नीमच। मध्य प्रदेश के नीमच जिले में 35 साल बाद परंपरा के नाम पर लोग अग्नि कुंड में चले. दावा है कि जो भी भक्त सच्चे मन से अंगारों पर चलता है उस पर कोई आंच नहीं आती. लेकिन ये तस्वीरें मनासा तहसील के ग्राम देवरी खवासा से 35 सालों के बाद सामने आई है. यहां आस्था के नाम पर बंद पड़ी अंगारों पर चलने की परंपरा को नवरात्रि की नवमी पर फिर से शुरु किया गया है. यहां अग्नि में लोग चल रहे हैं. बच्चे-बूढ़े, महिलाएं-पुरुष, सभी अंगारों पर नंगे पैर चले. न कोई आह, न जलने का डर. मन में अग्नि के प्रति इतनी गहरी आस्था कि श्रद्धालु बेखौफ अंगारों पर चलने से गुरेज नहीं कर रहे. हालांकि, ETV भारत किसी भी ऐसी परंपरा का समर्थन नहीं करता जो अंधविश्वास को बढ़ावा दे. लेकिन ये तस्वीरें प्रशासन के लिए जरुर चौंकाने वाली हैं. लोगों ने फिर से परंपरा के नाम पर साढ़े तीन दशक बाद ऐसा किया है और ये खतरनाक है, खासकर बच्चों के लिए.
जानकारी के मुताबिक देवरी खवासा में दिनभर ग्रामीण देवनारायण मन्दिर पर एकत्रित होकर नवरात्रि के नवमी पर अंगारों पर चलते रहे. ये परंपरा माता को खुश करने के नाम पर शुरु किया जा रहा है और प्रशासन को शायद इसकी भनक भी नहीं लगी तभी इसे कोई रोकने नहीं पहुंचा. इस परंपरा को लेकर ग्रामीणों ने मान्यताओं की दुहाई दी.
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पहले हर साल मंदिर के पास मेला लगता था. लेकिन 35 साल पहले ये बंद हो गया. जानकारी के मुताबिक माता की पूजा अर्चना के बाद छह-सात फीट लंबी और ढाई फीट चौड़ी जगह पर धधकते अंगारे सजाए जाते हैं. स्थानीय बोली में इसे ‘चूल' कहा जाता है. सबसे पहले मंदिर का पुजारी पास के एक कुंड में नहाकर अग्नि की पूजा करता है, फिर धधकती अग्नि पर नंगे पैर चलता है. उसके पीछे श्रद्धालु इस अग्नि पर चलते हैं.
कहा जाता है कि पूजन के दौरान पुजारियों को देवी-देवताओं के भाव आते हैं. जो व्यक्ति आग के अंगारों पर से निकलता हे उस के पांव पर मेहंदी लगाई जाती है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में ऐसी परंपरा प्रचलित थीं. मान्यता है कि इससे श्रद्धालुओं के मन की मुरादें पूरी होती हैं, गोद भरती है, कई बीमारियां दूर होती हैं. दुष्ट आत्माओं का साया पास नहीं फटकता है.