नरसिंहपुर। दिवाली के मौके पर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने परमहंसी गंगा आश्रम में विधि विधान से पूजा-पाठ किया और प्रदेशवासियों को दिवाली की शुभकामनाएं दीं. इस दौरान उन्होंने लोगों को धर्म से कार्य करने की शिक्षा दी.
शंकराचार्य ने एक प्रसंग के जरिए अपनी बात कही. उन्होंने बताया कि कश्यप ऋषि के देवता, दानव और दैत्य तीनों ही पुत्र थे. प्रतिस्पर्धा में एक दूसरे से युद्ध करके मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं. तो उनके कल्याण के लिये भगवान श्रीमननारायण ने उनसे कहा कि आप लोग परस्पर युद्ध छोड़कर एक हो जाइए और एक होकर क्षीर समुद्र का मंथन कीजिए और अमृत निकालिए उस अमृत के द्वारा आप लोग अमर हो जाएंगे.
मृत्यु के भय से आपको छुटकारा मिल जाएगा. पहले तो दोनों ने इस प्रकार से असहमति व्यक्त की लेकिन भगवान के आग्रह पर स्वीकार कर लिया और उन्होंने क्षीर समुद्र का मंथन किया. उससे 14 रत्न निकले उनमें से एक रत्न थीं लक्ष्मी. लक्ष्मी क्षीर समुद्र के भीतर छिपी हुईं थीं. वो जैसे ही अभिव्यक्त हुईं उसके सौंदर्य को देखकर देवता दानव दैत्य सभी ने चाहा यह हमको मिल जाए सभी ने उसमें स्प्रीहा थी. अब उसने हाथ में जयमाला लिया और वह ढूंढने चली कि मैं किसको वर्ण करूं. तो सबको ही उसने छोड़ दिया. उन्होंने विष्णु को गले में जयमाला डाली जो लक्ष्मी को चाहते थे.
किसी प्रकार की जीवन में अच्छा नहीं थी जो व्यक्ति परोपकारी होता है, जो सबके कल्याण के बाद सोचता है. लक्ष्मी उसके गले में जयमाला डालती हैं. आज के इस दीपावली उत्सव पर हमको यह शिक्षा मिलती है कि लोककल्याण की बातें आप सोचें, जगत के कल्याण के लिए कार्य करें लक्ष्मी स्वयं आपको वरण करेगी आप कभी दुखी नही रहेंगे.