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MP Election: जो कभी थे सिंधिया के कट्टर समर्थक, आज सियासी मैदान में हैं आमने-सामने

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Published : Oct 26, 2020, 3:26 PM IST

एक समय कट्टर सिंधिया समर्थक रहे राकेश मावई और रघुराज कंसाना आज चुनावी मैदान में एक-दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे हैं. राकेश मावई को सिंधिया के साथ न जाने का तोहफा टिकट के रूप में दिया गया. वहीं बीजेपी ने सिंधिया के साथ विधायक पद से इस्तीफा देने वाले रघुराज कंसाना को टिकट दिया है. जो कभी एक साथ सभा में नजर आते थे, वहीं आज चुनावी मैदान में आमने सामने हैं.

Raghuraj Singh Kansana - Rakesh Mavai
रघुराज सिंह कंसाना- राकेश मावई

मुरैना। कहते हैं कि राजनीति में कब कौन किस पाले में बैठ जाए, यह कहा नहीं जा सकता. राजनीति में कोई हमेशा न तो दोस्त रहता है और न ही दुश्मन. ऐसा ही मुरैना जिले की मुरैना विधानसभा सीट पर देखने को मिला. एक समय कट्टर सिंधिया समर्थक रहे राकेश मावई और रघुराज कंसाना आज चुनावी मैदान में एक-दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे हैं. राकेश मावई को सिंधिया के साथ न जाने का तोहफा टिकट के रूप में दिया गया. वहीं बीजेपी ने सिंधिया के साथ विधायक पद से इस्तीफा देने वाले रघुराज कंसाना को टिकट दिया है.

सिंधिया कट्टर समर्थक, चुनावी मैदान में है आमने सामने

सिंधिया के बाद बीजेपी में चले गए थे कंसाना

सिंधिया की छत्रछाया में छात्र नेता के रूप में राजनीति में कदम रखने वाले रघुराज सिंह कंसाना को पहले युवा कांग्रेस का जिलाध्यक्ष बनाया. फिर जिला पंचायत का सदस्य और अध्यक्ष बनवाया और आज सिंधिया की छत्रछाया में उन्हें 2018 में कांग्रेस के टिकट पर मुरैना सीट से उम्मीदवार बनाकर विधायक बनाया. यहीं नहीं जब सिंधिया ने कांग्रेस से दूरी बनाना शुरू किया तो रघुराज सिंह कषाना की दूरियां भी कांग्रेस से बनती चली गई और आज रघुराज की निष्ठा सिंधिया के प्रति ज्यों की त्यों है, यही कारण है कि उपचुनाव में रघुराज सिंह कंसाना को भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. रघुराज सिंह कंसाना का मानना है कि समय के अनुसार लोग एक दूसरे के समर्थन में भी होते हैं और कभी विरोध में भी. रहा सवाल दोनों के विचारों के तालमेल का, तो यह भी समय के अनुसार बनते और बदलते रहते हैं.

कांग्रेस प्रत्याशी राकेश मावई ने कहा कि वह जिस पार्टी में थे आज भी वह उसी पार्टी में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि उनकी विचारधारा हमेशा से ही कांग्रेस में रही है. राकेश मावई कहा कि वह तो कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा कि जिन लोगों ने कांग्रेस छोड़ी है, क्यों छोड़ी है, यह सब मुरैना विधानसभा की जनता जानती है.

कांग्रेस में है मेरी निष्ठा- राकेश मावई

राकेश मावई के चाचा सोबरन सिंह मावई और दादा गेंदालाल, सिंधिया के छत्रछाया में मुरैना सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. राकेश मावई को भी ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं मुरैना जिला कांग्रेस कमेटी का जिला अध्यक्ष बनाया और पिछले दो कार्यकाल से वहीं कांग्रेस की कमान संभाले हुए थे लेकिन वर्तमान राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए राकेश मावई ने राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ छोड़कर कमलनाथ की शरण ले ली, और उसी का प्रतिफल मिला कि उन्हें मुरैना विधानसभा से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया है. कभी राजनीति में एक विचारधारा और एक नेता के इशारे पर मित्रता के साथ काम करने वाले आज एक दूसरे के प्रतिद्वंदी हैं, राकेश मवाई ने कहा कि मेरी निष्ठा कांग्रेस में थी और आज भी है जबकि जो लोग अपने निजी हित देख रहे थे उनके बारे में सारी जनता जानती है, कहीं न कहीं उनके मन में राजनीतिक कटता दिखाई दे रही थी.

राजनीति में नहीं रहा दल बदल मुद्दा

वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शर्मा का मानना है कि राजनीति में दल बदल का मुद्दा कोई बड़ा विषय नहीं रह गया है. वर्तमान में दोनों ही प्रत्याशियों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के झूठ तले ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. लेकिन जब वक्त बदला और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया, तो राकेश मावई कांग्रेस में ही रहे गए, जबकि विधायक रघुराज सिंह कंसाना सिंधिया के साथ भाजपा में आए गए.

अब देखना यही है कि जिस सिंधिया परिवार की छत्रछाया में इन दोनों नेताओं ने अपनी राजनीति की शुरुआत की थी, वह एक दूसरे के सामने इस तरह से चुनावी लड़ाई को किस तरह लड़ते हैं और दोनों में से कौन किस पर भारी पड़ता है, यह तो आने वाला समय बताएगा, फिलहाल दोनों एक दूसरे की नजदीक रहने के साथ-साथ एक दूसरे की कमजोरियां जानते हैं, और उनका फायदा उठाकर जनता के बीच अपनी अपनी ताकत झोंकने में लगे हैं.

मुरैना। कहते हैं कि राजनीति में कब कौन किस पाले में बैठ जाए, यह कहा नहीं जा सकता. राजनीति में कोई हमेशा न तो दोस्त रहता है और न ही दुश्मन. ऐसा ही मुरैना जिले की मुरैना विधानसभा सीट पर देखने को मिला. एक समय कट्टर सिंधिया समर्थक रहे राकेश मावई और रघुराज कंसाना आज चुनावी मैदान में एक-दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे हैं. राकेश मावई को सिंधिया के साथ न जाने का तोहफा टिकट के रूप में दिया गया. वहीं बीजेपी ने सिंधिया के साथ विधायक पद से इस्तीफा देने वाले रघुराज कंसाना को टिकट दिया है.

सिंधिया कट्टर समर्थक, चुनावी मैदान में है आमने सामने

सिंधिया के बाद बीजेपी में चले गए थे कंसाना

सिंधिया की छत्रछाया में छात्र नेता के रूप में राजनीति में कदम रखने वाले रघुराज सिंह कंसाना को पहले युवा कांग्रेस का जिलाध्यक्ष बनाया. फिर जिला पंचायत का सदस्य और अध्यक्ष बनवाया और आज सिंधिया की छत्रछाया में उन्हें 2018 में कांग्रेस के टिकट पर मुरैना सीट से उम्मीदवार बनाकर विधायक बनाया. यहीं नहीं जब सिंधिया ने कांग्रेस से दूरी बनाना शुरू किया तो रघुराज सिंह कषाना की दूरियां भी कांग्रेस से बनती चली गई और आज रघुराज की निष्ठा सिंधिया के प्रति ज्यों की त्यों है, यही कारण है कि उपचुनाव में रघुराज सिंह कंसाना को भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. रघुराज सिंह कंसाना का मानना है कि समय के अनुसार लोग एक दूसरे के समर्थन में भी होते हैं और कभी विरोध में भी. रहा सवाल दोनों के विचारों के तालमेल का, तो यह भी समय के अनुसार बनते और बदलते रहते हैं.

कांग्रेस प्रत्याशी राकेश मावई ने कहा कि वह जिस पार्टी में थे आज भी वह उसी पार्टी में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि उनकी विचारधारा हमेशा से ही कांग्रेस में रही है. राकेश मावई कहा कि वह तो कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा कि जिन लोगों ने कांग्रेस छोड़ी है, क्यों छोड़ी है, यह सब मुरैना विधानसभा की जनता जानती है.

कांग्रेस में है मेरी निष्ठा- राकेश मावई

राकेश मावई के चाचा सोबरन सिंह मावई और दादा गेंदालाल, सिंधिया के छत्रछाया में मुरैना सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. राकेश मावई को भी ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं मुरैना जिला कांग्रेस कमेटी का जिला अध्यक्ष बनाया और पिछले दो कार्यकाल से वहीं कांग्रेस की कमान संभाले हुए थे लेकिन वर्तमान राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए राकेश मावई ने राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ छोड़कर कमलनाथ की शरण ले ली, और उसी का प्रतिफल मिला कि उन्हें मुरैना विधानसभा से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया है. कभी राजनीति में एक विचारधारा और एक नेता के इशारे पर मित्रता के साथ काम करने वाले आज एक दूसरे के प्रतिद्वंदी हैं, राकेश मवाई ने कहा कि मेरी निष्ठा कांग्रेस में थी और आज भी है जबकि जो लोग अपने निजी हित देख रहे थे उनके बारे में सारी जनता जानती है, कहीं न कहीं उनके मन में राजनीतिक कटता दिखाई दे रही थी.

राजनीति में नहीं रहा दल बदल मुद्दा

वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शर्मा का मानना है कि राजनीति में दल बदल का मुद्दा कोई बड़ा विषय नहीं रह गया है. वर्तमान में दोनों ही प्रत्याशियों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के झूठ तले ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. लेकिन जब वक्त बदला और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया, तो राकेश मावई कांग्रेस में ही रहे गए, जबकि विधायक रघुराज सिंह कंसाना सिंधिया के साथ भाजपा में आए गए.

अब देखना यही है कि जिस सिंधिया परिवार की छत्रछाया में इन दोनों नेताओं ने अपनी राजनीति की शुरुआत की थी, वह एक दूसरे के सामने इस तरह से चुनावी लड़ाई को किस तरह लड़ते हैं और दोनों में से कौन किस पर भारी पड़ता है, यह तो आने वाला समय बताएगा, फिलहाल दोनों एक दूसरे की नजदीक रहने के साथ-साथ एक दूसरे की कमजोरियां जानते हैं, और उनका फायदा उठाकर जनता के बीच अपनी अपनी ताकत झोंकने में लगे हैं.

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