नीमच। जिले में कोरोना के कहर के चलते रोजना श्मशान घाट पर चिताएं जल रही हैं, लेकिन व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं है, इस बात की पुष्टि यहां कि तस्वीर बयां कर रही है. जिले के श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया जा रहा था, लेकिन अचानक बारिश हो गई, श्मशान में सेड की व्यवस्था नहीं होने के चलते, सभी जलते शव बीच में बुझ गए. जिसके बाद वहां मौजूद आवारा कुत्ते शवों को नोचने लगे.
दावों की खुली पोल
शमशान घाट में विकास के नाम समितियां बड़े बड़े दावे करती है. विकास के नाम पर दान लिया जाता है, फिर भी जरूर के अनुरूप कार्य नहीं हो पा रहा है. कोरोना काल में शवों को खुले आसमान के नीचे जलाया जा रहा है, मगर नगर पालिका और प्रशासन मोझ धाम पर एक चद्दर तक नहीं लगी है. सोमवार को शहर के मुक्तिधाम में मानवता को शर्मसार कर देने वाली तस्वीर दिखी. ये दृश्य वर्तमान परिस्थित में काल्पनीक कलयुग की हकीकत को आभास करवाता है, दृश्य सामान्य व्यक्ति के मन को विचलित करने वाले हैं. यहां अधजले शवों को कुत्ते नोचक खा रहे हैं.
बारिश के कारण बने हालात
सोमवार को शहर के विभिन्न अस्पतालों में इलाज के दौरान 4 व्यक्तियों की मौत हो गई थी. सभी की मौत के बाद कोविड प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किया गया. दो शवों को सुबह करीब 10 बजे जलाया गया. 2 शव दोपहर 12 बजे बाद जलाए गए, चिताएं जल ही रही थी. तभी इसी बीच तेज हवाओं और आंधी के साथ मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. तेज बारिश से श्मशान में जल रही चिताएं बुझ गईं, बारीश धीरे-धीरे कम होकर रूक गई. इसके बाद श्मशान में बुझ चुकी चिताओं से आवारा कुत्ते शवों के अधजले अंगों को निकाल कर खाने लगे. देखते ही देखते श्मशान में 4-5 कुत्ते इट्ठा हो गए और अधजली चिताओं पर मुंह मारने लगे. ये दृश्य सामान्य मानव को विचलित कर देने वाले थे. कुत्ते मानव शव के लौथड़ों को मुंह में उठाकर इधर-उधर भागते दिखाई दे रहे थे. यह सारा नजारा श्मशान के दूसरे छोर पर, बस स्टैंड की ओर कुछ सामान्य लोग भी देख रहे थे.
कुत्तों का निवाला बन रही चिताएं
एक महीने में रोजाना श्मशान घाट पर औसतन 12 से अधिक महिला-पुरूषों का कोविड प्रोटोकॉल के तहत दाह संस्कार किया जाता है. लेकिन नगरपालिका शवों को सुरक्षित जलाने तक की व्यवस्था नहीं कर पाई है. जानकारी के मुताबिक बरसात के बाद श्मशान में चारों ओर पानी भर गया. पानी के बीच बुझ चुकी चिताओं से धुंआ उठ रहा था. और कुत्ते चिताओं से शवों के अधजले अंग खींच-खींचकर निकाल रहे थे. यह प्रक्रिया काफी देर तक चलती रही, इसके बाद श्मशान के चौकीदार और अन्य लोगों ने कुत्तों को भगाकर तितर-बितर किया ही था, कि थोड़ी देर बाद फिर बारिश शुरू हो गई. सभी लोग इधर-उधर, छुपते-छुपाते चले गए, कुछ देर बाद बारिश रूकी, लेकिन कुत्ते अधजले अंगों को निकालने का सिलसिला जारी रहा, जिले के जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और प्रशासन हर समय व्यवस्थाओं को सुधारने की ढफली बजाते रहते हैं, लेकिन श्मशान पर विचलित कर देने वाले ये दृश्य देखकर नहीं लगता कि व्यवस्थाएं सुधारने के लिए जमीनस्तर पर कुछ ठोस कदम उठाए गए हो.
भोपाल:खुले में हो रहे अंतिम संस्कार में बारिश बनी बाधा, लकड़ियों की भी कमी
लाखों रुपए दान के बावजूद नहीं सुधर रही व्यवस्था
श्मशान की व्यवस्था के लिए दानदाता बखूबी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, वे खुले दिल से सुविधानुसार लकड़ियां, कंडे और चारा दान कर रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार दान में मिली राशि से कोई व्यवस्था नहीं कर रहे हैं, यहां तक की श्मशान में रखी लकड़ी और कडे तक भीग चुके हैं. श्मशान घाट पर बारिश के कारण चोरो ओर पानी भर गया है, पानी में चिताएं टापू के समान दिख रही हैं. कोरोना के इस दौर में जहां संदेहास्पद शवों को भी कोविड प्रोटोकॉल के तहत खुले आसमान के नीचे जलाया जा रहा है.
कब बदलेगी श्मशान की व्यवस्था
वहीं चिताओं को बारिश से बचाने के लिए भी कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. सिस्टम की ये लाचारी वर्तमान पस्थितियों में कलयुग का आभास करवा रही है, ये तो गनिमत है कि पिछले दिनों के मुकाबले सोमवार को सिर्फ 4 शवों का अंतिम संस्कार किया गया, नहीं तो दृश्य और भयानक हो सकते थे, चार शवों को सुरक्षित जलाने तक की व्यवस्था गड़बड़ा चुकी है, ऐसे में पिछले दिनों की तरह 10-12 शव होते, तो स्थित और भयानक होती. रविवार को श्मशान घाट पर स्थिति यह थी, कि चारों ओर पानी ही पानी था. और बीच में बुझी चिताओं से धुंआ उठता रहा, इसके बाद कुत्तों के विचरण और चिताओं से अधजले शवों के अंगों को कुरेद-कुरेद कर निकालकर खाना सामान्य बात थी.