाले बासमती चावल के जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन)को लेकर पंजाब और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच खींचतान जारी है. इसको लेकर अब प्रदेश में भी राजनीति शुरु हो गई है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी जीआई टैग की लड़ाई में आमने सामने आ गई हैं. इस सबके बीच किसानों ने अपनी परेशानी बताई है.

जीआई टैग न मिलने से किसान परेशान

किसानों का कहना है कि बासमती चावल को जीआई टैग ना मिलने के कारण उनको नुकसान हो ही रहा है. किसानों का कहना है कि प्रदेश में कई सालों से बंपर पैदावार करने वाले बासमती को भी अभी तक जीआई टैग नहीं मिल पाया है. जिसके कारण से मध्य प्रदेश के किसान हरियाणा और पंजाब के व्यापारियों को मजबूरी में अपनी बेशकीमती बासमती चावल सस्ते दामों पर बेचना पड़ता है. सरकार से उनकी मांग है कि जल्द जीआई टैग मिल जाता तो उनका कुछ फायदा होता. किसान का कहना है कि मेहनत वे लोग करते हैं और फायदा बिचौलिए को होता है.

सीएम शिवराज ने सोनिया गांधी को लिखा पत्र

बासमती चावल की टैगिंग को लेकर विवाद अब दिल्ली पहुंच गया है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मध्यप्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग ना देने की मांग की थी. जिस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आपत्ति दर्ज की थी. बाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अमरिंदर सिंह को जवाब दिया. बासमती चावल की टैगिंग को लेकर मध्य प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि केंद्र सरकार 1999 से राज्य को बासमती के ब्रीडर बीज की आपूर्ति कर रही है. सिंधिया स्टेट के रिकॉर्ड में अंकित है. 1944 में मध्य प्रदेश के किसानों को बासमती के बीज मिले थे. हैदराबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च रिपोर्ट में दर्ज किया है कि मध्य प्रदेश बीते 25 वर्षों से बासमती चावल का उत्पादन कर रहा है. पंजाब हरियाणा के बासमती निर्यातक मध्य प्रदेश के बासमती चावल खरीद रहे हैं.

पंजाब हरियाणा के निर्यातक मध्य प्रदेश के बासमती चावल खरीद कर ऊंचे दामों में बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि प्रदेश के किसानों की धान महज दो हजार से पच्चीस सौ तक बिक पाती है. इससे किसानों को लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है. अगर मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग मिल जाता है तो यहां के किसानों को लाभ होगा. बता दें कि अकेले रायसेन जिले में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में धान लगाई जाती है. वहीं मध्यप्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस जीआई टैग को लेकर आमने सामने हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट कर प्रदेश सरकार पर जी आई टैगिग को लेकर आरोप लगाए हैं.

जीआई टैगिंग कैसे मिलती है

किसी भी वस्तु को जीआई टैग देने से पहले उसकी गुणवत्ता क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है. यह तय किया जाता है उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजिनल पैदावार निर्धारित राज्य की है. इसके साथ ही यह भी तय किया जाना जरूरी होता है की भौगोलिक स्थिति का उस वस्तु की पैदावार में कितनी बड़ी भूमिका है. कई बार किसी खास वस्तु की पैदावार एक विशेष स्थान पर ही संभव है.

रायसेन। मध्यप्रदेश में पैदा होने वाले बासमती चावल के जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन)को लेकर पंजाब और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच खींचतान जारी है. इसको लेकर अब प्रदेश में भी राजनीति शुरु हो गई है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी जीआई टैग की लड़ाई में आमने सामने आ गई हैं. इस सबके बीच किसानों ने अपनी परेशानी बताई है.

जीआई टैग न मिलने से किसान परेशान

किसानों का कहना है कि बासमती चावल को जीआई टैग ना मिलने के कारण उनको नुकसान हो ही रहा है. किसानों का कहना है कि प्रदेश में कई सालों से बंपर पैदावार करने वाले बासमती को भी अभी तक जीआई टैग नहीं मिल पाया है. जिसके कारण से मध्य प्रदेश के किसान हरियाणा और पंजाब के व्यापारियों को मजबूरी में अपनी बेशकीमती बासमती चावल सस्ते दामों पर बेचना पड़ता है. सरकार से उनकी मांग है कि जल्द जीआई टैग मिल जाता तो उनका कुछ फायदा होता. किसान का कहना है कि मेहनत वे लोग करते हैं और फायदा बिचौलिए को होता है.

सीएम शिवराज ने सोनिया गांधी को लिखा पत्र

बासमती चावल की टैगिंग को लेकर विवाद अब दिल्ली पहुंच गया है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मध्यप्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग ना देने की मांग की थी. जिस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आपत्ति दर्ज की थी. बाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अमरिंदर सिंह को जवाब दिया. बासमती चावल की टैगिंग को लेकर मध्य प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि केंद्र सरकार 1999 से राज्य को बासमती के ब्रीडर बीज की आपूर्ति कर रही है. सिंधिया स्टेट के रिकॉर्ड में अंकित है. 1944 में मध्य प्रदेश के किसानों को बासमती के बीज मिले थे. हैदराबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च रिपोर्ट में दर्ज किया है कि मध्य प्रदेश बीते 25 वर्षों से बासमती चावल का उत्पादन कर रहा है. पंजाब हरियाणा के बासमती निर्यातक मध्य प्रदेश के बासमती चावल खरीद रहे हैं.

पंजाब हरियाणा के निर्यातक मध्य प्रदेश के बासमती चावल खरीद कर ऊंचे दामों में बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि प्रदेश के किसानों की धान महज दो हजार से पच्चीस सौ तक बिक पाती है. इससे किसानों को लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है. अगर मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग मिल जाता है तो यहां के किसानों को लाभ होगा. बता दें कि अकेले रायसेन जिले में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में धान लगाई जाती है. वहीं मध्यप्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस जीआई टैग को लेकर आमने सामने हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट कर प्रदेश सरकार पर जी आई टैगिग को लेकर आरोप लगाए हैं.

जीआई टैगिंग कैसे मिलती है

किसी भी वस्तु को जीआई टैग देने से पहले उसकी गुणवत्ता क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है. यह तय किया जाता है उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजिनल पैदावार निर्धारित राज्य की है. इसके साथ ही यह भी तय किया जाना जरूरी होता है की भौगोलिक स्थिति का उस वस्तु की पैदावार में कितनी बड़ी भूमिका है. कई बार किसी खास वस्तु की पैदावार एक विशेष स्थान पर ही संभव है.

Last Updated : Aug 12, 2020, 1:04 PM IST
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