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27 दिसंबर से शुरू होगा तीन दिवसीय गढ़कुंडार महोत्सव, विदेशी पर्यटकों का यहां क्यों लगता है जमावड़ा...

Garhkundar Mahotsav start from 27th December: निवाड़ी जिले में महाराजा खेत सिंह खंगार के जन्मदिन पर हर साल तीन दिवसीय गढ़कुंडार महोत्सव मनाया जाता है. यहां इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विशाल मेला लगता हैं जहां भारत के विभिन्न प्रदेशों की संस्कृति, परंपराएं देखने को मिलती हैं. किले की विशेषता यहां लोगों को हैरान कर देती है.

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निवाड़ी जिले में गढ़कुंडार किला
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 23, 2023, 7:34 PM IST

निवाड़ी। महाराजा खेत सिंह खंगार के जन्मदिवस पर हर साल 27,28 और 29 दिसंबर को गढ़कुंडार महोत्सव मनाया जाता है. मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति संचालनालय एवं जिला प्रशासन निवाड़ी के सहयोग से इसे भव्यता के साथ मनाया जाता है. तीन दिन चलने वाले इस महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विशाल मेला लगता है. इस दौरान यहां भारत के विभिन्न प्रदेशों की संस्कृति, परंपराएं देखने को मिलती हैं. देश के कोने-कोने से हजारों की संख्या में लोगों का आना जाना होता है. विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं.

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महाराजा खेत सिंह खंगार के जन्मदिन पर होता है आयोजन

बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है किला: निवाड़ी जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है गढ़कुंडार. इस गांव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग(गढ़) के नाम पर पड़ा. राज्य के उत्तर में निवाड़ी जिले में स्थित एक उच्च पहाड़ी चोटी पर स्थित यह किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है बल्कि गढ़कुंडार के स्वतंत्रता की रक्षार्थ दिये गए संघर्षों के बलिदान, त्याग, राष्ट्रधर्म से संबंधित संस्कृति और परंपराओं से परिपूर्ण वीर खंगार महाराजाओं की कर्मस्थली रहा है.

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27 दिसंबर से शुरू होगा तीन दिवसीय गढ़कुंडार महोत्सव

किले की है अद्भुत विशेषता: गढ़कुंडार किले की एक बड़ी विशेषता यह है कि 12 km दूर से यह नग्न आंखों से दिखाई देता है, लेकिन जैसे-जैसे इस किले के करीब जाएंगे यह गायब हो जाता है और आंखों से दिखाई नहीं देता. पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि किला कहां गया. यही विशेषता विदेशी पर्यटकों सहित देश के प्रकृति प्रेमी,कला,संस्कृति, साहित्य में रूचि रखने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

गजानन माता मंदिर: खंगार क्षत्रिय राजवंश की कुलदेवी गजानन माता का मंदिर गढ़कुंडार किले से 8किमी दूर ग्राम सकूली में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. जहां वर्ष भर हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते जाते रहते हैं. बताया जाता है कि जो एक बार माता गजानन के दर्शन करता है उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है.

गिद्धवाहिनी माता मंदिर: गढ़कुंडार किले से महज 03 किलोमीटर की दूरी पर गिद्ध वाहिनी माता का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है. जहां पर एक सिंदूर सागर नाम से बड़ा तालाब है. जिसकी सीढ़ियों पर आज भी सती स्तम्भ और सती चीरे बने हुए हैं जो भीषण तबाही के मूक साक्षी हैं. खंगार राजवंश की क्षत्राणियों द्वारा सतित्व की रक्षार्थ किए गये जौहर प्रथा का जीता-जागता उदाहरण हैं.

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बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है किला: निवाड़ी जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है गढ़कुंडार. इस गांव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग(गढ़) के नाम पर पड़ा. राज्य के उत्तर में निवाड़ी जिले में स्थित एक उच्च पहाड़ी चोटी पर स्थित यह किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है बल्कि गढ़कुंडार के स्वतंत्रता की रक्षार्थ दिये गए संघर्षों के बलिदान, त्याग, राष्ट्रधर्म से संबंधित संस्कृति और परंपराओं से परिपूर्ण वीर खंगार महाराजाओं की कर्मस्थली रहा है.

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27 दिसंबर से शुरू होगा तीन दिवसीय गढ़कुंडार महोत्सव

किले की है अद्भुत विशेषता: गढ़कुंडार किले की एक बड़ी विशेषता यह है कि 12 km दूर से यह नग्न आंखों से दिखाई देता है, लेकिन जैसे-जैसे इस किले के करीब जाएंगे यह गायब हो जाता है और आंखों से दिखाई नहीं देता. पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि किला कहां गया. यही विशेषता विदेशी पर्यटकों सहित देश के प्रकृति प्रेमी,कला,संस्कृति, साहित्य में रूचि रखने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.

गजानन माता मंदिर: खंगार क्षत्रिय राजवंश की कुलदेवी गजानन माता का मंदिर गढ़कुंडार किले से 8किमी दूर ग्राम सकूली में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. जहां वर्ष भर हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते जाते रहते हैं. बताया जाता है कि जो एक बार माता गजानन के दर्शन करता है उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है.

गिद्धवाहिनी माता मंदिर: गढ़कुंडार किले से महज 03 किलोमीटर की दूरी पर गिद्ध वाहिनी माता का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है. जहां पर एक सिंदूर सागर नाम से बड़ा तालाब है. जिसकी सीढ़ियों पर आज भी सती स्तम्भ और सती चीरे बने हुए हैं जो भीषण तबाही के मूक साक्षी हैं. खंगार राजवंश की क्षत्राणियों द्वारा सतित्व की रक्षार्थ किए गये जौहर प्रथा का जीता-जागता उदाहरण हैं.

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