नरसिंहपुर। आइए आज हम आपको कलयुग के श्रावण कुमार से मिलवाते है जो खुद 60 वर्ष की उम्र के होने के बावजूद अपनी 120 वर्ष की वृद्ध मां को सिवनी जिले के लखनादौन से पैदल कंधे पर लादकर कई जिलों में देवियों को दर्शन करा रहे है. इतना ही नहीं यह श्रणव रूपी पुत्र इसी तरह अपनी मां को कई तीर्थ भी करा चुके है.
यह खबर खासकर उनके लिए है जो बुढापे की वजह से अपने मातापिता को वृद्ध आश्रम में या फिर दर-दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ देते हैं. लेकिन लखनादौन के रहने वाले गरीबदास वाकई उनके लिए एक उदाहरण है. जो अपनी मां को हर साल अपनी पीठ पर लादकर देवी दर्शनों को आसपास के जिलों में लाते हैं और देवीदास खुद से अपना नैतिक दायित्व बताते हुए कहते हैं.
गरीबदास कहते हैं कि जिस मां ने मुझे जन्म दिया यदि उसके लिए मेरा सारा जीवन भी उनकी सेवा में लगा रहे तो यह कम है. कुछ वर्ष पहले जब मेरी मां ने मुझसे तीर्थ करने की इच्छा जताई लेकिन आर्थिक तंगी और उनकी 120 साल की उम्र मैं कहीं भी लाने ले जाने में दिक्कत होती थी. तभी मैंने तय किया. वह अपनी मां को तीर्थ अवश्य करवा लूंगा और उन्होंने उन्हें पीठ पर लादकर बनारस चित्रकूट सहित अनेकों तीर्थ स्थान पर दर्शन कराएं और इसी तरह हर साल नवरात्र में वह अपनी मां को पीठ पर लादकर देवी दर्शन के लिए आसपास के जिलों में निकल पड़ते हैं.
भाग्यशाली हैं गरीबदास की मां
120 वर्षीय भाग्यवती उर्फ शम्मा बाई बकाई में अपने नाम के अनुरूप भाग्यवती ही है कि उन्हें गरीबदास के रूप में श्रणव कुमार जैसा ही बेटा मिला है उम्र के इस पड़ाव में भले ही भाग्यवती के हाथ पैर और जुबान ने साथ देना बन्द कर दिया है. मगर लड़खड़ाती जुबान से ही सही सबको बताती है कि ईश्वर हर मां को गरीबदास जैसा ही बेटा दे जो बुढापे में उसकी लाठी बन सके.
गरीबदास के रिश्तेदार बताते हैं कि उनकी मां ने तीर्थ करने की इक्षा जाहिर की थी. और मां को भगवान की तरह पूजने वाले गरीब दास ने तभी प्रण कर लिया था, कि वह साल में कम से कम दो बार मां को तीर्थ जरूर कराएंगे और तभी से वह इसी तरह पीठ पर लादकर श्रवण कुमार की तरह तीर्थ यात्रा पर ले जाते है.
जन्मदात्री मां की सेवा यह तस्वीर आजकल कम ही देखने को मिलती है. वर्ना देश में एक भी वृद्ध आश्रम संचालित नहीं होता गरीबदास से हमें भी सबक लेने की जरूरत है जो संसाधनों के बिना भी अपने दायित्वों को बखूबी निभा रहे है किसी ने कितना खूब कहा है चाहे काशी जाओ या काबा मगर जन्नत तो मां के चरणों में ही नसीब होती हैं.