रायसेन। कृषि विभाग के मुताबिक आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर फसल गिर सकती है. जिससे दानों में दूधिया धब्बे आ जाते हैं और उपज कम हो जाती है. ज्यादा देर से बुवाई करने पर फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी से फसल में निराई-गुड़ाई करने की सलाह दी गई है.
इसी प्रकार बालियां निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई नहीं करनी चाहिए. इससे फूल गिर जाते है. करनाल बंट तथा कंडुवा व्याधि के प्रकोप का डर रहता है. इस कार्य के लिए श्रमिक उपलब्ध नहीं होने पर जब खरपतवार 2-4 पत्ती के हों तो चौड़ी पत्ती वालें के लिए 4 ग्राम मेटसल्फ्युरोंन मिथाइल या 650 मिलीमीटर 2,4-डी प्रति हैक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए.
संकरी पत्ती वालों के लिए 60 ग्राम क्लोडिनफोप प्रोपरजिल प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. दोनों तरह से खरपतवारों के लिए उपरोक्त को मिलाकर या बाजार में उपलब्ध इनके रेडी-मिक्स उत्पादों का छिड़काव करना चाहिए. छिड़काव के लिए स्प्रेयर में फ्लैट-फैन नोजल का इस्तेमाल करें. गेहूं फसल के उपरी भाग पर इल्ली और माहु का प्रकोप होने की दशा में इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली ग्राम प्रति हेक्टर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
किसानों को गेंहू में हेड या लीफ ब्लाइट रोग आने पर प्रोपिकेनाजोल एक मिली लीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने की सलाह दी गई है. एक हेक्टेयर के लिए 250 मिली लीटर दवा तथा 250 लीटर पानी का उपयोग करना चाहिए.