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नरसिंहपुर में विराजे हैं मोटे महादेव, जहां हर साल बढ़ती है शिवलिंग - jambheshwar mahadev mandir narsinghpur

नरसिंहपुर के मलाह पिपरिया गांव में विराजमान हैं मोटे महादेव, जो अपनी अनोखी महिमा के लिए हैं मशहूर.

mote mahadev
मोटे महादेव
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Published : Jul 14, 2020, 9:39 AM IST

Updated : Jul 14, 2020, 9:59 AM IST

नरसिंहपुर। पूरे देश में श्रावाण माह के दौरान लोग भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं. वैसे तो भोलेनाथ के कई शिवालय अपनी महिमा के लिए प्रसिद्ध हैं. ऐसा ही एक मंदिर नरसिंहपुर में है, जहां स्थापित शिवलिंग हर साल एक इंच बढ़ जाती है. नरसिंहपुर का ये मंदिर जंभेश्वर महादेव मंदिर और मोटे महादेव के नाम से प्रसिद्ध है. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर मां नर्मदा के उत्तर तट की सुदूर वादियों में स्थित मलाह पिपरिया गांव में विराजमान 'मोटे महादेव' अपने भक्तों की सभी मुरादें पूरी करते हैं.

जंभेश्वर महादेव मंदिर

मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब मोटे महादेव यहां विराजमान हुए थे, तब वो छोटे से पिंडी के आकार में थे, धीरे-धीरे उनका आकार बढ़ता गया और आज उनका आकार साढ़े चार फीट ऊंचाई और साढ़े 11 फीट मोटा हो गया है. पंडित गुलाब गोस्वामी बताते हैं कि नर्मदा तट पर बसे मलाह पिपरिया गांव में रहने वाले मालगुजार धुरंधर चौधरी को भगवान भोलेनाथ का स्वप्न आया था. जिसके आधार पर वे हिनोतिया के जंगलों से शिवलिंग लेकर आए और यहां स्थापना करा दी थी.

mote mahadev
सुदूर वादियों में बना मंदिर

अंग्रजों ने की थी शिवलिंग की मांग

पंडित गुलाब गोस्वामी ने इस मंदिर और शिवलिंग के इतिहास के कहा कि अंग्रेज शासनकाल में इस मूर्ति की स्थापना की गई थी. जैसे ही अंग्रेजों को इसके बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इस शिवलिंग की पुजारी से मांग की थी, जिसे देने से पुजारी ने मना कर दिया था. कहा जाता है कि अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि इस शिवलिंग के अंदर मणि है, लेकिन मालगुजार और उनके पूर्वजों ने इस शिवलिंग को अंग्रेजों को देने से मना कर दिया था.

mote mahadev
मोटे महादेव

अनूठी है शिवलिंग

कहा जाता है कि ये शिवलिंग अनूठी है, जो हर साल एक इंच बढ़ती है. स्थापना के बाद से बढ़ते-बढ़ते ये शिवलिंग अब साढ़े चार फीट ऊंचा और साढ़े 11 फीट मोटा हो गया है.

ये भी पढ़ें- खजुराहो का हजारों साल पुराना विश्वनाथ मंदिर, जिसे कहते हैं काशी विश्वनाथ की फर्स्ट कॉपी

अपरंपार है महिमा
पंडित गुलाब गोस्वामी बताते हैं कि उनकी तीन पीढ़ियां यहां पूजा करती आ रही हैं, यहां श्रद्धाभाव से जो भी शख्स कोई कामना करता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है. हर साल यहां बसंत पंचमी के मौके पर पांच दिन और शिवरात्रि के मौके पर एक दिन का मेला लगता है. हर साल बसंत पंचमी के मौके पर शिवलिंग की लंबाई और चौड़ाई का आंकलन उनके वस्त्रों के आधार पर किया जाता है.

नरसिंहपुर। पूरे देश में श्रावाण माह के दौरान लोग भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं. वैसे तो भोलेनाथ के कई शिवालय अपनी महिमा के लिए प्रसिद्ध हैं. ऐसा ही एक मंदिर नरसिंहपुर में है, जहां स्थापित शिवलिंग हर साल एक इंच बढ़ जाती है. नरसिंहपुर का ये मंदिर जंभेश्वर महादेव मंदिर और मोटे महादेव के नाम से प्रसिद्ध है. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर मां नर्मदा के उत्तर तट की सुदूर वादियों में स्थित मलाह पिपरिया गांव में विराजमान 'मोटे महादेव' अपने भक्तों की सभी मुरादें पूरी करते हैं.

जंभेश्वर महादेव मंदिर

मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब मोटे महादेव यहां विराजमान हुए थे, तब वो छोटे से पिंडी के आकार में थे, धीरे-धीरे उनका आकार बढ़ता गया और आज उनका आकार साढ़े चार फीट ऊंचाई और साढ़े 11 फीट मोटा हो गया है. पंडित गुलाब गोस्वामी बताते हैं कि नर्मदा तट पर बसे मलाह पिपरिया गांव में रहने वाले मालगुजार धुरंधर चौधरी को भगवान भोलेनाथ का स्वप्न आया था. जिसके आधार पर वे हिनोतिया के जंगलों से शिवलिंग लेकर आए और यहां स्थापना करा दी थी.

mote mahadev
सुदूर वादियों में बना मंदिर

अंग्रजों ने की थी शिवलिंग की मांग

पंडित गुलाब गोस्वामी ने इस मंदिर और शिवलिंग के इतिहास के कहा कि अंग्रेज शासनकाल में इस मूर्ति की स्थापना की गई थी. जैसे ही अंग्रेजों को इसके बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इस शिवलिंग की पुजारी से मांग की थी, जिसे देने से पुजारी ने मना कर दिया था. कहा जाता है कि अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि इस शिवलिंग के अंदर मणि है, लेकिन मालगुजार और उनके पूर्वजों ने इस शिवलिंग को अंग्रेजों को देने से मना कर दिया था.

mote mahadev
मोटे महादेव

अनूठी है शिवलिंग

कहा जाता है कि ये शिवलिंग अनूठी है, जो हर साल एक इंच बढ़ती है. स्थापना के बाद से बढ़ते-बढ़ते ये शिवलिंग अब साढ़े चार फीट ऊंचा और साढ़े 11 फीट मोटा हो गया है.

ये भी पढ़ें- खजुराहो का हजारों साल पुराना विश्वनाथ मंदिर, जिसे कहते हैं काशी विश्वनाथ की फर्स्ट कॉपी

अपरंपार है महिमा
पंडित गुलाब गोस्वामी बताते हैं कि उनकी तीन पीढ़ियां यहां पूजा करती आ रही हैं, यहां श्रद्धाभाव से जो भी शख्स कोई कामना करता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है. हर साल यहां बसंत पंचमी के मौके पर पांच दिन और शिवरात्रि के मौके पर एक दिन का मेला लगता है. हर साल बसंत पंचमी के मौके पर शिवलिंग की लंबाई और चौड़ाई का आंकलन उनके वस्त्रों के आधार पर किया जाता है.

Last Updated : Jul 14, 2020, 9:59 AM IST
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