नीमच (Neemuch)। सरकार लाख दावे करे फिर भी धरातल पर गरीब बच्चे शिक्षा से अछूते रह जाते हैं. सरकार ने अनिवार्य शिक्षा के तहत आरटीई (RTE) कानून लागू किया लेकिन फिर भी गरीब बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही हैं.ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता मजदूरी करने जाते हैं इसके बाद ये बच्चे भी सड़कों पर लोगों से भीख मांगने जैसा काम करने लगते हैं. ऐसे ही बच्चों के लिए एक स्कूल ऐसा भी चल रहा है, जिसमें पढ़ने वाले बच्चें बड़ी कालोनियों या कोठियों में नहीं रहते बल्कि अपने परिवार के साथ झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं.शाम को निर्धारित समय पर 6 बजे स्कूल पहुंच जाते हैं. यह स्कूल एक पेड़ के नीचे खुले में चल रहा है और इसकी प्रिंसिपल और टीचर सब कुछ एक ही महिला है. महिला सरकारी और प्राइवेट स्कूल में न जाने वाले बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रही हैं. जो बच्चे पढ़ाई के नाम पर क.ख.ग भी नहीं जानते थे, वह अब बिना किसी बड़े या महंगे स्कूल में गए पढ़ना और लिखना सीख गए हैं.
चाइल्ड रिलीफ मिशन फाउंडेशन अपनी पाठशाला मुहिम के माध्यम से बस्ती के बच्चों को शिक्षा के प्रति जगारूक करने का काम कर रही है. संस्था के युवा बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के साथ ही उनकी कापी-किताब का भी इंतजाम करते हैं. अनूप सिंह और चंदा सालवी की 10 सदस्यीय टीम हर रोज बच्चों को पढ़ा रही है. संस्था सदस्य पूजा मिश्रा ने बताया कि उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय से एमएसडब्ल्यू समाज कार्य की पढ़ाई की है. वहीं चंदा सालवी निवासी नीमच एमएसडब्लूयू की पढ़ाई कर रही है.
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भीख मांगने वाले बच्चे अब कर रहें पढ़ाई
संस्था अध्यक्ष चौधरी ने न बताया कि उन्होंने शहर के विभिन्ना चौराहे पर कुछ मासूम बच्चों को भीख मांगते हुए देखा. बच्चों की इस दशा को देखकर उन्होंने उनके भविष्य को संवारने की ठान ली. मई 2018 को उन्होंने 10 युवाओं की टीम तैयार कर एक फाउंडेशन बनाया. जिसके बाद स्कीम नंबर 36 बी बस्ती के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देनी शुरू कर दी.
क्या है RTE (राइट टू एजुकेशन)
Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009 या Right to Education Act (RTE) भारत की संसद का एक अधिनियम है जिसे 4 अगस्त 2009 को अधिनियमित किया गया था. जिसमे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत भारत में 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का आधिकार देता है.