भोपाल। मध्य प्रदेश की एक ऐसी विधानसभा सीट जहां से मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव तो जीते, लेकिन तीन मौके ऐसे भी आए, जब उन्हें इस सीट से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. 5 मार्च 1990 को प्रदेश के मुख्यमंत्री बने सुंदरलाल पटवा अपनी गृह विधानसभा मनासा से 5 बार चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें तीन बार यहां से हार का मुंह देखना पड़ा. मनासा विधानसभा सीट पर कभी बीजेपी हाबी रही, तो कभी कांग्रेस का दबदबा रहा. पिछले दो विधानसभा चुनाव से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी मनासा विधानसभा सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने मैदान में उतरेगी. वहीं, कांग्रेस इस सीट पर अपनी खोई जमीन पाने की कोशिश करेगी.
मनासा भाजपा कांग्रेस में दिलचस्प मुकाबला : नीमच जिले के मनाया सीट से 6 प्रत्याशी मैदान में हैं. मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच में है. कांग्रेस ने नाहटा को प्रत्याशी बनाया है. वहीं भाजपा ने अनिरुद्ध (माधव) मारू को मैदान में उतारा है.
कमलनाथ को उनके गढ़ में ही हराया: पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा पहली बार 20 जनवरी 1980 से 17 फरवरी 1980 तक यानी 29 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने. दूसरी बार 5 मार्च 1990 को जब वह मुख्यमंत्री बने तो उनकी सरकार को 15 दिसंबर 1992 को बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद सुंदरलाल पटवा के मुख्यमंत्री बनने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया. बाद में वे केन्द्र की राजनीति में सक्रिय हुए और कांग्रेस के अजेय गढ़ माने जाने वाले छिंदवाड़ा से कमलनाथ को उन्होंने हरा कर इस गढ़ को भेद दिया. सुंदरलाल पटवा अकेले ऐसे नेता रहे, जिन्होंने छिंदवाड़ा सीट से जीत दर्ज की. कहा जाता है कि सुंदरलाल पटवा को अपने गांव कुकडेश्वर का छाछ बेहद पसंद थी उनके मुख्यमंत्री काल में एक गाड़ी सिर्फ कुकडेश्वर से छाछ लाने के लिए ही लगाई गई थी.
मनासा में कभी बीजेपी-कभी कांग्रेस का रहा दबदबा : मध्य प्रदेश के नीमच जिले की मनासा विधानसभा सीट कभी बीजेपी का गढ़ रही है, लेकिन बाद में यह बीजेपी और कांग्रेस के लिए प्रयोग का क्षेत्र बन गई. यहां पार्टियां ने कभी बाहरी को उम्मीदवार बनाया, तो कभी स्थानीय को. इस सीट पर कभी कांग्रेस का दबदबा रहा तो, कभी बीजेपी का. इस विधानसभा सीट पर पिछला 2018 का चुनाव बीजेपी उम्मीदवार अनिरूद्ध मारू ने बड़े अंतर से चुनाव जीता था. उन्होंने कांग्रेस के उमराव सिंह गुर्जर को 25 हजार 954 वोटों से चुनाव हराया था. इस सीट पर बीजेपी की यह लगातार दूसरी जीती थी. इसके पहले 2013 में बीजेपी के कैलाश चावला ने जीत दर्ज की थी. उन्हेंने कांग्रेस के विजेन्द्र सिंह को करीबन 14 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. इस विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस बाहरी उम्मीदवारों को मैदान में उतारते रहे. कांग्रेस ने 5 बार, जबकि बीजेपी ने 3 बार बाहरी उम्मीदवार को मैदान में उतारा. पिछले 10 सालों से काबिज बीजेपी जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश में है, जबकि कांग्रेस वापसी की कोशिश कर रही है.