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उपचुनाव में मंत्री मिथक तोड़ रचेंगे इतिहास या मुरैना में बदलेगा मिजाज ?

मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है. जिन 28 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है, उनमें मुरैना जिले की सीटें भी शामिल हैं. मुरैना में मिथक है कि यहां से सरकार में जो भी विधायक मंत्री बने, वे आगामी चुनाव में अपने क्षेत्र से चुनाव नहीं जीत सके. इस बार दो मंत्री चुनाव लड़ेंगे, अब देखना होगा कि यह मंत्री इस मिथक को तोड़कर इतिहास रचेंगे या फिर इतिहास दोहराएंगे.

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मुरैना में बदलेगा मिजाज
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Published : Oct 26, 2020, 6:08 AM IST

मुरैना। मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की सियासी बिसात बिछ चुकी है. दोनों दल इसकी तैयारियों में जुटे हैं. इन 28 सीटों में मुरैना जिले की भी पांच विधानसभा सीट शामिल हैं. मुरैना में एक चुनावी मिथक है कि आज तक यहां से सरकार में जो भी विधायक मंत्री बने, वे आगामी चुनाव में अपने क्षेत्र से चुनाव नहीं जीत सके. हालांकि, इस बात के पीछे का कोई ठोस कारण तो अब तक सामने नहीं आया है. जिले से इस बार दो मंत्री उपचुनाव में खड़ें हैं, जिसका मतदान 3 नवंबर 2020 को होना है. ऐसे में मुरैना जिले के यह मंत्री इस मिथक को तोड़कर नया इतिहास रचेंगे या फिर इतिहास दोहराएंगे इसकी तस्वीर 10 नवंबर को ही साफ होगी, लेकिन दोनों मंत्री अपने-अपने दावों के साथ और अपनी कार्यशैली को जनता के प्रति ईमानदार मानते हुए जीत का दावा कर रहे हैं.

मुरैना में बदलेगा मिजाज

बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है दिमनी

अब तक के चुनावों में दिमनी विधानसभा सीट बीजेपी की परंपरागत सीटों में गिनी जाती है. यहां आठ बार भारतीय जनता पार्टी, दो बार निर्दलीय, दो बार कांग्रेस और एक बार बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली है. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री मंत्री वंशीलाल खटीक का दबदबा रहा. उन्होंने पांच बार दिमनी सीट पर जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंचे.

मुरैना से अब तक बने मंत्री-

मध्य प्रदेश सरकार के गठन के बाद मुरैना जिले से अब तक 6 विधायकों को मंत्री पद से नवाजा गया है, जिनमें दो विधायकों को दो-दो बार मंत्री बनने का अवसर मिला है. जानें मंत्रियों के बारे में-

  • 1977 में जनता पार्टी के बैनर तले मुरैना से विधायक बने जबर सिंह को प्रदेश सरकार में PWD मंत्री बनाया गया. लोगों के मुताबिक उनके कार्यकाल में मुरैना जिले में सड़कों का जाल बिछाने का काम किया गया था. लोग कई दशकों तक इनकी सड़कों के विकास के उदाहरण देते हैं. लोग यह भी बताते हैं कि अटल बिहारी बाजपेई ने जब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना बनाई तब ग्रामीण क्षेत्र में सड़कें बनना शुरू हुई या फिर बाबू जबर सिंह जब मंत्री हुआ करते थे तब मुरैना जिले में सड़कें बनी थी. बाबू जबर सिंह ईमानदार छवि और जनता के प्रति समर्पित रहकर काम करने वाले नेता माने जाते थे और यह एक बार सुमावली और एक बार मुरैना से विधायक बनें.
  • स्वच्छ और ईमानदार छवि के नेता होने के बावजूद भी 1980 में मुरैना के महाराज सिंह बावरी से बाबू जबर सिंह चुनाव हार गए.
  • 1977 में ही सुमावली विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य और जनता पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़े जाब सिंह शर्मा विधायक चुने गए और इन्हें प्रदेश सरकार ने संसदीय सचिव बनाया. इसके साथ ही इन्हें मंत्री का दर्जा दिया गया, लेकिन 1980 में यह भी सुमावली की जनता का विश्वास जीतने में असफल रहे.
  • 1985 में सुमावली विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के नेता कृत राम सिंह कंसाना विधायक चुने गए और सरकार में मंत्री बनाए गए लेकिन, सन 1990 में जनता दल के उम्मीदवार गजराज सिंह सिकरवार से चुनाव हार गए. जातीय राजनीतिक समीकरण पर वोट डालने की प्रथा भी इन्हें सुमावली विधानसभा क्षेत्र चुनाव नहीं जिता सकी जबकि इनके विधानसभा क्षेत्र में इन्हीं की जाति गुर्जर समुदाय के बड़ी संख्या में वोट थे.
  • 1990 में दिमनी विधानसभा क्षेत्र अजा आरक्षित से भारतीय जनता पार्टी के मुंशीलाल खटीक लगातार चौथी बार विधायक चुने गए और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए.

ये भी पढ़ें- किसकी सरकार : जानें, तीन विधानसभा सीटों के प्रत्याशियों की कितनी है संपत्ति और किन्हें है हथियारों का शौक

  • 1993 में कांग्रेस के प्रत्याशी रमेश कोरी से चुनाव हार गए.
  • 1998 में बहुजन समाज पार्टी से एंदल सिंह कंसाना दूसरी बार चुनाव जीते और उस समय दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी.
  • 2002 में बहुजन समाज पार्टी के चार विधायकों ने कांग्रेस में विलय कर लिया और एंदल सिंह कंसाना को प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया.
  • 2003 में भारतीय जनता पार्टी के गजराज सिंह सिकरवार से एंदल सिंह कंसाना चुनाव हार गए.
  • 2003 में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी औराई जी के पद से VRS लेकर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मुरैना विधानसभा से रुस्तम सिंह चुनाव लड़े और जीते. उमा भारती की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए. लेकिन 2008 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के परसराम मुद्गल से चुनाव हार गए.
  • 2013 में रुस्तम सिंह मुरैना विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पुणे विधायक चुने गए और उन्हें शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया लेकिन, 2018 में वह कांग्रेस के रघुराज सिंह कंसाना से चुनाव हार गए.
  • 2018 में मुरैना जिले में भारतीय जनता पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और जिले की सभी 6 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया लेकिन, सिंधिया समर्थक जिले के 5 कांग्रेसी विधायकों ने विधायक पद से त्यागपत्र देकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और उनमें से सुमावली के पूर्व विधायक एदल सिंह कंसाना को कैबिनेट मंत्री और दिमनी के पूर्व विधायक गिर्राज दंडोतिया को शिवराज सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया.

एंदल सिंह कंसाना ने किया जीत का दावा

सुमावली से पूर्व विधायक और राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले PHE मंत्री एदल सिंह कंसाना का मानना है कि जो भी मंत्री अपने क्षेत्र की जनता के प्रति ईमानदारी से काम करता है, वह निश्चित रूप से चुनाव जीतेगा. पूर्व में जो भी मंत्री रहे वह क्यों चुनाव हारे यह तो वह जानें या उस समय की तात्कालिक परिस्थितियां, लेकिन हम अपनी जीत का दावा करते हैं. 2018 का चुनाव 14,000 वोटों से जीते थे और 2020 का चुनाव 50,000 वोटों से जीतेंगे.

जनता कभी नहीं करेगी 'न'

एंदल सिंह कंसाना ने यह भी दावा किया कि अगर वह 50,000 से कम का चुनाव जीतेंगे तो भविष्य में कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन, जब उनसे यह पूछा गया कि 2002 में भी वह दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री बने थे और 2003 में होने वाले चुनाव में वह जनता का विश्वास हासिल करने में नाकाम रहे तो उन्होंने सफाई दी कि उस समय सरकार किसी और की थी और अब सरकार किसी और की है. शिवराज सिंह चौहान विकास पुरुष हैं और उनके नेतृत्व में अगर कोई मंत्री अपने क्षेत्र में ईमानदारी से काम करेगा तो जनता उसे कभी ना नहीं करेगी.

ये भी पढ़ें- किसकी सरकार : 25 सालों में नहीं बनी 600 मीटर की पक्की सड़क, ग्रामीण करेंगे उपचुनाव का बहिष्कार!

जनता का विश्वास हमें जरूर मिलेगा

पूर्व विधायक और राज्य सरकार में राज्यमंत्री गिर्राज दंडोतिया से जब इस मिथक के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि वह अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए मंत्री नहीं बल्कि एक सेवक हैं और उस क्षेत्र की जनता का प्रत्येक मतदाता स्वयं मंत्री है, इसलिए मंत्री और जनता के बीच कोई दूरी नहीं हुई है. जनता का विश्वास हमें जरूर मिलेगा.

मंत्रियों का भुगतना पड़ता है खामियाजा

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुंशीलाल खटीक का इस मिथक के बारे में कहना है कि जब भी कोई विधायक मंत्री बनता है तो उनके क्षेत्र की जनता की अपेक्षाएं मंत्री के ओहदे के अनुसार बढ़ जाती हैं और सरकार की मर्यादाओं के पालन करते हुए उनकी अपेक्षाओं को निर्धारित समय सीमा में पूरा नहीं कर पाते, इसलिए मंत्रियों को आगामी चुनाव में इसका खामियाजा उठाना पड़ता है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुंशीलाल खटीक पांच बार विधायक रहे, एक बार कैबिनेट मंत्री और दो बार राज्य मंत्री रहे हैं.

सीट का जातिगत समीकरण

दिमनी विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक क्षत्रिय मतदाता लगभग 70,000 हैं , तो दलित 40 से 45 हजार हैं. कुशवाहा जाति के वोट भी करीब हजार हैं तो इतने ही मतदाता ब्राह्मण समुदाय के हैं. इसके अलावा अन्य छोटी जातियां, जिनमें राठौर, बघेल, मुस्लिम, गुर्जर, किरार, प्रजापति और वैसे वर्ग मिलाकर लगभग 70 हजार मतदाता शामिल हैं. 2 लाख 14 हजार मतदाताओं वाली दिमनी विधानसभा में 1,15,000 पुरुष मतदाता हैं तो वहीं 97,000 महिला मतदाता शामिल हैं.

दिमनी सीट से जुड़े अहम तथ्य

  1. 1962 से 2008 तक मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य वर्ग के लिए घोषित हुई और क्षत्रिय बाहुल्य होने के कारण राजनीति की अखाड़े में बदल गई.
  2. 2008 में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ और कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर के नजदीकी मंगल सिंह तोमर को भाजपा ने यहां से उम्मीदवार बनाया और वो बहुजन समाज पार्टी के रविंद्र सिंह तोमर से महज 250 मतों से चुनाव जीते.
  3. 2013 के बाद बसपा के रविंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस का दामन थामकर चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन बसपा के बलवीर सिंह दंडोतिया ने उन्हें जीत का रास्ता तय नहीं करने दिया.
  4. 2014 में रविंद्र सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर से हाथ मिलाकर भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन 2018 में भाजपा ने टिकट नहीं दिया. इसके बाद वे फिर कांग्रेस में पहुंच गए.

एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया ये दोनों ही विधायकों के मंत्री बनने के पांच महीने बाद प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, जिनमें मुरैना जिले की वह पांच सीटें भी शामिल हैं, जिन सीटों में से दो सीटों के इन उम्मीदवारों को मंत्री पद पर रहते हुए जनता के बीच जाना पड़ रहा है. अब देखना यह है कि क्या कैबिनेट मंत्री एंदल सिंह कंसाना और राज्यमंत्री गिर्राज दंडोतिया जनता का विश्वास जीतकर मुरैना जिले के इस मिथक को तोड़ने में सफल होंगे. क्या यह दोनों मंत्री अपने-अपने क्षेत्र में अपनी जीत दर्ज कराकर नया इतिहास रचेंगे या फिर इतिहास को दोहराएंगे?

मुरैना। मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की सियासी बिसात बिछ चुकी है. दोनों दल इसकी तैयारियों में जुटे हैं. इन 28 सीटों में मुरैना जिले की भी पांच विधानसभा सीट शामिल हैं. मुरैना में एक चुनावी मिथक है कि आज तक यहां से सरकार में जो भी विधायक मंत्री बने, वे आगामी चुनाव में अपने क्षेत्र से चुनाव नहीं जीत सके. हालांकि, इस बात के पीछे का कोई ठोस कारण तो अब तक सामने नहीं आया है. जिले से इस बार दो मंत्री उपचुनाव में खड़ें हैं, जिसका मतदान 3 नवंबर 2020 को होना है. ऐसे में मुरैना जिले के यह मंत्री इस मिथक को तोड़कर नया इतिहास रचेंगे या फिर इतिहास दोहराएंगे इसकी तस्वीर 10 नवंबर को ही साफ होगी, लेकिन दोनों मंत्री अपने-अपने दावों के साथ और अपनी कार्यशैली को जनता के प्रति ईमानदार मानते हुए जीत का दावा कर रहे हैं.

मुरैना में बदलेगा मिजाज

बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है दिमनी

अब तक के चुनावों में दिमनी विधानसभा सीट बीजेपी की परंपरागत सीटों में गिनी जाती है. यहां आठ बार भारतीय जनता पार्टी, दो बार निर्दलीय, दो बार कांग्रेस और एक बार बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली है. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री मंत्री वंशीलाल खटीक का दबदबा रहा. उन्होंने पांच बार दिमनी सीट पर जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंचे.

मुरैना से अब तक बने मंत्री-

मध्य प्रदेश सरकार के गठन के बाद मुरैना जिले से अब तक 6 विधायकों को मंत्री पद से नवाजा गया है, जिनमें दो विधायकों को दो-दो बार मंत्री बनने का अवसर मिला है. जानें मंत्रियों के बारे में-

  • 1977 में जनता पार्टी के बैनर तले मुरैना से विधायक बने जबर सिंह को प्रदेश सरकार में PWD मंत्री बनाया गया. लोगों के मुताबिक उनके कार्यकाल में मुरैना जिले में सड़कों का जाल बिछाने का काम किया गया था. लोग कई दशकों तक इनकी सड़कों के विकास के उदाहरण देते हैं. लोग यह भी बताते हैं कि अटल बिहारी बाजपेई ने जब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना बनाई तब ग्रामीण क्षेत्र में सड़कें बनना शुरू हुई या फिर बाबू जबर सिंह जब मंत्री हुआ करते थे तब मुरैना जिले में सड़कें बनी थी. बाबू जबर सिंह ईमानदार छवि और जनता के प्रति समर्पित रहकर काम करने वाले नेता माने जाते थे और यह एक बार सुमावली और एक बार मुरैना से विधायक बनें.
  • स्वच्छ और ईमानदार छवि के नेता होने के बावजूद भी 1980 में मुरैना के महाराज सिंह बावरी से बाबू जबर सिंह चुनाव हार गए.
  • 1977 में ही सुमावली विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य और जनता पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़े जाब सिंह शर्मा विधायक चुने गए और इन्हें प्रदेश सरकार ने संसदीय सचिव बनाया. इसके साथ ही इन्हें मंत्री का दर्जा दिया गया, लेकिन 1980 में यह भी सुमावली की जनता का विश्वास जीतने में असफल रहे.
  • 1985 में सुमावली विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के नेता कृत राम सिंह कंसाना विधायक चुने गए और सरकार में मंत्री बनाए गए लेकिन, सन 1990 में जनता दल के उम्मीदवार गजराज सिंह सिकरवार से चुनाव हार गए. जातीय राजनीतिक समीकरण पर वोट डालने की प्रथा भी इन्हें सुमावली विधानसभा क्षेत्र चुनाव नहीं जिता सकी जबकि इनके विधानसभा क्षेत्र में इन्हीं की जाति गुर्जर समुदाय के बड़ी संख्या में वोट थे.
  • 1990 में दिमनी विधानसभा क्षेत्र अजा आरक्षित से भारतीय जनता पार्टी के मुंशीलाल खटीक लगातार चौथी बार विधायक चुने गए और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए.

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  • 1993 में कांग्रेस के प्रत्याशी रमेश कोरी से चुनाव हार गए.
  • 1998 में बहुजन समाज पार्टी से एंदल सिंह कंसाना दूसरी बार चुनाव जीते और उस समय दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी.
  • 2002 में बहुजन समाज पार्टी के चार विधायकों ने कांग्रेस में विलय कर लिया और एंदल सिंह कंसाना को प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया.
  • 2003 में भारतीय जनता पार्टी के गजराज सिंह सिकरवार से एंदल सिंह कंसाना चुनाव हार गए.
  • 2003 में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी औराई जी के पद से VRS लेकर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मुरैना विधानसभा से रुस्तम सिंह चुनाव लड़े और जीते. उमा भारती की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए. लेकिन 2008 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के परसराम मुद्गल से चुनाव हार गए.
  • 2013 में रुस्तम सिंह मुरैना विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पुणे विधायक चुने गए और उन्हें शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया लेकिन, 2018 में वह कांग्रेस के रघुराज सिंह कंसाना से चुनाव हार गए.
  • 2018 में मुरैना जिले में भारतीय जनता पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और जिले की सभी 6 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया लेकिन, सिंधिया समर्थक जिले के 5 कांग्रेसी विधायकों ने विधायक पद से त्यागपत्र देकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और उनमें से सुमावली के पूर्व विधायक एदल सिंह कंसाना को कैबिनेट मंत्री और दिमनी के पूर्व विधायक गिर्राज दंडोतिया को शिवराज सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया.

एंदल सिंह कंसाना ने किया जीत का दावा

सुमावली से पूर्व विधायक और राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले PHE मंत्री एदल सिंह कंसाना का मानना है कि जो भी मंत्री अपने क्षेत्र की जनता के प्रति ईमानदारी से काम करता है, वह निश्चित रूप से चुनाव जीतेगा. पूर्व में जो भी मंत्री रहे वह क्यों चुनाव हारे यह तो वह जानें या उस समय की तात्कालिक परिस्थितियां, लेकिन हम अपनी जीत का दावा करते हैं. 2018 का चुनाव 14,000 वोटों से जीते थे और 2020 का चुनाव 50,000 वोटों से जीतेंगे.

जनता कभी नहीं करेगी 'न'

एंदल सिंह कंसाना ने यह भी दावा किया कि अगर वह 50,000 से कम का चुनाव जीतेंगे तो भविष्य में कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन, जब उनसे यह पूछा गया कि 2002 में भी वह दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री बने थे और 2003 में होने वाले चुनाव में वह जनता का विश्वास हासिल करने में नाकाम रहे तो उन्होंने सफाई दी कि उस समय सरकार किसी और की थी और अब सरकार किसी और की है. शिवराज सिंह चौहान विकास पुरुष हैं और उनके नेतृत्व में अगर कोई मंत्री अपने क्षेत्र में ईमानदारी से काम करेगा तो जनता उसे कभी ना नहीं करेगी.

ये भी पढ़ें- किसकी सरकार : 25 सालों में नहीं बनी 600 मीटर की पक्की सड़क, ग्रामीण करेंगे उपचुनाव का बहिष्कार!

जनता का विश्वास हमें जरूर मिलेगा

पूर्व विधायक और राज्य सरकार में राज्यमंत्री गिर्राज दंडोतिया से जब इस मिथक के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि वह अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए मंत्री नहीं बल्कि एक सेवक हैं और उस क्षेत्र की जनता का प्रत्येक मतदाता स्वयं मंत्री है, इसलिए मंत्री और जनता के बीच कोई दूरी नहीं हुई है. जनता का विश्वास हमें जरूर मिलेगा.

मंत्रियों का भुगतना पड़ता है खामियाजा

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुंशीलाल खटीक का इस मिथक के बारे में कहना है कि जब भी कोई विधायक मंत्री बनता है तो उनके क्षेत्र की जनता की अपेक्षाएं मंत्री के ओहदे के अनुसार बढ़ जाती हैं और सरकार की मर्यादाओं के पालन करते हुए उनकी अपेक्षाओं को निर्धारित समय सीमा में पूरा नहीं कर पाते, इसलिए मंत्रियों को आगामी चुनाव में इसका खामियाजा उठाना पड़ता है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुंशीलाल खटीक पांच बार विधायक रहे, एक बार कैबिनेट मंत्री और दो बार राज्य मंत्री रहे हैं.

सीट का जातिगत समीकरण

दिमनी विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक क्षत्रिय मतदाता लगभग 70,000 हैं , तो दलित 40 से 45 हजार हैं. कुशवाहा जाति के वोट भी करीब हजार हैं तो इतने ही मतदाता ब्राह्मण समुदाय के हैं. इसके अलावा अन्य छोटी जातियां, जिनमें राठौर, बघेल, मुस्लिम, गुर्जर, किरार, प्रजापति और वैसे वर्ग मिलाकर लगभग 70 हजार मतदाता शामिल हैं. 2 लाख 14 हजार मतदाताओं वाली दिमनी विधानसभा में 1,15,000 पुरुष मतदाता हैं तो वहीं 97,000 महिला मतदाता शामिल हैं.

दिमनी सीट से जुड़े अहम तथ्य

  1. 1962 से 2008 तक मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य वर्ग के लिए घोषित हुई और क्षत्रिय बाहुल्य होने के कारण राजनीति की अखाड़े में बदल गई.
  2. 2008 में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ और कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर के नजदीकी मंगल सिंह तोमर को भाजपा ने यहां से उम्मीदवार बनाया और वो बहुजन समाज पार्टी के रविंद्र सिंह तोमर से महज 250 मतों से चुनाव जीते.
  3. 2013 के बाद बसपा के रविंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस का दामन थामकर चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन बसपा के बलवीर सिंह दंडोतिया ने उन्हें जीत का रास्ता तय नहीं करने दिया.
  4. 2014 में रविंद्र सिंह ने नरेंद्र सिंह तोमर से हाथ मिलाकर भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन 2018 में भाजपा ने टिकट नहीं दिया. इसके बाद वे फिर कांग्रेस में पहुंच गए.

एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया ये दोनों ही विधायकों के मंत्री बनने के पांच महीने बाद प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, जिनमें मुरैना जिले की वह पांच सीटें भी शामिल हैं, जिन सीटों में से दो सीटों के इन उम्मीदवारों को मंत्री पद पर रहते हुए जनता के बीच जाना पड़ रहा है. अब देखना यह है कि क्या कैबिनेट मंत्री एंदल सिंह कंसाना और राज्यमंत्री गिर्राज दंडोतिया जनता का विश्वास जीतकर मुरैना जिले के इस मिथक को तोड़ने में सफल होंगे. क्या यह दोनों मंत्री अपने-अपने क्षेत्र में अपनी जीत दर्ज कराकर नया इतिहास रचेंगे या फिर इतिहास को दोहराएंगे?

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