पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना खनिज संपदाओं के मामले में देश और दुनिया में चर्चित है, उथली हीरा खदानों से निकलने वाला जेम्स क्वालिटी का हीरा विश्व विख्यात है. ठीक इसी तरह पन्ना जिले की पत्थर की खदानों से निकलने वाला फर्शी पत्थर भी देश के कई हिस्सों में जाता है. लेकिन जिले में रोजगार देने वाले दोनों बड़े खनिज संसाधनों पर सालों से वन भूमि और राजस्व भूमि के विवाद के कारण ग्रहण लगा है. सालों से इस खनिज संपदा वाले जिले की लगभग 90 फीसदी खदानें बंद हैं, जिस कारण खदानों में काम करने वाले कारीगर और मजदूर अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए घर छोड़ने पर मजबूर हैं.
90 फीसदी खदानें बंद
जानकारों की मानें तो पन्ना में हीरा और पत्थर की खदानें सैकड़ों साल पहले राजा महाराजाओं के समय से चलती आ रही हैं. यहां के निवासी अधिकतर मजदूर वर्ग के लोग खदानों में ही काम कर अपना गुजर-बसर करते चले आ रहे हैं, लेकिन जब से पन्ना टाइगर रिजर्व की स्थापना हुई है, तभी से धीरे-धीरे हीरा खदान और पत्थर खदानों के बंद होने का सिलसिला शुरू हुआ, जिसमें 1998 तक लगभग 90 फीसदी खदानें बंद हो गईं. जिसका सबसे बड़ा कारण वन भूमि व राजस्व भूमि का सीमांकन विवाद है.
जिले से बने मंत्री तो उम्मीद जागी
प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री और पन्ना विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह को खनिज व श्रम विभाग दिया गया तो पन्ना के लोगों ने विकास की संभावनाएं जताते हुए उम्मीद की है कि अब पन्ना जिले में फिर से हीरा खदान डायमंड पार्क व पत्थर खदानें संचालित होंगी, जिससे पन्ना जिले में रोजगार भी उपलब्ध होगा और कहीं ना कहीं जो मजदूरों का बाहर काम करने के लिए जाना बंद होगा.
मध्यप्रदेश का पन्ना जिला घने जंगलों के बीच बसा है, जिले में पन्ना टाइगर रिजर्व सहित उत्तर वन मंडल और दक्षिण वन मंडल की सीमाएं लगी हुई हैं. लगभग अधिकतर हीरा व पत्थर खदानों का क्षेत्र टाइगर रिजर्व वन विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया है, जिससे धीरे-धीरे हीरा व पत्थर खदानों में काम करने वाला कारीगर और मजदूर पलायन करने को मजबूर हो गया, जिसका नतीजा है कि आज कोरोना संकट काल में लगभग 40 हजार से ज्यादा मजदूर अन्य राज्यों से घर वापस आए हैं.